रहिए अब ऐसी जगह चलकर, जहां कोई न हो
हम सुखन कोई न हो, हम जुबां कोई न हो।
यह मिर्जा गालिब का शे’र है, जिसे पिछले दिनों रेख्ता से बातचीत के आखिर में टॉम आल्टर ने सुनाया था। और आज टॉम ऑल्टर ऐसी जगह चले गए जहां अब इस दुनिया के लोग नहीं होंगे।
गजब के अभिनेता, शानदार नाट्य कलाकार, उर्दू जुबां के पैरोकार और क्रिकेट को लेकर जुनूनी, टॉम आल्टर नहीं रहे। वही टॉम ऑल्टर, जिन्हें हमने, आपने बेशुमार हिंदी फिल्मों में अग्रेज़ की भूमिका में देखा। वही टॉम ऑल्टर जो रंगमंच पर जिस भी चरित्र में आते, तो वह किरदार जिंदा हो उठता। रंगमंच पर उनकी आखिरी मौजूदगी ऐसी थी, जिसने आखिरी मुगल बादशाह को रंगून की कब्र से उठाकर दिल्ली की सल्तनत तक पहुंचा दिया था। इस नाटर में टॉम ने आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर का किरदार निभाया था। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस भूमिका में टॉम तो थे ही नहीं, स्टेर पर तो बहादुरशाह जफर ही अपनी मुफलिसी में मुब्तिला नजर आ रहे थे। ऐसे शानदार कलाकार थे टॉम।
Published: 30 Sep 2017, 12:39 PM IST
टॉम इंडियन-अमेरिकन थे। उनकी पैदाइश मसूरी में हुई थी। उनके गोरे रंग की वजह से उन्हें आमतौर पर अंग्रेज अफसर या विलेन के रोल ही मिलते थे। हिंदी फिल्मों के अलावा बांगला, असमिया और मलयाली फिल्मों ने भी टॉम को 'अंग्रेज' करेक्टर के लिए ही काम दिया।
टॉम ने 1976 में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की मशहूर जोड़ी वाली फिल्म चरस से हिंदी फिल्मों में अपना सफर शुरु किया था। इस फिल्म में टॉम के किरदार को लोगों ने खूब पसंद किया गया। उन्होंने बॉलीवुड की मसाला फिल्में कीं, तो सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’, रिचर्ड एनटनबरो की ‘गांधी’ राजकपूर की ‘राम तेरी गंगा मैली’ जैसी फिल्मों में भी गजब का अभिनय किया। 70 के दशक की जबरदस्त हिट फिल्म मनोज कुमार की ‘क्रांति’ में अंग्रेज अफसर की भूमिका में उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया।
Published: 30 Sep 2017, 12:39 PM IST
एक बार एक इंटरव्यू में टॉम ने कहा था कि उन्होंने मौलाना आजाद, मिर्जा गालिब, साहिर लुधियानवी का भी रोल किया है, लेकिन किसी का ध्यान उनके गोरे पर नहीं गया, क्योंकि उनका मानना था कि अगर अभिनय में दम हो तो किसी चरित्र का रंग नहीं देखते दर्शक।
हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की फिल्मों के अलावा टॉम ने कई विदेशी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने इंग्लिश फिल्म विद लव, दिल्ली!, सन ऑफ फ्लावर, साइकिल किक, अवतार, ओसियन ऑफ अन ओल्ड मैन, वन नाइच विद द किंग, साइलेंस प्लीज जैसी फिल्मों में अहम किरदार निभाए।
टॉम ने करीब 300 फिल्मों में काम किया। कहते हैं कि राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ टॉम की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाई। इसी फिल्म को देखने के बाद उन्होंने एक्टर बनने की ठानी और एफटीआईआई में दाखिला लिया।
Published: 30 Sep 2017, 12:39 PM IST
1977 में उन्होंने एफटीआईआई के अपने दोस्त नसीरुद्दीन शाह और बेनजमिन गिलानी के साथ मोटली नाम का थियेटर ग्रुप शुरु किया। उन्होंने 2014 में राज्यसभा टीवी के शो संविधान में मौलाना अबुल कलाम आजाद का रोल निभाया। जिसमें उनके किरदार को काफी सराहा गया। फिल्मों के अलावा उन्होंने अपने करियर का लंबा वक्त थिएटर को दिया है। टॉम ने छोटे पर्दे पर भी काम किया है। इसी साल उनकी फिल्म ‘सरगोशियां’ आई है, जिसमें उन्होंने मिर्जा गालिब का किरदार निभाया।
टॉम को फिल्मों के अलावा खेल में भी काफी दिलचस्पी थी। टॉम सचिन तेंदुलकर का इंटरव्यू लेने वाले पहले शख्स थे। 1988 में जब मास्टर ब्लास्टर सचिन 15 साल के थे, तब टॉम ने उनका पहला इंटरव्यू लिया।
टॉम को कैंसर था। वह काफी समय से बीमार थे। उनका मुंबई के सैफ अस्पताल में इलाज चल रहा था। जहां अक्सर वह अकेले ही होते थे। अपनी इसी रूदाद को टॉम ने रेख्ता को दिए इंटरव्यू में गालिब के शे’र के बहाने शायद यूं बयां किया था...
पड़िए अगर बीमार, तो कोई न हो तीमारदार
और मर जाइए अगर, तो नौहा ख्वां कोई न हो
अलविदा टॉम, बहुत सारे नौहा ख्वां हैं तुम्हारे, तुम्हारी फसीह जुबान याद आएगी, बात करने का तुम्हारा लहजा याद आएगा, स्टेज पर तुम्हारी अदाकारी नहीं भूलेगी, और नहीं भूल पाएगा कोई उस अंग्रेज को जो दिल से हिंदुस्तानी और जुबां से उर्दू का अलमबरदार था।
Published: 30 Sep 2017, 12:39 PM IST
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Published: 30 Sep 2017, 12:39 PM IST