महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री थीं। उन्होंने अपनी मुख्य रचनाओं और लेखन में भारतीय नारी की पीड़ा, उनकी इच्छाएं और संघर्षों को अपनी कविताओं में प्रस्तुत किया। मैं नीर भरी दुख की बदली! यह एक ऐसी रचना थी जिसे सुनकर और पढ़कर आंखे नम हो जाएं।
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन का 'मूल्य आधार' समाज सेवा और स्त्री स्वतंत्रता की आवाज के रूप में समर्पित किया। वे हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर चलिए उनकी रचनाएं और उपलब्धियां को याद करते हैं।
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उन्होंने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली दुर्लभ है। उनकी रचनाएं मानवीय संवेदनाओं, प्रेम, विरह, और अध्यात्म की गहरी अनुभूतियों से भरी हुई हैं।
महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार बेटी का जन्म हुआ था। उनके परिवार की भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी आस्था थी। ऐसे में महादेवी का झुकाव बचपन से ही साहित्य और कला की ओर रहा। उनकी शिक्षा इंदौर में शुरू हुई, साथ ही संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही।
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इस दौरान बाल विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन उनकी शिक्षा स्थगित रही। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने विचारों को मजबूत दिशा देती रहीं। वह लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या (प्रोफेसर) रहीं। इस दौरान वे इलाहाबाद से प्रकाशित 'चांद' मासिक पत्रिका की सम्पादिका भी थीं। उनका साहित्यिक योगदान बहुत महत्वपूर्ण और व्यापक है। इस कारण उन्हें 'हिंदी साहित्य की मीरा' और 'आधुनिक युग की मीरा' भी कहा जाता है।
महादेवी वर्मा ने न केवल कविताएं लिखी बल्कि निबंध, संस्मरण और कहानियां भी लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'स्मृति की रेखाएं', 'पथ के साथी', और 'अतीत के चलचित्र' शामिल हैं। जबकि कुछ अन्य प्रमुख काव्य कृतियां: नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा और दीपशिखा हैं।
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हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से भी नवाजा। इतना ही नहीं उनके नाम कई अन्य सम्मान भी हैं।
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