सरकारी पेंशनभोगियों के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है। मैं भी ऐसे ही लोगों में हूं। अब तो महसूस होने लगा है कि सरकार को अच्छा नहीं लगता कि सीजीएचएस (केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना) के तहत दी जा रही अपर्याप्त देखभाल के बावजूद अब हम ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं। हमारी पेंशन या उसका एक हिस्सा इस आधार पर रोक दिया जाता है कि हमने जीवित होने या फिर ब्रेन डेड (बेशक यह गैर-वाजिब है लेकिन ब्रेन डेड होना हमारी सेवा की शर्त थी और उच्च पदों पर पदोन्नत किए जाने की अनिवार्य आवश्यकता) होने के सबूत समय रहते नहीं दिए।
खैर, सरकार ने पेंशन नहीं देने की एक और वजह खोज ली है- कदाचार। अगर हम कोई गंभीर कदाचार करते हैं तो सरकार के पास हमारी पेंशन रोकने/काटने का अधिकार हो गया है। सरकार ने इसके लिए नियमों में जरूरी संशोधन कर दिए हैं।
नियमों में ‘कदाचार’ को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए यह मोदी के सूट की आलोचना, सीतारमण से यह पूछने कि वह प्याज क्यों नहीं खाती हैं से लेकर 140 करोड़ की आबादी में से किसी भी महिला- खास तौर पर बड़ी उम्र की महिलाओं- को फ्लाइंग किस देने तक, कुछ भी हो सकता है।
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फ्लाइंग किस पेंशनभोगियों के लिए भी बड़ा मुद्दा बन सकता है। फ्रेंच चुंबन, बटरफ्लाई चुंबन और यहां तक कि एस्किमो चुंबन के दिन लद गए हैं, पत्नियां सद्गुरु के भजनों और प्रवचनों की ओर बढ़ गई हैं; इसलिए, फ्लाइंग किस ही हमारा एकमात्र विकल्प है। हालांकि यह जोखिम भरा है और इससे पेंशन का भी नुकसान हो सकता है।
मुझको ही लीजिए। मैं अपना गुजारा पेंशन से करता हूं। ऐसा नहीं है कि मैंने सेवानिवृत्ति के बाद अपनी आय को बढ़ाने का प्रयास नहीं किया। मैंने दो साल तक कोशिश की कि सरकार मुझे सलाहकार वगैरह की कोई जिम्मेदारी दे दे। यूपी में किन्हीं शुक्लाओं जो फिलहाल विभिन्न मामलों में जमानत पर चल रहे हैं, के जरिये चुनाव लड़ने के लिए टिकट लेने की भी कोशिश की। लेकिन इनमें से कुछ भी काम नहीं आया। चुनाव लड़ने का टिकट नहीं मिलने की बड़ी वाजिब वजह है, आखिर कोई भी राजनीतिक दल एक सेवानिवृत्त ‘जोकर’ को टिकट क्यों दे जबकि तमाम सेवारत लोग कतार में हों?
ऐसे में, इस खौफ से कि कहीं मेरी फ्लाइंग किस की ‘लैंडिंग’ किसी गलत जगह न हो जाए, मैंने एक तलाक सलाहकार के तौर पर अपनी कंसल्टेंसी शुरू करने का फैसला किया। यह विचार मेरे मन में पिछले सप्ताह तब आया जब मैं अनुराग माथुर की पुस्तक ‘द डिपार्टमेंट ऑफ डिनायल्स’ पढ़ रहा था जिसमें नायक को थोड़े समय के लिए यह एक कॅरियर विकल्प लगता है लेकिन पत्रकारिता को ज्यादा संभावनाओं वाला क्षेत्र मानते हुए वह इसे खारिज कर देता है।
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लेकिन वह किताब 1998 में लिखी गई थी और उसके बाद से समय काफी बदल गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम और बेटी पढ़ाओ (हम ‘बेटी बचाओ’ को थोड़ी देर के लिए भूल जाएं तो बेहतर) का असर है कि भारत में तलाक की दरों में अच्छी-खासी वृद्धि देखी जा रही है जिसके लिए एनडीए सरकार का श्रेय लेना अभी बाकी है। संदेह नहीं कि श्रीमती स्मृति ईरानी राहुल गांधी के प्रति अपने जुनून से उबरते ही ऐसा करने वाली हैं।
इस बीच, मैंने इस विषय पर अपना भी शोध किया है। भारत में तलाक की दर विवाहों का लगभग 1% है जो निश्चित रूप से नीति आयोग के लिए चिंता का कारण है: अमेरिका में यह 50% है और अगर हम 2040 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं तो हमें इसी लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा! वैसे, हाल-फिलहाल चीजें बेहतर होती दिख रही हैं: आजकल युवा कम उम्र में शादी कर रहे हैं ताकि वे जल्दी तलाक लेकर और उसके बाद खुशी से रह सकें। आप सवाल कर सकते हैं कि तो फिर विवाह काउंसिलिंग क्यों नहीं कर लेते?
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ऐसा नहीं कि मैंने इसमें हाथ नहीं आजमाया लेकिन जल्द ही पता चला कि मुझे स्वयं कुछ गंभीर विवाह काउंसिलिंग की जरूरत है: दूसरे शब्दों में, कोई शैतान धर्मग्रंथ का प्रचार कर सकता है क्या? एक और बात यह है कि ‘कर्त्तव्यकाल’ (अमृतकाल तो अब बीते दिनों की बात हो गई) का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरा कर्तव्य है ‘जोड़ने की जगह तोड़ना’। बेशक सरकार इस काम को कहीं बड़े पैमाने पर कर रही है लेकिन हम नागरिकों को भी छोटे स्तर पर ही सही, इसमें अपना योगदान तो देना ही चाहिए और ऐसा करने के लिए परिवारों को तोड़ने से अच्छा तरीका भला क्या हो सकता है?
चूंकि परिवार समाज की आधारशिला हैं, इसलिए परिवारों को विभाजित करने से शुरुआत करें तो बहुत जल्द हम आदर्श ‘कर्त्तव्यकाल’ की स्थिति में पहुंच जाएंगे। परिवारों में तलाक दर में इजाफे से बेहतर क्या यह नहीं होगा कि परिवारों को ही बांट दिया जाए?
हां, मुझे लगता है कि मैं तलाक के मामलों पर परामर्श देने के लिए बेहद योग्य हूं। 46 वर्षों के वैवाहिक जीवन के आनंद के बाद मुझे एहसास हुआ कि बेशक शादियां स्वर्ग में बनती हों, गरज और बिजली भी स्वर्ग में ही बनती है और हर शादी को एक बिजली की छड़ी की जरूरत होती है।
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दूसरी बात, आईएएस ने मुझे सिखाया है कि जब आपने खुद को एक गड्ढे में डाल रखा हो और आप उसके तल तक पहुंच जाएं तो आपको और खोदना बंद कर देना चाहिए और अपनी अवसाद भरी मनोदशा का साथ छोड़कर बाहर निकलना चाहिए। यह अमूल्य ज्ञान रिटायर हो जाने के बाद के सफल कॅरियर का आधार होना चाहिए।
कुछ लोग कह सकते हैं कि भारत में तलाक की मौजूदा बेहद ख़राब दर को देखते हुए, तलाक सलाहकार सेवा के लिए बहुत गुंजाइश नहीं है। लेकिन मैं उन्हें 1932 में बाटा के भारत में प्रवेश का उदाहरण देना चाहूंगा। उस समय चेकोस्लोवाकिया के टॉमस बाटा ने भारत में जूता निर्माण कंपनी खोलने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए एक अधिकारी को भेजा। उस व्यक्ति ने कस्बों और गांवों में घूमने के बाद बताया कि भारत में जूते की कोई गुंजाइश नहीं क्योंकि यहां तो लोग जूता पहनते ही नहीं। लेकिन टॉमस ने कहा, बहुत बढ़िया, इसका मतलब है कि हमारे पास भारत में जूतों का असीमित बाजार है और इसमें कोई प्रतिस्पर्धी भी नहीं है! बाकी, जो हुआ, वह इतिहास है और मैं इतिहास का एक अच्छा विद्यार्थी हूं।
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भारत में तलाक की वर्तमान दर 1.1% हो सकती है लेकिन नेटफ्लिक्स, ज़ोमैटो, फ्लेवर्ड कंडोम और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले कि व्यभिचार अब अपराध नहीं है, के कारण यह हर साल 50% की दर से बढ़ रही है। मेरा मानना है कि तालमेल की कमी (मर्द अर्नब गोस्वामी को देखना चाहे और औरत अंजना ओम कश्यप को) अब वैसे ही तलाक का पर्याप्त आधार है जैसे सेक्स (अब एक मौलिक अधिकार) से इनकार। अब ज्यादा से ज्यादा लोगों को समझ में आने लगा है कि जन्म के समय उनके लिंग को गलत तरीके से वर्गीकृत किया गया था और उन्होंने गलत लिंग से शादी कर ली! इसलिए जब तक विवाह संस्था अस्तित्व में है, तलाक फलता-फूलता रहेगा क्योंकि जैसा कि ग्रूचो मार्क्स ने कहा था: ‘तलाक का मुख्य कारण विवाह है।’
मेरे साथ अच्छी बात यह है कि मैं अपने स्टार्ट-अप के लिए डोमेन नाम की तलाश पहले ही शुरू कर दी है। मैंने matrimony.com की तर्ज पर divorce.com के लिए आवेदन किया था लेकिन इसे लैरी किंग ने ले रखा है जो अपने आठ तलाक की वजह से इसके असली हकदार भी थे। शायद मैं उस दंत चिकित्सक/मैनीक्यूरिस्ट जोड़े के सम्मान में ‘फेंग्स एंड क्लॉज डॉटकॉम’ पर समझौता कर लूंगा जिन्होंने तलाक लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। जैसा कि कन्फ्यूशियस ने स्टार वार्स के निदेशक से कहा: आपका तलाक हो सकता है।
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