विपक्ष पेगासस पर चर्चा चाहता है और विपक्ष का विरोध इसी बात को लेकर है। राजनाथ सिंह ने गतिरोध खत्म करने के लिए आपको फोन किया, फिर भी हल नहीं निकला। क्यों?
राजनाथ सिंह ने मुझे गतिरोध खत्म करने के लिए नहीं, यह दिखाने के लिए फोन किया कि सरकार ने नेता प्रतिपक्ष से संपर्क किया। मैंने उनसे पहले ही कहा था कि मैं अकेले फैसला नहीं कर सकता, उन्हें सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए। संसद चलाना भाजपा का काम है और विपक्ष में मेरी भूमिका सरकार के साथ सहयोग करने की है। अगर मैंने नियमों के मुताबिक चर्चा के लिए नोटिस दिया तो इसे माना जाना चाहिए था। लेकिन मुझे लगता है कि उनके पास कोई भी फैसला करने का अधिकार नहीं। नहीं पता, यह विरोध कब तक चलेगा। आयरिश प्रधानमंत्री चार्ल्स हेग और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने जासूसी और फैन टैपिंग के आरोपों पर इस्तीफा दे दिया था, हम तो केवल चर्चा की मांग कर रहे हैं।
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किसान आंदोलन, कोविड-19 का दोषपूर्ण प्रबंधन, महंगाई जैसे तमाम जनहित के मुद्दे हैं। क्या विपक्ष इन्हें मुद्दा बनाएगा?
राहुल जी चाहते हैं कि क्षेत्रीय राजनीति को छोड़कर विपक्ष जनहित के इन मुद्दों पर एकजुट रहे और सभी नेताओं ने इसे माना। वे हमारी नहीं सुन रहे, लिहाजा हमें लोगों के बीच जाना होगा। आज नहीं तो कल, जनता उन्हें सबक सिखाएगी। सरकार संसद में हमें गलत जवाब दे रही है। मैं इसपर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाऊंगा।
क्या आपको ऐसा लगता है कि यह सरकार चर्चा कराना ही नहीं चाहती?
इस सरकार को लोकतंत्र की परवाह नहीं। दो सप्ताह से हंगामा हो रहा है लकिे न क्या गतिरोध खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री या गृह मंत्री सदन में आए? वे न तो लोकतंत्र का सम्मान करते हैं, न संविधान का। संसदीय व्यवहार में यह अपेक्षित है कि जब कोई राष्ट्रीय मुद्दा हो तो प्रधानमंत्री और अगर कानूनव्यवस्था से जुड़ा मामला हो तो गृह मंत्री सदन को संबोधित करेंगे। वे ऐसा नहीं करते। ये अलोकतांत्रिक सत्तावादी लोग हैं जो जनता की आवाज को दबाना चाहते हैं। लोकतंत्र में मुद् चदे र्चा से ही हल हो सकते हैं। जब संविधान बन रहा था तो वैसे भी राजनीतिक दलों की बात सुनी गई जिनके पास कोई प्रभावी संख्या बल नहीं था। जनसंघ के तत्कालीन नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बातों पर भी विचार किया गया। यहां तक कि चीन से युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू इस विष्य पर खुली चर्चा के लिए तैयार थे। इस सरकार में वैसे लोकतांत्रिक चलन नहीं रहे। ये लोग धीरे-धीरे लोकतंत्र की हत्या करना चाहते हैं और वे ऐसा ही कर रहे हैं। यह देखिए कि हम 60 फीसदी हैं, यानी विपक्ष कम-से-कम 60 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं कि हमारी ओर से उठाए जा रहे मुद्दों पर जवाब दे?
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दो सर्वदलीय बैठकें हुईं। एक की अध्यक्षता आपने की और एक की राहुल गांधी ने। केवल 14 दलों ने भाग लिया। विपक्षी एकजुटता का भविष्य क्या है?
हमें विपक्षी एकता के लिए लगातार कोशिश करनी होगी। यही लोकतंत्र है। 14-15 दलों से लोग बैठक में आए। हमलोग संबंधित राज्यों में किसी के भी खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं।
इनमें कई दल नहीं आए। आम आदमी पार्टी सिर्फ पहली बैठक में आई और वाईएसआर कांग्रेस ने भाग नहीं लिया...
वाईएसआर कांग्रेस तो भाजपा सरकार के साथ है। जहां तक आम आदमी पार्टी की बात है, पंजाब में चुनाव होने हैं इसलिए वे नहीं आए होंगे... पहली बैठक में तो वे आए थे। जनता के मुद्दों को उठाने वाले लोग इन बैठकों में शामिल हुए। हम किसी की भी अनेदखी नहीं कर रहे और चाहते हैं कि मुद्दों की इस लड़ाई में सभी लोग साथ रहें।
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अगर कांग्रेस सत्ता में होती तो क्या कुछ अलग होता?
जब हम सत्ता में थे तो लोगों के खाने-पीने, स्वस्थ रहने के इंतजाम किए। मिल-डे मील, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य मिशन, मनरेगा जैसे कदम उठाए। उन्होंने हमारे सभी कार्यक्रमों का मजाक बनाया। यहां तक कि प्रधानमंत्री तक ने कह दिया कि मनरेगा तो कांग्रेस की विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है। कोविड के समय में इसी मनरेगा के कारण न जाने कितने प्रवासी मजदूरों की जान बच सकी। खाद्य सुरक्षा कानून के कारण ही गरीबों को अनाज और राशन दिया जा सका। लेकिन उनके पास ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं। इस सरकार ने जो कुछ भी घोषणा की, उसके लिए पैसे का आवंटन किया ही नहीं। पीएम किसान, उज्ज्वला जैसी तमाम स्कीमें फेल हो गईं। प्रधानमंत्री की न तो विफल हो गई नीतियों की समीक्षा में कोई दिलचस्पी दिखती है और न ही वह इससे जुड़ी जमीनी वास्तविकता को जानना चाहते हैं। मोदी की केवल वर्चुअल बातचीत में रुचि रहती है। किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए उनके मंत्री तक उनसे नहीं मिल सकते।
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