हिन्दी फिल्म 'पद्मावती' की रिलीज पर विवाद की जड़ में सबसे पहले तो भगवा ध्वजवाहक हैं जो मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह के साथ इतिहास की विवेचना करते हैं। दूसरी भारतीय जनता पार्टी है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से संस्थागत स्वायत्तता को धीरे-धीरे कम करती जा रही है।
ऐसा कहा जा सकता है कि बीजेपी ने हिंदू दक्षिणपंथ के लोगों को ‘पद्मावती’ पर अपना गुस्सा निकालने की छूट देकर और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अधिकार को क्षीण करके एक नई परंपरा डाल दी है।
जाहिर है कि अगर उन पर रोक नहीं लगाई जाएगी तो इससे सीबीएफसी के अधिकार को न सिर्फ क्षति पहुंचेगी, बल्कि भविष्य में इतिहास या संघ परिवार से संबंधित मुद्दों पर बनी फिल्मों को अपनी मंजूदी देने में घबराएगा। इस प्रकार बोर्ड की कार्यप्रणाली पर राजनीति का आधिपत्य हो जाएगा।
कुछ समय पहले जब सेंसर बोर्ड के पूर्व प्रमुख पहलाज निहलानी को अचानक पद से हटाया गया था तब ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि फिल्म निर्देशक और निर्माता अब राहत की सांस लेंगे। उन्होंने जेम्स बांड की फिल्म में चुम्बन की समयावधि कम कर दी थी और फिल्म 'उड़ता पंजाब' में 89 कट लगाए थे। इसके अलावा उन्होंने 'लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का' को बोर्ड की हरी झंडी देने से साफ मना कर दिया था।
फिल्म 'पद्मावती' को लेकर भगवा ब्रिगेड का गुस्सा इस बात को लेकर है कि फिल्म में मेवाड़ की रानी की वीरांगना की छवि और प्रतिष्ठा के साथ न्याय नहीं किया गया है। कहा जाता है कि अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर रानी ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना के आक्रमण के समय बंदी बनाए जाने से पहले जौहर कर लिया था।
एक काल्पनिक रानी की मृत्यु के 700 साल बाद अब हिन्दू दक्षिणपंथी समूह के लोग फिल्म के निर्देशक और अभिनेत्री के खिलाफ दिल-दहलाने वाली धमकियां दे रहे हैं।
दर्शकों को क्या देखने की अनुमति होगी इसका फैसला संस्कृति के स्वनामधन्य संरक्षकों की ओर से ही नहीं लिया जाता है, बल्कि मंत्रालय भी इसमें शामिल होता है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ज्यूरी के खिलाफ जाते हुए अपनी तरफ से दो फिल्मों - 'एस दुर्गा' और 'न्यूड' को गोवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित होने से अचानक प्रतिबंधित कर दिया।
वह बेहद अशुभ दिन होगा जब फिल्म निमार्ताओं को भी देश छोड़ना पड़ेगा या अपनी फिल्म की शूटिंग कहीं और करनी होगी। सलमान रुश्दी की कृति पर आधारित फिल्म ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ के मामले में यह देखा गया, जिसकी शूटिंग श्रीलंका में करनी पड़ी।
फिल्म के दृश्य को काटने की मांग के लिए एक मानक व्याख्या यह बन गई है कि फिल्म से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं।
पूर्व में हिन्दू देवियों के चित्रण को लेकर भगवाधारियों का कोपभाजन बने मशहूर चित्रकार एम.एफ हुसैन को देश निकाला का कहर झेलना पड़ा था।
बिल्कुल यही बात गैलीलियो के साथ हुई थी, जिनकी इस धारणा से गिरजाघर और मध्यकालीन यूरोपीय समाज की भावनाएं आहत हुई थीं कि धरती सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। उनकी बातों को समझने में यूरोपीय समाज को 350 साल लग गए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
Published: 20 Nov 2017, 1:37 PM IST
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Published: 20 Nov 2017, 1:37 PM IST