पचास का दश्क शुरू हुआ तो फिल्मी दुनिया में देव, दिलीप और राजकपूर की तिकड़ी ऐसी छायी कि उसके सामने किसी का टिक पाना मुमकिन नहीं था लेकिन उस दौर में भी एक अभिनेता ने ना सिर्फ सुपर हिट बल्कि हिंदी सिनेमा को कालजयी फिल्में दीं। याद कीजिए, बैजू बावरा, बरसात की रात, मिर्जा गालिब, जहांआरा, संगीत सम्राट तानसेन और बसंत बहार। इन सभी फिल्मों का नायक एक ही था जिनका नाम था भारत भूषण।
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आजादी से पहले भारत भूषण फिल्मी पर्दे पर नजर आने लगे थे। भक्त कबीर, चित्रलेखा, और भाईचारा उसी दौर की फिल्में हैं लेकिन 1948 में आयी फिल्म सुहागरात ने भारत भूषण को स्टार बना दिया। भारत भूषण के सहज और शिष्ट नजर आने वाले चेहरे, कोमल लहजे, और उनके शालीन बरताव ने जल्द ही वह स्थित ला दी कि अगर किसी संत, कवि, शायर और बेहद शरीफ से नायक वाली कोई फिल्म बनाने की सोचता तो सबसे पहले भारत भूषण को ही साइन करने की कोशिश करता। धार्मिक और रोमांटिक फिल्मों के लिए वे बेहद जरूरी समझे जाने लगे।
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मेरठ में 14 जून 1920 को जन्मे भारत भूषण ने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ में अपने ननिहाल में रहकर पूरी की। संगीत से खास लगाव रखने की वजह से उन्होंने रेडियो की नौकरी को प्राथमिकता दी और लखनऊ आकाशवाणी में काम करने लगे। वहीं रह कर उनके मन में फिल्मों में काम करने का खयाल आया। कट्टर आर्य समाजी परिवेश वाला भारत भूषण का परिवार उन्हें कभी सिनेमा की ओर नहीं जाने देता इसलिये भारत भूषण चुपके से मुंबई चले गए।
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भारत भूषण फिल्मों में सफलता की सीढ़ियां तय कर ही रहे थे कि 1952 में उनकी फिल्म बैजू बावरा रिलीज हुई जिसने सफलता और लोकप्रियता का ऐसा इतिहास रच दिया कि वह हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्मों में गिनी जाती है। इस सफलता में संगीतकार नौशाद के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। इसके बाद आयी फिल्म चैतन्य महाप्रभु ने भारत भूषण की स्थिति को और मजबूत किया इसी फिल्म के लिये उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड मिला। लेकिन भारत भूषण को अमर कर दिया सोहराब मोदी की फिल्म मिर्जा गालिब (1955) ने। सुरैया के गाए गीतों और गालिब को पर्दे पर जीवित कर देने वाले भारत भूषण के अभिनय वाली इस फिल्म ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी अभीभूत कर दिया।
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भारत भूषण अपने समय के बेहद पढ़ने वाले अभिनेता थे। उनकी विशाल लाइब्रेरी साहिर को इतनी पसंद थी कि उन्होंने वहां के माहौल में बैठ कर कई गीतों की रचना की। भारत भूषण में दूसरे अभिनेताओं वाला पुरूष दंभ नहीं था इसलिये वे नायिका प्रधान फिल्में भी आसानी से स्वीकार कर लेते थे। उनके कैरियर की एक और यादगार फिल्म है बरसात की रात। इसका संगीत आज भी जवान है। सफलता के शिखर पर पहुंच कर उन्होंने मुंबई में कई बंगले और महंगी कारें खरीदीं। उनके घर पर होने वाली संगीत की महफिलें फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए एक अवसर हुआ करती थी। इसके बाद भारत भूषण ने फिल्में प्रोड्यूस करना शुरू कीं।
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‘बसंत बहार’ और ‘बरसात की रात’ जैसी फिल्म सुपरहिट हुईं तो भारत भूषण ने और फिल्में बनायीं जो पिट गयीं। फिल्म ‘दूज का चांद’ तो इतनी बुरी तरह असफल रही कि भारत भूषण के बंगले, कारें और घर के आभूषण तक बिक गए। इस हादसे के बाद वे कभी संभल नहीं पाए।
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प्रोड्यूसर बनने के बाद उनके पास दूसरे प्रोडक्शन हाउस से फिल्मों के प्रस्ताव आने कम हो गए थे। उसी दौर में फिल्मों में ग्लैमर और एक्शन का दौर शुरू हो रहा था ऐसे में संत, कवि, शायर या शरीफ से रोमांटिक हीरो को लेकर फिल्में बनाने के अवसर सिकुड़ते जा रहे थे। जल्द ही पूरे देश में सितारे की तरह चमकने वाले भारत भूषण असफलता के अंधेरे में खोते चले गए। जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिये उन्होंने छोटे-छोटे रोल निभाए फिर वो भी मिलने कम हो गए तो एक समय के बेहद व्यस्त इस अभिनेता ने एक्स्ट्रा रोल भी किये। जीवन से दो-दो हाथ करते हुए भारत भूषण का साल 1992 में निधन हो गया।
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