शख्सियत

जन्मदिन विशेष: आशा भोसले, जिन्होंने अपने गानों से करोड़ों दिलों पर किया राज, 7 दशक बाद भी कायम है उनका जादू

आशा भोसले ने जब फ़िल्मों में गाना शुरू किया तब शमशाद बेगम, गीता दत्त, लता मंगेशकर जैसी बेहतरीन गायिकाओं का दौर था। ऐसे में आशा भोसले को ख़ुद को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती थी।

आशा भोसले आज अपना 90वां जन्मदिन मना रहीं हैं।
आशा भोसले आज अपना 90वां जन्मदिन मना रहीं हैं। फोटो: सोशल मीडिया

मख़मली आवाज़ वाली लेजेंडरी गायिका आशा भोसले आज अपना 90वां जन्मदिन मना रहीं हैं। आशा भोसले एक ऐसा नाम हैं, जिसने भारतीय फ़िल्म संगीत में अपनी क़ाबलियत के बूते अपना नाम बुलंद किया। यूं तो वह सुरों की मलिका लता मंगेशकर की छोटी बहन हैं, लेकिन उनके सामने भी संघर्षों का बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसे उन्होंने अपनी ख़ूबसूरत गायकी से पार किया। 1957 में रिलीज़ हुई मशहूर फ़िल्ममेकर बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म नया दौर के गाने, ‘मांग के साथ तुम्हारा’ से उन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री में पहचान मिली थी। आशा भोसले को हिंदी फ़िल्मों में सभी तरह की गायकी जैसे सॉफ़्ट गाने, कैबरे, डिस्को, ग़ज़ल, भजन, कव्वाली और पॉप सभी में महारथ हासिल है।

आशा भोसले का जन्म आज ही के दिन यानी 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मशहूर रंगकर्मी और गायक थे। आशा भोंसले का जन्म संगीत से जुड़े परिवार में हुआ था। इसलिए उनके पिता नें उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा काफ़ी छोटी उम्र में ही दे दी थी। आशा भोसले जब सिर्फ 9 साल की थीं, तभी उनके पिता गुज़र गए। पिता के गुज़र जाने के बाद आशा भोसले का परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद बम्बई आ गया।

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पिता के गुज़र जाने के बाद परिवार का पूरा ज़िम्मा आशा भोसले की बड़ी बहन लता मंगेशकर पर आ गया। ऐसे में परिवार चलाने के लिए आशा भोसले ने बड़ी बहन लता मंगेशकर के साथ मिलकर फ़िल्मों में अभिनय और गाना शुरू किया। इन दोनों से छोटी बहन उषा मंगेशकर भी बाद में फ़िल्म इंडस्ट्री की मशहूर गायिका बनीं। वहीं, सभी बहनों से छोटे भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर जाने-माने फ़िल्म संगीतकार बने।

आशा भोसले ने जब फ़िल्मों में गाना शुरू किया तब शमशाद बेगम, गीता दत्त, लता मंगेशकर जैसी बेहतरीन गायिकाओं का दौर था। ऐसे में आशा भोसले को ख़ुद को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती थी। कहते हैं कि आशा का सामना उस वक़्त ख़ुद अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर से था। क्यूंकि वह उस वक़्त तक बहुत बड़ी गायिका बन चुकी थीं। वह हर संगीत निर्देशक की पहली पसंद हुआ करती थीं। फिर भी 1948 में उन्हें हिंदी फ़िल्म चुनरिया में संगीतकार हंसराज बहल के संगीत निर्देशन में सावन आया गीत गाने का पहला मौक़ा मिला।

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40 के दशक में जब फ़िल्म इंडस्ट्री पर गीता दत्त, शमशाद बेग़म और लता मंगेशकर जैसी गायिकाओं का बोलबाला था। उस दौर में आशा भोसले गाने गाना चाहतीं थीं, लेकिन उन्हें गाने का मौक़ा तक नहीं दिया जाता था। ऐसे में आशा भोसले सिर्फ़ दूसरे दर्जें की फ़िल्मों के लिए ही गाने गा पाती थीं। 50 के दशक में हिंदी सिनेमा की और गायिकाओं की तुलना में आशा भोसले ने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड की फ़िल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। उनके गीतों के संगीतकार ए.आर. कुरैशी, सज्जाद हुसैन और ग़ुलाम मोहम्मद थे, जिन्हे फ़िल्म इंडस्ट्री में कोई ख़ास पहचान नहीं मिली थी। 1952 में दिलीप कुमार की फ़िल्म संगदिल के गानों नें उन्हें पहली बार प्रसिद्धि दिलाई, जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे। उसके बाद बिमल रॉय ने भी एक मौक़ा आशा भोसले को 1953 में रिलीज़ हुई अपनी फ़िल्म परिणीता में दिया। राजकपूर ने 1954 में रिलीज़ हुई अपनी फ़िल्म बूट पॉलिश का मशहूर गाना नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है को आशा भोसले के साथ मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में रिकॉर्ड करवाया। इस गाने ने भी आशा भोसले को काफ़ी प्रसिद्धि दिलाई।

संगीतकार ओ.पी. नैयर ने आशा भोसले को एक बहुत बड़ा मौक़ा 1956 में रिलीज़ हुई फ़िल्म सी.आई.डी के गानों के लिए दिया। उसके बाद 1957 में रिलीज़ हुई बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म नया दौर के गानों ने आशा भोसले को फ़िल्म इंडस्ट्री की एक क़ामयाब गायिका बना दिया। इस फ़िल्म के संगीतकार भी ओ.पी. नैयर थे, बाद में ओ.पी. नैयर ने आशा भोसले की गायकी को ख़ूब तराशा और दोनों की जोड़ी ने एक से बढ़कर एक सुपरहिट गाने हिंदी सिनेमा को दिए। उसके बाद संगीतकार सचिन देव बर्मन और रवि जैसे संगीतकारों ने भी आशा भोसले को ख़ूब मौक़ा दिया। 1966 में रिलीज़ हुई तीसरी मंज़िल में आशा भोसले ने आर.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में गाने गाकर काफ़ी शोहरत पाई।

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फ़िल्ममेकर बी.आर.चोपड़ा की हर फ़िल्म के लिए तो जैसे आशा भोसले की ही आवाज़ को हमेशा के लिए साइन कर लिया गया था। वहीं संगीत निर्देशक ओ.पी.नय्यर ने भी अपनी हर नायिका के लिये आशा की आवाज़ को चुन लिया था, हालांकि आशा भोसले से पहले वह अपने चुलबुले क़िस्म के गाने गीता दत्त से रिकॉर्ड करवाया करते थे। लेकिन आशा भोसले के अंदर उन्होंने एक वर्सटाइल सिंगर की ख़ूबी देखी। इसके बाद वह अपने सभी गाने आशा भोसले से रिकॉर्ड करवाने लगे। एक इंटरव्यू में उन्होने ख़ुद इस बात को क़बूला था कि वह जिस तरह के गाने बनाते हैं, उसके लिए सिर्फ़ आशा की आवाज़ ही परफ़ेक्ट है। वहीं उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में एक भी गाना आशा भोसले की बड़ी बहन लता मंगेशकर से नही गवाया।

60 और 70 के दशक में आशा भोसले फ़िल्मों की मशहूर कैबरे डांसर और अभिनेत्री हेलन की आवाज़ भी बन गईं थीं। हेलन के ज़्यादातर कैबरे आशा की ही आवाज़ में होते थे। इस तरह उन्होंने बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना ली। अब आशा का नाम फ़िल्म इंडस्ट्री की गायिकाओं में दूसरे नम्बर पर लिया जाने लगा था। जहां उनकी बहन लता मंगेशकर ने सॉफ़्ट गानों से अपनी पहचान बनाई तो वहीं आशा भोसले ने हर तरह के गानों को गाकर इंडस्ट्री में अपनी अलग ही पहचान बना ली।

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आशा भोसले ने अपने संगीतकार पति आर.डी.बर्मन के साथ मिलकर कई हिट गाने हिंदी सिनेमा को दिए। ओ हसीना ज़ुल्फ़ों वाली और पिया तू अब तो आजा जैसे आशा के सुपर हिट गानों का संगीत उनके पति संगीतकार आर.डी.बर्मन ने ही तैयार किया था। आशा भोसले ने अपने दौर के सभी बड़े गायक-गायिकाओं के साथ युगल गीत गाए, जिनमें मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे, किशोर कुमार, महेन्द्र कपूर, शमशाद बेग़म, लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर वगैरह शामिल हैं। उन्होंने शंकर-जयकिशन से लेकर ए.आर. रहमान तक के संगीतकारों के साथ काम किया।

अपने एक इंटरव्यू में आशा भोसले ने कहा कि संगीत समंदर की तरह हैं। इसमें कितना ही घुसेंगे उतना कम हैं। मेरा आज भी मानना हैं कि मैं संगीत का कुछ नहीं जानती। संगीत मेरी सांसों में बसा हुआ है। लोग कहते हैं कि संगीत छोड़ दो तो मेरा जवाब होता है कि सांस लेना कैसे छोड़ दूं। जब तक आवाज़ है तब तक गाऊंगी। शायद आवाज़ और मैं साथ में दुनिया से जाएंगे।

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फ़िल्म इंडस्ट्री में जब मदन मोहन के संगीत का ज़िक्र होता है, उसके साथ में हमेशा लता मंगेशकर की बात होती है। ठीक उसी तरह ओ. पी. नैय्यर के संगीत के साथ आशा भोसले का नाम आता है। 1981 में आशा भोसले ने मशहूर म्युज़िक डॉयरेक्टर ख़य्याम के संगीत निर्देशन में फ़िल्म उमराव जान की सारी गज़लों को गाकर पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया। फ़िल्म उमराव जान की सभी ग़ज़लें सुपरहिट साबित हुईं। तब सब ने आशा भोसले की क़ाबिलियत का लोहा माना। उमराव जान की सभी गज़लों को लोगों ने खूब पसंद किया, जिसे लोग आज भी बहुत दिल से सुनते हैं।

90 के दशक में संगीत का दौर बदला, गीतकार बदले, संगीतकार बदले लेकिन इस दौर में भी आशा भोसले की मख़मली आवाज़ का जादू वैसे ही बरक़रार रहा। इस दौर में वह अनु मलिक, नदीम-श्रवण, जतिन-ललित, उत्तम सिंह और ए.आर. रहमान जैसे नए संगीतकारों के गाने गा रहीं थीं। इस दौर में वह एस.पी. बालासुब्रमण्यम, उदित नारायण, कुमार सानू, अभिजीत और सोनू निगम जैसे नए गायकों के साथ जुगलबंदी कर रहीं थीं।

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2000 के दशक में जब संगीत की दुनिया में प्राइवेट एल्बम्स का दौर आया तो इस दौर में भी आशा भोसले पीछे नही रहीं। साल 2000 में ही उन्होंने पाकिस्तानी गायक और संगीतकार अदनान सामी के एल्बम कभी तो नज़र मिलाओ में उनके साथ गाने गाए। जो की काफ़ी सुपरहिट साबित हुआ। उसके बाद उन्होंने 2001 में आपकी आशा नाम का अपना एल्बम रिलीज़ किया। साल 2006 में उन्होंने आशा एंड फ्रेंड्स नाम का अपना एल्बम रिलीज़ किया, जिसमें उन्होंने फ़िल्म एक्टर संजय दत्त और अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के साथ गाने गाए। इसके साथ ही मशहूर क्रिकेटर ब्रेट ली के साथ भी उन्होंने यू आर द वन फ़ॉर मी गीत गाया। जिसे भी काफ़ी पसंद किया गया।

आशा भोसले ने अब तक तक़रीबन 12000 से भी ज़्यादा गीत गाने का रिकॉर्ड दर्ज किया हैं। उन्होंने हिंदी के अलावा मराठी, असमिया, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, अंग्रेज़ी, रशियन, नेपाली और मलयालम में भी गीत गाए हैं। आशा भोसले ने अपने पूरे कॅरियर में तक़रीबन 7 बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड अपने नाम किया। 1981 में फ़िल्म उमराव जान की ग़ज़ल दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए और 1986 में फ़िल्म इजाज़त के गीत मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास के लिए उन्हें दो बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार से भी नवाज़ा गया। 1996 में फ़िल्म रंगीला के गानों के लिए उन्हें स्पेशल अवॉर्ड दिया गया था। 2001 में उन्हें फ़िल्मफ़ेयर ने लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया।

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अपने हालिया इंटरव्यू में आशा भोसले कहतीं हैं कि उम्र से भले ही वह 90 साल की हो गईं हो लेकिन दिल से 20 साल की हैं। यही वजह है कि वह आज तक गा रही हैं, आशा भोसले ने ख़ुद को संगीत की दुनिया का आख़िरी मुग़ल बताया।

भारत सरकार ने आशा भोसले को संगीत में उनकी सेवा के लिए साल 2000 में उन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सम्मान दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड से नवाज़ा, वहीं 2008 में उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया। आज आशा भोसले अपनी उम्र के इस पड़ाव में भी गाने गा रहीं हैं। वह आज कल कई सिंगिंग रियलिटी शोज़ में बतौर ख़ास जज के तौर पर भी नज़र आती हैं।

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