आप जानते हैं कि देश की पहली मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री कौन थीं। वह राज्य कौन था। किस दल ने उन्हें बनाया मुख्यमंत्री। उन्होंने क्या-क्या काम किये। उन्होंने आख़री सांस कहां ली। हमने इन सवालों में "?" नहीं लगाया, क्योंकि यह सवाल कभी सामने ही नहीं आए। असल में हम उन सब लोगों के बारे में बहुत कम जानते हैं, जिन्हें जानना चाहिए था। हम तो उनपर बात ही नहीं करते। उनके अच्छे-बुरे कामों पर बहस भी नही करते, मेरे लिए भी यह मुश्किल है कि अगर हम भी बात नहीं करेंगे,तो फिर भला कौन करेगा और हमारा भी लिखना पढ़ना सब बेकार ही होगा।
आज देश की पहली मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री सैयदा अनवरा तैमूर का जन्मदिन है। सन 1936 में जन्मी बेगम अनवरा ने अपनी शख़्सियत ख़ुद गढ़ी। जिन्हें देश की सबसे पुरानी पार्टी ने असम राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। यह बात सन अस्सी के दिसम्बर की है, वह क़रीब छः महीने राज्य की मुख्यमंत्री रहीं। इस छोटे से कार्यकाल में भी उनके किये कामों को देश को नहीं भूलना चाहिए था। जब असम धधक रहा था, तब उन्हें कमान सौंपी गई थी। अनवरा जी असम के लोगों के दिलों पर ऐसा असर रखती थीं कि उनके कदम भर बढ़ाने से सुक़ून लौटने लगा।
वैसे तो अनवरा जी असम असेंबली में चार बार चुन कर आई,सबसे ख़ास बात थी कि उनकी शख़्सियत,केवल उनकी थी। वह जब राजनीति में नही थीं, तब गर्ल्स कॉलेज में इकनॉमिक्स की टीचर थीं। उनकी अपने विषय पर मज़बूत पकड़ थी। विद्यार्थियों में उन्हें मां जैसी मोहब्बत हासिल थी, जो बाद के दिनों में राजनीति में भी हासिल हुई। हर एक उनके सामने अपने दुःख दर्द को बयान कर सकता था।
वह बहुत सालों तक राज्य की पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर भी रहीं। इस मिनिस्ट्री मे रहकर उन्होंने असम में ऐतिहासिक काम किये,कितनी ही इमारतें,पुल,सड़के न जाने किस कदर काम किया । वह एक बेहद मिलनसार महिला थीं,जब राज्य में उनकी प्रतिभा का असर दिखने लगा,तो हुक़ूमत को महसूस हुआ कि उनकी ज़रूरत केंद्र को है। तब सन शायद सन 88 में वह राज्यसभा सांसद बनाई गईं।
अनवरा तैमूर जी और उनके दल ने मिलकर असम में ऐतिहासिक काम किये। इन दोनों के बीच आख़िर में एक दरार आई और वह दल छोड़कर बाद के दिनों में चली गईं। यह दोनों के लिए अभिशाप तो साबित हुआ, इसका सबसे बड़ा खामयाज़ा असम राज्य ने भुगता। वह दल से तो गईं मगर कभी उनके दिल से दल न गया और दल के दिल से वह भी न गईं। बाद में वह अपने बेटे के पास ऑस्ट्रेलिया चली गईं। बहुत अफ़सोस यह कि सन 2020 के सितम्बर में आख़री सांस अपने असम, अपने भारत से दूर रहकर ली ।
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बताते हैं ऑस्ट्रेलिया में उनका घर मिनी भारत था। जिसमें सभी फेस्टिवल मनाए जाते थे। भारत के राष्ट्रीय त्योहारों पर वह अपनी पौत्री के साथ मिलकर तरह तरह के खाने बनाती, पड़ोसियों को दावते देती और उन्हें भारत की तहज़ीब के नमूने दिखाती। अनवरा जी में अपनी माटी को लेकर,अपने मुल्क को लेकर, बहुत मोहब्बत थी ।
उन्होंने तमाम स्कूल खोले, सड़कें बनवायी,खेत खलिहान पर काम किया। गांव-गांव टहली, लोगों को पढ़ाई के लिए तैयार किया। अपने को ख़ुद गढ़ने की प्रेरणा दी और यह समझाया कि ख़ुद पर भरोसा रखो, ईमानदार रहो, मेहनत करो, लोगों का साथ दो, कमज़ोर को उठाओ, बेसहारों का सहयोग करो और खूब आगे बढ़ो।
अफ़सोस यह है कि सैयदा अनवरा तैमूर जैसी शख़्सियत हमारी बातचीत से नदारद रहती हैं। हम उन तमाम लोगों को तो याद करते हैं, जो हमारे प्रिय दलों में कभी नहीं रहे मगर उन्हें भूल जाते हैं, जिन्होंने हमारे साथ चलकर इतिहास गढ़ा है। आज कोई सोच भी नहीं सकता कि इस देश को असम ने देश की पहली मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री दिया था।
आज उनके जन्मदिन पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से ख़िराज ए अक़ीदत, नमन और श्रद्धांजलि। हम उनके किये कामों को, खड़े किए उदाहरणों को और जज़्बे को सलाम करते हैं।
(हफ़ीज़ क़िदवई, लेखक,राजनीतिक विचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
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