गत 2 अक्टूबर (गांधी जयंती, 2021) को ट्विटर पर ‘नाथूराम गोडसे अमर रहे’ और ‘नाथूराम गोडसे जिंदाबाद’ की ट्वीटस का अंबार लग गया। यह नारे उस दिन भारत में ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे। यह देखकर कई लोगों को बहुत धक्का लगा। जो लोग महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के प्रति देश में बढ़ते प्रशंसा भाव से परिचित हैं, उनके लिए भी गोडसे की स्तुति करने वाले इन नारों का ट्विटर पर सबसे ऊपर ट्रेंड करना आश्चर्यजनक था।
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एक लंबे समय तक साम्प्रदायिक राष्ट्रवादी गोडसे के प्रति अपनी श्रद्धा को परदे की पीछे रखते थे। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति का पितामह आरएसएस, एक ही समय में कई सुरों में बात करने में सिद्धहस्त है। परंतु साल 2014 में मोदी के पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने के बाद हिन्दू राष्ट्रवादियों के पास गोडसे की कुत्सित हरकत का उत्सव खुलकर न मनाने का कोई कारण नहीं बचा। गोडसे ने जो कुछ किया वह हिन्दू राष्ट्रवादी संस्थाओं, हिन्दू महासभा और आरएसएस की नीतियों का ही प्रतिफल था। महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद देश के तत्कालीन गृहमंत्री और गांधीजी के अनन्य अनुयायी सरदार पटेल ने एक पत्र में लिखा "जहां तक आरएसएस और हिन्दू महासभा का सवाल है, हमें प्राप्त रपटों से इस बात की पुष्टि होती है कि इन दो संगठनों, विशेषकर पहले (आरएसएस), की गतिविधियों के कारण देश में ऐसा वातावरण बना जिसके चलते यह दारूण त्रासदी संभव हो सकी" (भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल द्वारा गांधीजी की हत्या के संबंध में श्यामाप्रसाद मुकर्जी को संबोधित पत्र दिनांक 18 जुलाई, 1948 - सरदार पटेल कोर्रेपोंड़ेंस खण्ड 6, संपादक दुर्गा दास)
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गांधीजी की हत्या के तुरंत बाद आरएसएस ने यह दावा किया कि नाथूराम ने आरएसएस को छोड़ दिया था। परंतु नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि तीनों गोडसे बंधु आरएसएस की गोद में ही पले-बढ़े थे और नाथूराम ने कभी आरएसएस को त्यागा नहीं था। सरदार पटेल ने इस घटना के लिए हिन्दू महासभा के अतिवादी तबके को दोषी ठहराया। बाद में जीवनलाल कपूर आयोग ने बापू की हत्या में गोडसे के अलावा विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका की भी पुष्टि की।
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सरदार पटेल ने यह भी लिखा कि आरएसएस ने मिठाई बांटकर महात्मा गांधी की हत्या का उत्सव मनाया और वे इसे गांधी वध कहते हैं। वध एक मराठी शब्द है, जिसे किसी दानव का अंत करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसके साथ ही तत्समय आरएसएस मुखिया गोलवलकर ने तेरह दिनों के शोक की घोषणा भी की। इस प्रकार संघ ने एक ओर मिठाइयां बांटीं और दूसरी ओर शोक की घोषणा की। इससे यह पता चलता है कि यह संगठन किस सफाई से एकसाथ अलग-अलग बातें कर सकता है। गांधीजी के नेतृत्व वाले ब्रिटिश विरोधी आंदोलन को संघ एक प्रतिक्रियावादी कवायद मानता था जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर नहीं ले जाएगा। इसलिए संघ ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया और कई दशकों तक नागपुर स्थित अपने मुख्यालय के भवन पर तिरंगा नहीं फहराया।
गांधीजी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अधिकांश भारतीयों के मन और बुद्धि दोनों को छुआ, फिर चाहे वे किसी भी धर्म, क्षेत्र या जाति कि क्यों न हों। वे एक तरह से भारतीयता के मूर्त रूप थे और हमारे देश की संत परंपरा के वाहक थे। समय के साथ, पूरी दुनिया के शीर्ष नेताओं ने गांधीजी के सिद्धांतों की प्रभावशीलता और प्रासंगिकता को स्वीकार किया और संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनकी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) सहित दुनिया भर की कई हस्तियों ने उनकी शिक्षाओं प्रेरणा ग्रहण की और यह स्वीकार किया कि समता, शांति और न्याय के उनके संघर्ष को गांधीजी के सिद्धांतों ने राह दिखाई।
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यही कारण है कि औपचारिक रूप से संघ-बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व कभी गोडसे को महिमामंडित नहीं करता। यही कारण है कि संघ परिवार गांधीजी के जन्मदिवस पर उनके प्रति सम्मान के प्रदर्शन का नाटक करता है। परन्तु संघ परिवार के निचले स्तर के नेता यह जाहिर किए बिना नहीं रह पाते कि वे गोडसे के प्रशंसक हैं। वे खुलेआम यह कह रहे हैं कि वे गांधीजी की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते। संघ के एक पूर्व प्रमुख राजेंद्र सिंह ने कहा था कि "गोडसे का इरादा नेक था"। संघ में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो निजी बातचीत में गोडसे के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते आए हैं। अब वे खुलकर बोल रहे हैं।
हम सब को याद है कि फिल्म सितारे कमल हासन को मई 2019 में किस बुरी तरह से ट्रोल किया गया था। उनका कसूर यह था कि उन्होंने कहा था कि स्वाधीन भारत का पहला आतंकवादी हिन्दू था और उसका नाम था नाथूराम गोडसे। हाल के वर्षों में उत्तर भारत के कई शहरों (जिनमें मध्यप्रदेश का ग्वालियर शामिल है) में गोडसे के मंदिर और मूर्तियां स्थापित हुई हैं। ग्वालियर में उस स्थान पर एक लाइब्रेरी की स्थापना भी की गई थी जहां महात्मा गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचा गया था। बाद में, भारी विरोध के चलते उस लाइब्रेरी को बंद कर दिया गया।
बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कई मौकों पर गोडसे को देशभक्त और राष्ट्रवादी बताया हालांकि उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े। मालेगांव बम धमाके में आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा था कि गोडसे देशभक्त था, देशभक्त है और देशभक्त रहेगा। उन्हें उनकी टिपण्णी वापस लेने के लिए कहा गया और उन्हें (वे भोपाल से लोकसभा सदस्य हैं) रक्षा मामलों पर संसदीय समिति से हटा दिया गया। बीजेपी के अनिल सौमित्र ने गांधीजी को 'पाकिस्तान का राष्ट्रपिता' बताया था।
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महाराष्ट्र में काफी समय से 'मी नाथूराम बोल्तोय" (मैं नाथूराम बोल रहा हूं) शीर्षक नाटक का अलग-अलग स्थानों पर मंचन किया जा रहा है, जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ रही है। दूसरी ओर, गांधीजी को राष्ट्रविरोधी, हिन्दू-द्रोही और मुस्लिम-परस्त बताया जा रहा है। गांधीजी के विरुद्ध प्रकाशित साहित्य अधिक नहीं है, परन्तु कम से कम एक पुस्तक, "गांधी वास एंटीनेशनल' के बारे में हम जानते हैं। बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने कहा था कि गोडसे को लेकर शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है। बाद में, वरिष्ठ नेताओं के कहने पर उन्होंने अपने शब्द वापस ले लिए थे।
'गांधी से नफरत करो' अभियान के तहत, नरेन्द्र मोदी पर बायोपिक के निर्माताओं ने गोडसे पर बायोपिक बनाने की घोषणा की है। संघ परिवार के सदस्यों की यह विभिन्न टिप्पणियां, जिनमें से कुछ के मामले में शीर्ष नेतृत्व ने आपत्ति भी ली, इस परिवार के असली चेहरे को बेनकाब करती हैं। नाथूराम गोडसे ने क्षणिक भावनाओं के वश में होकर महात्मा गांधी की हत्या नहीं की थी। वह हिन्दू राष्ट्र और अखंड भारत की विचारधारा से प्रेरित था। संघ परिवार हमेशा से सांझा भारतीय संस्कृति के खिलाफ रहा है और शाखाओं और सरस्वती शिशु मंदिरों, कारपोरेट नियंत्रित मीडिया और हाल में सोशल मीडिया के जरिए अपने धर्म-आधारित राष्ट्रवाद का प्रचार करती आई है। ट्विटर पर हाल में जो तूफान उठा उससे हमें यह समझ आ जाना चाहिए कि जिस विचारधारा के कारण महात्मा गांधी की हत्या हुई वह अब खुलकर हम सबके सामने है। गोडसे का महिमामंडन इस विचारधारा की गहरी जड़ों का नजर आने वाला हिस्सा मात्र है।
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