विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः दुनिया की पहली मुंह से विकास करने वाली सरकार, जिसकी सेवा से जनता भी अब पस्त

मुख के स्तर पर जनता को इस सरकार ने इतनी राहतें दी हैं कि लोग वाह-वाह करके, धन्यवाद दे-देकर अब पस्त हो चुके हैं। अब वे इससे स्वैच्छिक अवकाश चाहते हैं, मगर सरकार ने ऐसे सभी आवेदनों को राष्ट्रहित में ठुकरा दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

यह बिना हाथ, बिना पैर, बिना कान, बिना आंख, बिना दिल-दिमाग की सरकार है। इसका सिर्फ़ मुंह ही मुंह है, जो सभी दिशाओं-दशाओं में 24×7 लहराता-फहराता-डरपाता रहता है। यह मुंह इतना गतिशील-परिवर्तनशील है कि इसने हाथ, पैर, कान, आंख, दिल-दिमाग सबका स्थान ले लिया है। जैसा कि हिंदी के न्यूज चैनल बताते हैं कि विश्व में पहली बार किसी देश को मुंह से सोचने-देखने-सुनने वाली सरकार मिली है। यह नहीं बताया जाता कि यह मुंह से ही दैनिक कर्म-अकर्म-कुकर्म भी करती है। मुंह से किए गए विकास कार्यों के चारों ओर शिलान्यास रूपी खंडहर नजर आने लगे हैं। पुरातत्व विभाग इन्हें राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित करना चाहता है, जबकि सरकार इन पर बुलडोजर चलाना चाहती है!

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मुंह से इस सरकार ने इतने अधिक काम किए हैं कि बड़े-बड़े ज्ञानी तक उनकी गिनती करना भूल जाते हैं। महंगाई इसने रिकार्ड स्तर तक घटा दी है। राष्ट्रहित में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए आज विवश होकर महंगाई बढ़ाने का दायित्व अडाणी-अंबानी, अमेरिका-चीन को लेना पड़ा है। आज तक इस सरकार ने अस्सी करोड़ रोजगार दिए हैं और बीस करोड़ और देना चाहती है। जो बेरोजगार रहना चाहते थे, उन्हें भी अब रोजगार देना पड़ रहा है!

मुंह से काला धन तो यह छह साल पहले ही खत्म कर चुकी थी, मगर इस उद्देश्य के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इतनी अधिक है कि चुनावी बांडों के माध्यम से कॉरपोरेट घरानों से गुप्त चंदा लेकर भी वह काला धन समाप्त करना चाहती है! मुख के स्तर पर जनता को इसने इतनी राहतें दी हैं कि लोग वाह-वाह करके, धन्यवाद दे-देकर अब पस्त हो चुके हैं। अब वे इससे स्वैच्छिक अवकाश चाहते हैं, मगर सरकार ने ऐसे सभी आवेदनों को राष्ट्रहित में ठुकरा दिया है। समस्याएं अब देश में ढूंढने पर नहीं मिल रही हैं। परेशान होकर कांग्रेस समस्याओं के खनन-शोधन के लिए भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है!

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मुंह इस सरकार का प्राणतत्व है। विश्व इतिहास में मुंह को इतना सम्मान किसी भी देश की, किसी भी सरकार ने कभी नहीं दिया। इस कारण मुंह इस सरकार का बहुत सम्मान करने लगा है। मुंह ने आश्वासन दिया है कि यह सरकार इसी तरह मुख-सेवा करती रही, तो वह इसका बाल भी बांका नहीं होने देगा। और गलती से हो भी गया तो उसे सीधा करना उसकी जिम्मेदारी होगी!

सरकार ने मुख महिमा देवी का विशाल मंदिर बनाने का संकल्प भी लिया है और संकल्प से सिद्धि की ओर बढ़ते हुए देवी की प्राचीन कथा के निर्माण की जिम्मेदारी विश्व हिन्दू परिषद को दी है! अपनी फैक्ट्री में वह इसके प्रचार-प्रसार के लिए  एक करोड़ दस लाख, दस हजार, एक सौ पांच ब्राह्मण पंडितों का निर्माण करेगी। इसके प्रशिक्षण सत्र का उद्घाटन और समय-समय पर प्रशिक्षण-मार्गदर्शन मुखिया जी करेंगे।

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मुख महिमा देवी के मंदिर का शिलान्यास पहले मुखिया जी के जन्मदिन पर होना था मगर इस बीच चीता श्री के भारत आगमन की अंतरराष्ट्रीय महत्व की घटना घट गई, जिसकी ओर पुतिन जी और बाइडन जी की निगाह थी। इस कारण अब गांधी जन्मदिवस पर यह रस्म संपन्न होना निर्धारित हुआ है। इस अवसर पर दस हजार पांच सौ एक पंडित मंत्रोच्चार करेंगे।

सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार इस अवसर पर मुखिया जी अपने कार्यकाल के पहले संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर इतिहास निर्माण यज्ञ भी करना चाहते हैं। इस बारे में सुरक्षा सलाहकार से राय की प्रतीक्षा की जा रही है। उसी दिन मुख महिमा देवी पर डाक टिकट जारी करने का संकल्प भी है। अगर ऐसा हो जाता है तो यह सरकार प्रतिमा निर्माण से पहले डाक टिकट जारी करने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कर लेगी!

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बताया जाता है कि मुखिया जी उस दिन अपने उद्बोधन में कहने वाले हैं कि मुख ही ईश्वर है, वेद-पुराण-उपनिषद है। मुख को इसी कारण कमल कहा गया है। मुख स्वर्ग का एकल मार्ग है। मुख रिद्धि-सिद्धि गणेश है। हर उपलब्धि का श्रीगणेश है। मुख ही अग्नि पथ और कर्तव्य पथ है। इस संसार में मुख से बड़ा कोई सुख नहीं। मुख सत्य-असत्य, ज्ञान-अज्ञान, न्याय-अन्याय से निरपेक्ष कर्मशील रहता है। एक मुख ही है, जो असत्य के महत्व को, उसकी आवश्यकता और अनिवार्यता को आज भी प्रतिपादित कर रहा है। मुख में ईश्वर का वास, सरकार का निवास है।पहले मुख-सुख के लिए लोग पान खाते थे। पान चूंकि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, इसलिए सरकार गुटखा का समर्थन करती है। यह परिवर्तन देश की अर्थव्यवस्था के लिए प्रीतीकर सिद्ध हुआ है!

बाकी प्रतीक और बिंब आदि आप सरकार के मुखिया के मुखमंडल से सुनेंगे तो वही आनंद आएगा, जो कभी आसाराम के प्रवचनों से भक्तों को आता था, रामरहीम की भक्ति से प्राप्त होता था और आजकल मोदी जी के वचनामृतों से यह हासिल होता है। उस दिन वह मुख का संबंध गांधी, विवेकानंद आदि से जोड़ते हुए यह बताएंगे कि गांधी जन्मोत्सव पर ही यह भव्य आयोजन करना क्यों आवश्यक माना गया! हो सकता है उनकी तर्कपद्धति से आपकी आंखें खुली रह जाएं और उन्हें बंद करवाने के लिए आपको नेत्र विशेषज्ञ के पास जाना पड़े। इसका लाभ यह होगा कि इससे भी अर्थव्यवस्था को गति और मति मिलेगी और वह सती होने की इच्छा के वशीभूत होने से बचेगी!

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