भारत विश्व का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। साल 2016 के दैरान यहां कुल उत्पादन का मूल्य 420 अरब डालर था। पिछले तीन दशकों से विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद में 16 से 20 प्रतिशत तक रहा है, और इसमें लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अनुमान है कि वर्ष 2022 तक सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 25 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा।
साल 2011 से 2015 तक इसका योगदान औसतन प्रतिवर्ष 4269.80 अरब रुपये रहा, जबकि 2017 की तीसरी तिमाही तक इसका योगदान बढ़कर 5355.42 अरब रुपये तक पहुंच गया। इसके बाद भी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा कुछ दिनों पहले जारी वैश्विक विनिर्माण इंडेक्स में 100 देशों की सूची में हमारे देश का स्थान 30वां है।
फोरम ने इसके साथ ही चौथी औद्योगिक क्रांति के लिये तैयार देशों की सूची भी जारी की है। जिसमें भारत 44वें स्थान पर लुढ़क गया है। इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे देश में विनिर्माण और उत्पादन भविष्य की चुनौतियों के लिये तैयार नहीं है।
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वैश्विक व्यापार इंडेक्स में सबसे ऊपर के पांच देश क्रमशः जापान, कोरिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड और चीन हैं। चौथी औद्योगिक क्रांति को लिये तैयार देशों की सूची में सबसे ऊपर के पांच देश हैं, अमेरिका, सिंगापुर, स्विटजरलैंड, इंग्लैंड और नीदरलैंड। जिसमें चीन का स्थान 25वां है।
अब विश्व चौथे औद्योगिक क्रांति की तरफ बढ़ रहा है। पहली औद्योगिक क्रांति 18वीं और 19वीं सदी में यूरोप और अमरीका से शुरू हुई और प्रथम विश्व युद्ध के ठीक पहले के कुछ वर्षों के दौरान दूसरी क्रांति आई। डिजिटल क्रांति के समावेश से 1980 के दशक में तीसरी औद्योगिक क्रांति का आगाज हुआ और यह दौर अभी तक चल रहा है। जल्दी ही रोबोटिक्स, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, नैनोटेक्नोलाजी, कंप्यूटिंग, बायोटेक्नालाजी, 3-डी प्रिंटिंग और आटोमेटिक वाहनों का समावेश कर चौथे औद्योगिक क्रांति का दौर आने वाला है।
पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के बाद भी विनिर्माण के इंडेक्स में 30वें स्थान पर होने का मतलब ही है, हमारे यहां आधारभूत सुविधाओं का अभाव है। नई प्रौद्योगिकी के साथ जब भविष्य में उत्पादन की बात आती है तब हम 44वें स्थान पर पहुंच जाते हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब पूरा सरकारी तंत्र लगातार विनिर्माण को बढ़ावा देने की बात करता रहता है।
मानव संसाधन और सतत संसाधन के संदर्भ में हमारा प्रदर्शन बहुत खराब है। 100 देशों की सूची में मानव संसाधन में हम 63वें और सतत संसाधन में 96वें स्थान पर हैं। वैश्विक व्यापार और निवेश में हम 55वें और संस्थागत सुविधाओं में 54वें स्थान पर हैं। आर्थिक जटिलता, इंटरनेट उपभोक्ता, मौलिक सुविधायें और व्यापार के दर के संदर्भ में हम क्रमशः 48वें, 86वें, 72वें और 94वें स्थान पर हैं। अनुसंधान पर खर्च, शोधपत्र, और पेटेंट आवेदन के मामले में क्रमशः 43वें, 66वें और 54वें स्थान पर हैं। नियामक प्रावधानों के संदर्भ में हम 96वें स्थान पर और महिला कर्मियों के संदर्भ में 90वें स्थान पर हैं।
स्पष्ट है, सरकारी दावों में भले ही विनिर्माण और उत्पादन को बढ़ावा देने की बात लगातार की जाती हो, पर तथ्य यही है कि इस संदर्भ में हम पिछड़ रहे हैं और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने को तैयार नहीं हैं। कृषि और किसान तो बेहाल हैं ही, अगर उत्पादन भी गिरने लगा तो पहले से ही गिरती अर्थव्यस्था को पटरी पर लाना नामुमकिन हो जायेगा। स्किल इंडिया और स्टार्ट अप जैसी योजनायें तो बस सरकारी प्रचार तंत्र का हिस्सा हैं, इनका असर कहीं दिखाई नहीं देता।
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