25 अक्टूबर 1970 को पाकिस्तान के सैनिक-राष्ट्रपति याहिया खान ने अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से वाशिंगटन में मुलाकात की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर द्वारा लिखी उन दोनों की बातचीत से संबंधित व्हाईट हाउस की एक बेहद गुप्त फाइल (जिसे 2001 में गुप्त-सूची से हटा दिया गया) में कई दिलचस्प चीजें दर्ज हैं। याहिया को ‘कड़ा, सीधी बात करने वाला और अच्छे हास्य-बोध’ वाला आदमी बताया गया है। वे सीधे-सादे लगे ‘लेकिन शायद वे जितने दिखते हैं उससे ज्यादा जटिल’ हैं। निक्सन ने भारत के बारे में पाकिस्तान को ‘मनोविकार’ को लेकर याहिया को चेतावनी दी, लेकिन उन्हें यह आश्वस्त किया कि अमेरिका लगातार इस्लामाबाद को आर्थिक मदद पहुंचाता रहेगा।
इस बातचीत में भारत में अमेरिकी राजदूत केन्नेथ कीटींग को लेकर एक दिलचस्प अंश है। हुआ यह कि जब इंदिरा गांधी (जिन्हें फाइल में मैडम गांधी कह कर संबोधित किया गया है) दिल्ली से न्यूयार्क जा रही थीं, कीटींग उन्हें विदा देने के लिए एयरपोर्ट पर नहीं थे, प्रोटोकॉल के हिसाब से उन्हें होना चाहिए था। कहानी यह है कि भारतीयों ने जानबूझकर उन्हें शर्मिंदा करने के लिए उन्हें एक खराब अलार्म घड़ी दे दी और कीटींग देर तक सोते रहे।
कुछ समय बाद, निक्सन ने याहिया की होने वाली बीजिंग यात्रा की चर्चा की। उस समय अमेरिका के चीन से कुटनीतिक संबंध नहीं थे और उसे अपने दुश्मन सोवियत यूनियन को संतुलित करने के लिए इसकी जरूरत थी। निक्सन और याहिया की बातचीत के दौरान यह तय हुआ कि किसिंजर चीन की एक गुप्त यात्रा करेंगे और उसके साथ अमेरिका के रिश्तों को स्थापित करेंगे। ऐसा अगले साल किसिंजर की पाकिस्तान यात्रा के दौरान हुआ। उनके प्रवास के बीच में ही उनके कार्यालय से सूचना आई कि वे बीमार हैं और अगले कुछ दिनों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर नहीं दिखेंगे। इस दौरान वे चीन गए और चाऊ-एन-लाई से मिले। इसी ने अगले साल 1972 में हुई निक्सन की ऐतिहासिक चीन यात्रा का रास्ता तैयार किया।
नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा को लेकर भी कुछ गुप्त बात है। लेकिन यह दुनिया से छिपी हुई नहीं है, जैसी निक्सन की यात्रा थी, बल्कि यह भारतीयों से छिपी हुई है। इस यात्रा की घोषणा कुछ दिनों पहले तक नहीं हुई थी और इसकी कोई योजना भी नहीं बनाई गई थी। सरकार ने कहा कि कोई एजेंडा नहीं है लेकिन इतना साफ है कि मोदी वहां पर्यटन के लिए नहीं गए हैं। वहां कोई साझा वक्तव्य नहीं होगा और उन दोनों की कई मुलाकातों की बतचीत भी दर्ज नहीं की जाएगी। तो वे किसलिए बात कर रहे हैं? एक लोकतंत्र में यह बेहतर होता कि सरकार अपने नागिरकों को बताती कि इस यात्रा का उद्देश्य क्या था क्योंकि इससे गैर-जरूरी बेचैनी पैदा होगी, लेकिन शायद इसके विवरण जल्द ही सामने रखे जाएंगे।
चीन के साथ हमारे रिश्ते से जुड़ी हालिया घटनाओं के बारे में हम निम्नलिखित चीजें जानते हैं:
कुछ महीनों पहले, डोकलाम नाम के भूटान में एक जमीन के टुकड़े को लेकर हमारी उनसे हिंसक भिड़ंत हुई। हम चीनी घुसपैठ को रोकने में कामयाब हुए, लेकिन अब सरकार कहती है कि चीनी सेना उस इलाके में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रही है और इस साल किसी समय फिर से कोशिश कर सकती है।
कुछ महीनों पहले, मालदीव ने भारत को ठेंगा दिखाया और चीन से मिल गई। यह आश्चर्यचकित करने वाला था क्योंकि हाल तक भारत अपने फैसलों को मालदीव पर थोपता रहा था। मालदीव 5 लाख लोगों का एक राष्ट्र है जो श्रीलंका के पास है और चीन के कतई पास नहीं है।
नेपाल में, नए नेता ने इस तथ्य को कभी नहीं छिपाया कि वे मोदी और भारत को नापसंद करते हैं और चीन से अपने देश को फिर से जोड़ना चाहेंगे।
चीन ने अपने बेल्ट और रोड पहल को आगे बढ़ा दिया है जिसमें लगभग हमारे सभी पड़ोसी शामिल हैं – श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल, और इसने भारत को संशकित कर दिया है।
यह वे चीजें हैं जिन्हें हम चीन के साथ अपने हालिया संबंधों के संदर्भ में जानते हैं और इनके बारे में न तो भारत और न ही चीन मोदी की यात्रा के दौरान बात कर रहा है।
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मोदी की इस यात्रा को भारत में अखबार के पहले पन्नों पर जगह मिल रही है, इसका मतलब यह हुआ कि जो पत्रकार विदेश मंत्रालय को कवर करते हैं उन्हें लगता है कि यह काफी महत्वपूर्ण है लेकिन चीन में इस यात्रा को लेकर उतना जोश नहीं है और इसे बेपरवाह तरीके से लिया गया है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में इस यात्रा की कवरेज पहले पन्ने पर नहीं है। आधिकारिक चाइना डेली ने मोदी की यात्रा की बजाय नार्थ और साउथ कोरिया के बीच शांति की खबर को प्रमुखता से छापा है। ऐसा आभास होता है कि भारत इस यात्रा को चीन से ज्यादा चाहता है जिसका मतलब यह हुआ कि हम उनसे कुछ चाह रहे हैं। लेकिन क्या?
कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि इस यात्रा का लेना-देना डोकलाम और 2019 के चुनावों से है। मोदी जिनपिंग से कहेंगे कि फिर से भूटान में चीनी सेना भेजकर वे उन्हें शर्मिंदा न करे, जो इस बार हमारे प्रतिरोध को दबाते हुए आएगा। मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा न हुआ हो और मोदी ने ऐसा न कहा हो, क्योंकि यह तनाव पैदा करने वाला होगा।
किसिंजर की यात्रा गुप्त थी क्योंकि इसे बताने से पूरा मिशन ही खटाई में पड़ जाता। इसका मतलब यह हुआ कि यह बात जैसे ही सार्वजनिक होती, चीनी खुलकर उनसे बात करने में सक्षम हो जाते। सोवियत को भी इसका तोड़ ढूढ़ने का मौका मिल जाता। उनकी यात्रा गुप्त थी, एजेंडा नहीं। मोदी के मामले में, यह एजेंडा है जो गुप्त है।
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