भारत की आजादी के संघर्ष के दौरान जिन प्रमुख नेताओं ने सभी धर्मों की एकता, सद्भावना व समता तथा न्याय की राह पर आम राय बनाई उनमें खान अब्दुल गफ्फार खान का नाम बहुत आदर से लिया जाता था। महात्मा गांधी से नजदीकी व उनकी तरह अहिंसक संघर्ष में गहरी आस्था के कारण उन्हें फ्रंटियर गांधी भी कहा जाता है। उन्हें जीवन भर लोगों का बहुत गहरा प्यार मिला। वे बहुत सादगी का जीवन जीते हुए भी लोगों के दिलों के बादशाह थे। अतः उन्हें बादशाह खान का नाम दिया गया जो सबसे लोकप्रिय हुआ।
6 फरवरी को उनका जन्मदिवस है। जिन जीवन मूल्यों के लिए उन्होंने जीवन भर तपस्या की व संघर्ष किया, अपना बहुत सा समय पहले औपनिवेशिक राज व फिर पाकिस्तानी हुकूमतों की जेलों में बिताया, उन मूल्यों की आज दक्षिण एशिया को बहुत जरूरत है व उनके जन्म दिवस पर हमें यह जरूर याद रखना चाहिए।
उन्होंने ‘खुदाई खिदमतगारों’ का गठन अहिंसा के ऐसे सिपाहियों के रूप में किया जिनमें असीमित साहस व सहनशक्ति का अद्वितीय मिलन था। महात्मा गांधी जब इस क्षेत्र के दौरे पर गए तो उन्होंने कहा - “...जब मैं अंततः गांधीजी से मिला, मैंने उनके अहिंसा और रचनात्मक कार्यक्रम के बारे में सब कुछ सीखा। इससे मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई।”
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सीमांत से लौटकर गांधीजी ने लिखा - “ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां के बारे में दो राय नहीं कि वे खुदा के बंदे हैं। वे वर्तमान की हकीकत में विश्वास रखते हैं और जानते हैं कि उनका आंदोलन खुदा की मर्जी से फैलेगा। अपने उद्देश्य को पूरा करने में वे अपनी आत्मा तक उसमें लगा देते हैं और क्या होता है उसके प्रति निरपेक्ष रहते हैं।... सीमांत प्रांतत मेरे लिए एक तीर्थ रहेगा, जहां मैं बार-बार जाना चाहूंगा।"
सामान्य रूप से ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां से लोगों का लगाव अद्भुत है। यह लगाव केवल खुदाई खिदमतगारों का ही नहीं है बल्कि प्रत्येक स्त्री, पुरुष और बच्चा उन्हें जानता-पहचानता है और उन्हें प्यार करता है।” वापिस जाते हुए गांधीजी ने कहा, “मैं आपको मुबारक देता हूँ। मैं यही प्रार्थना करूंगा की सीमांत के पठान न केवल भारत को आजाद कराएं बल्कि सारे संसार को अहिंसा का अमूल्य संदेश भी पढ़ाएं ...।”
पंडित नेहरू ने कहा था - ‘‘बहुत कम लोग जानते हैं कि ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां पिछले छह महीने से चुपचाप लेकिन महान कार्य कर रहे हैं। वह आडम्बर में विश्वास नहीं करते, लेकिन वह लोगों से मिलने गांवों में जाते हैं, उन्हें संगठित करते है, हर तरह से प्रोत्साहित करते हैं।
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नागरिक अवज्ञा आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन में खुदाई खिदमतगारों ने बहुत साहस की भूमिका निभाई। सांप्रदायिकता उभरने पर वे हिन्दुओं व सिखों की रक्षा के लिए आगे आए। उधर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेत्तृत्व में गढ़वाली हिंदू सिपाहियों ने अंग्रेज शासकों का खुदाई खिदतमगारों पर गोली चलाने का आदेश मानने से इंकार कर दिया।
बादशाह खान को अंग्रेज शासकों ने बार-बार जेल में डाला। उनकी यह जेल पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद भी जारी रही। 98 वर्ष की आयु में जब पेशावर में उनका देहान्त हुआ। उन्होंने कहा था, “कोई भी सच्चा प्रयास बेकार नहीं जाता। इन खेतों को देखो। यहाँ जो अनाज बोया गया है, उसे कुछ समय तक धरती के भीतर ही रहना है। फिर उससे अंकुर फूटता है और धीरे-धीरे वह अपने जैसे हजारों अन्न के दानों को जन्म देता है। यही बात अच्छे उद्देश्य के लिए किए गए हर प्रयास पर लागू होती है।”
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बादशाह खान एक शानदार व महान इंसान थे .... जो भी उनसे मिलना था उनकी सादगी, सत्य व संघर्ष पर आधारित जीवन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। आज जब हम बेहतर दक्षिण एशिया बनाने के लिए आदर्शों की, प्रेरणा की तलाश करते हैं तो बादशाह का प्रेरणादायक व्यक्तित्व हमें उम्मीद की बड़ी किरण की तरह प्रेरित करता है।
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