मंगलवार यानी पहली सितंबर से देश में अनलॉक 4.0 लागू हो जाएगा। मैंने अब इसका हिसाब ही लगाना छोड़ दिया है कि इसका क्या अर्थ है, और मुझे लगता है कि कोई भी इसका सही मायनों में समझ भी पा रहा है। भारत सरकार दरअसल कई चीजों को बंद रखकर कोरोना का संक्रमण काबू में रखने की कोशिश कर रही है। अगर सरकार लोगों को एक दूसरे से दूर रखे और सेवाओं से वंचित रखे तो कोरोना के संक्रमण की रफ्तार धीमी जाएगी।
इससे कुछ ऐसे नियम बन गए हैं, जो मुझे समझ नहीं आते। मसलन, हवाई उड़ानें तो मई से ही शुरु हो चुकी हैं, और अब उन्हें तीन महीने होने को आ रहे हैं। फ्लाइट्स को पूरी भरकर उड़ने की इजाजत है, जिसमें बीच की सीट पर भी यात्री बैठ सकते हैं। लेकिन रेलवे को लॉकडाउन की शुरुआत से ही बंद करके रखा गया है। रेलवे अपनी नियमित करीब 17,000 प्रतिदिन ट्रेन की जगह सिर्फ 230 स्पेशल ट्रेन ही चला रहा है। ऐसे में क्या तर्क है कि जहाज तो पूरा भरकर उड़ सकता है लेकिन ट्रेन नहीं चल सकती? हवाई यात्री तो दो गज की दूरी बनाए ही नहीं रख सकते, तो ट्रेनें न चलाना तो तर्कहीन लगता है।
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कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के फायदे अभी नहीं पता हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था को इससे भयंकर नुकसान हुआ है जो साफ नजर आ रहा है। सूरत से ही पिछले महीने आई एक रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है कि सामान्य दिनों की अपेक्षा उत्पादन में 25 फीसदी गिरावट आई है और इसका सबसे बड़ा कारण मजदूरों-कामगारों का न होना है।
सूरत और आसपास के औद्योगिक इलाकों से अप्रैल-मई में करीब 30 लाख लोग चले गए। यह बात 31 जुलाई को प्रकाशित हिंदू फ्रंटलाइन पत्रिका की एक रिपोर्ट में कही गई है। इन लोगों को काम पर वापस लाने का कोई रास्ता नही नहीं दिख रहा। ये लोग काम पर वापस आना भी चाहें तो भी कोई रास्ता नहीं है। ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि मिल मालिकों और दूसरे कारोबारियों ने मजदूरों-कामगारों को हवाई जहाज से वापस बुलाना शुरु कर दिया है। लेकिन, सवाल है कि रेलवे क्यों नहीं ट्रेनें चला रहा? इस बारे में कोई कुछ बताने वाला है नहीं।
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सूचना दी गई है कि दिल्ली मेट्रो इस सप्ताह शुरु हो जाएगी और अपनी क्षमता से 50 फीसदी पर काम करेगी। (सवाल वही है कि विमान सेवाओं में यह नियम क्यों नहीं), जबकि मुंबई की जीवनरेखा मानी जाने वाली मुंबई लोकल बंद पड़ी। मेरी नजर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लिखे गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की उस मार्मिक चिट्ठी पर पड़ी जिन्हें लोकल के बजाए टैक्सी से चलना बहुत महंगा पड़ता है।
स्कूल-कॉलेज बंद हैं, लेकिन परीक्षाएं लेने का सिलसिला जारी है। इसका आखिर तर्क क्या है। अगर हम स्कूल-कॉलेज को ऑनलाइन कक्षाएं लेने को कह रहे हैं तो फिर हम छात्रों को परीक्षा देने के लिए भीड़ के रूप में परीक्षा केंद्र क्यों बुला रहे हैं?
सिनेमाहॉल भी बंद रखे गए हैं क्योंकि शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए इन्हें सिर्फ 25 फीसदी क्षमता पर चलाना नुकसान का सौदा है। लेकिन किसी फिल्म की अवधि भी तो लगभग उतनी ही होती है जितनी किसी घरेलू हवाई यात्रा की, और सिनेमाघर और विमानों की सीटें भी लगभग एक जैसी दूरी पर ही होती हैं। तो फिर सिनेमाघरों को क्यों बंद रखा गया है जिससे बहुत बड़ी तादाद में मनोरंजन उद्योग के लोग जुड़े हुए हैं।
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मुझे इसमें कुछ हद तक एक विचित्रता नजर आती है, और मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी को हम जिस तरह देखते हैं उसमें कुछ नैतिकतावाद भी शामिल है। मिसाल के तौर पर, रेस्त्रां खोलने की इजाजत है, लेकिन बार बंद रखे गए हैं।. आखिर क्यों? रेस्त्रा में बैठने कोई मानक तय नहीं होता है। तो फिर बार में भी तो ऐसा ही है। लगता सरकार मदिरा सेवन करने वालों को पसंद नहीं करती है।
इसके अलावा केंद्र और राज्यों को बीच कुछ गलतफहमियां भी सामने आई हैं। मसलन केंद्र ने तो जिम खोलने की इजाजत देदी है लेकिन राज्य ऐसी इजाजत नहीं दे रहे हैं। आखिर क्यों?
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दूसरे देशों क बात करें तो वहां ज्यादातर जगह लॉकडाउन स्वैच्छिक था। भारत में इसे कर्फ्यू जैसा बना दिया गया। आज भी मुंबई पुलिस आपकी गाड़ी को जब्त कर लेगी अगर आप वाजिब वजह बाहर आने की नहीं बता पाए। सवाल है कि वाजिब वजह क्या हो, जवाब है जो पुलिस को पसंद आ जाए।
हम एक देश एक टैक्स वाले राष्ट्र हैं, लेकिन लोग स्वतंत्र रूप से इधर-उधर जाने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य जाने पर एक आवेदन देना पड़ रहा है और अनुमति मांगनी पड़ रही है। अब अनुमति मिलेगा या नहीं यह राज्य पर निर्भर है।
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जैसा कि मैंने शुरु मे कहा कि भारत ने कोरोना के संक्रमण को रोकने की कोशिश में नागरिकों को जरूरी सेवाओं से वंचित किया। क्या इसका फायदा हुआ? मुझे नहीं लगता। अर्जेंटीन के साथ भारत अकेला ऐसा देश है जहां कोरोना संक्रमितों की संख्या मार्च के बाद से लगातार बढ़ रही है। कोरोना संक्रमण रोकने का एकमात्र तरीका बड़े पैमाने पर जन व्यवहार पर निर्भर है। लेकिन भरी बैठकों में केंद्रीय मंत्री तक अपने मास्क ठोड़ी पर खिसकाए बैठे दिख रहे हैं। ऐसे में आम नागरिकों से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? और ये लोग नागरिकों से अच्छे व्यवहार के लिए कैसे कह सकते हैं। नहीं कह सकते। यही कारण है कि हम लगातार नियमों में बदलाव कर रहे हैं, लेकिन हर नियम नाकाम ही साबित हो रहा है और कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण है।
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