हाल के समय में ‘नई अयोध्या’ देखने वाले पर्यटकों का कहना है कि यह एक विशाल फिल्मी सेट जैसी दिखने लगी है। लोगों को सही ही लगता है क्योंकि इसमें ऐसा तमाशा है जो कट्टर हिन्दुओं को वैसे ही किसी भी तरह के शक-शुबहे से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करेगा जैसे ‘फील गुड सुपरहीरो’ की ब्लॉकबस्टर फिल्म करती। अगर आप तैयारी के दौरान वहां गए हों, तो आपने बड़ी-बड़ी मूर्तियों और भड़कीले चित्रों के अलावा बैटरी से चलने वाली गाड़ियों और 22 जनवरी को राम मंदिर समारोह के शानदार उद्घाटन के वादे को पूरा करने के लिए ‘सेट’ को अंतिम रूप देने में जुटे लोगों की भागम-भाग देखी होगी।
इस पूरे नजारे से जो लोग सिरे से गायब हैं, वे हैं स्थानीय लोग। आमंत्रित किए गए चंद लोगों को छोड़कर लोगों को उस दिन, जब उनके शहर में उत्सव का माहौल होगा, घर के अंदर ही रहने की सलाह दी गई है। सोशल मीडिया पर, विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में, तरह-तरह की सलाह दी जा रही है कि ‘क्या करें’ और ‘क्या न करें’। सबसे आम सलाह है कि उद्घाटन से पहले और इसके बाद घर से निकलने से परहेज करें।
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अयोध्या आने वाले हजारों श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए एक बड़ा तम्बू शहर यानी टेंट सिटी बनाया गया है। गुजरात स्थित एक कंपनी (इसमें हैरानी की कोई बात नहीं होनी चाहिए) कथित तौर पर टेंट सिटी का प्रबंधन कर रही है। जिस जमीन पर शहर बसा है, उसका इस्तेमाल पहले फूल उगाने और इसके भंडारण के लिए किया जाता था। इसमें उन लोगों के घर भी थे जो इस काम में लगे थे। टेंट सिटी के लिए खेत से लेकर ऐसे लोगों के घर-बार पर बुलडोजर चलाया गया।
विस्थापितों में बजरंग दल के सदस्य राम अवतार भी हैं जिन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान ‘कारसेवा’ की थी। वह कहते हैं, ‘मैं भी राम भक्त हूं लेकिन वे गरीबों को और गरीब बना रहे हैं।’ एक अन्य विस्थापित उत्पादक सपना मधुकर अधिक आक्रामक तरीके से पूछती हैं कि क्या भगवान राम को वास्तव में इतनी जमीन की जरूरत थी और क्या भगवान वास्तव में ऐसे गरीबों को परेशान करना चाहते होंगे?
हालांकि एक ‘विक्रांत’ ड्राइवर का कहना है कि कार्यक्रम के खत्म हो जाने के बाद मुआवजे और पुनर्वास के मुद्दों को सुलझाने का भरोसा दिया गया है। शहर में लगभग 900 विक्रांत ऑटोरिक्शा चला करते थे जो अब नई अयोध्या में प्रतिबंधित हैं।
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कोतवाली क्षेत्र के निवासी मोहम्मद उमर को तीर्थयात्रियों के अयोध्या आने पर दिसंबर, 1992 की घटनाओं की पुनरावृत्ति की आशंका है। उमर ने ‘न्यूजलॉन्ड्री’ से बातचीत में कहा, ‘यह मेरे साथ तब भी हुआ था और यह दोबारा भी हो सकता है।’ तीन दशक पहले उनके घर को एक उग्र भीड़ ने चिह्नित करके जला दिया था। कड़ी मेहनत से वे अपने घर और जीवन को वापस पटरी पर ला पाए, लेकिन पिछले दिसंबर के दौरान सड़क को चौड़ा करने के क्रम में उनके घर और दुकान का एक हिस्सा तोड़ दिया गया।
अब वह पास के कब्रिस्तान में रहते हैं जहां उन्होंने परिवार के चार लोगों के लिए एक अस्थायी कमरा बना लिया है। उन्होंने अपनी संपत्ति के बचे हुए हिस्से में एक हार्डवेयर स्टोर खोला है और उसे ऐसा नाम दिया है जिससे उसे तुरंत ‘लक्ष्य’ के रूप में चिह्नित नहीं किया जा सके।
उमर कहते हैं, ‘मुसलमानों के पास यहां व्यापार के सीमित विकल्प रह गए हैं। पर्यटक उन दुकानों से खरीदारी नहीं करते जिनके नाम मुस्लिम लगते हैं और हम रेस्तरां या चाय की दुकानें नहीं खोल सकते क्योंकि हिन्दू हमारा छुआ खाना नहीं खाएंगे। हमें सोच-समझकर कारोबार करना होगा।’
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सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष आजम कादरी कहते हैं, ‘भूमि माफिया हमारी मजहबी संपत्तियों को जब्त करने की धमकी दे रहे हैं। हमारी मजारें, कब्रें, मस्जिदें सब निशाने पर हैं। यहां तक कि कब्रिस्तान भी सुरक्षित नहीं हैं। सरकार एक नए मंदिर के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है लेकिन इस्लामी विरासत के लिए उसके पास पैसा नहीं है।’ उनका कहना है कि मुस्लिम समुदाय की इन संपत्तियों की रक्षा करने और उनके रखरखाव के लिए धन जारी करने की जिला प्रशासन से अपील की गई लेकिन उसने चुप्पी साध ली। वह सवाल करते हैं, ‘क्या अयोध्या केवल हिंदुओं की है?’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘नई अयोध्या’ को लेकर पनप रहे आक्रोश से पूरी तरह वाकिफ हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि भगवान राम से ऊपर कोई नहीं है और छोटे-बड़े सभी को भगवान के लिए बलिदान देना चाहिए और उनकी घर वापसी पर खुशी मनानी चाहिए।
अयोध्या में भूमि रिकॉर्ड काफी उलझे हुए हैं। इसका ज्यादातर हिस्सा पूर्व शासकों और जमींदारों द्वारा ट्रस्टों या व्यक्तियों को दिया गया था जिनमें से कई मुस्लिम थे। परिवारों की कई पीढ़ियां यहां रहती चली आई हैं जिनमें 3.5 लाख मुस्लिम भी हैं, लेकिन बहुत कम के पास संपत्ति का स्वामित्व साबित करने के दस्तावेज हैं। इन सबके सामने बहुत कम या बिना किसी मुआवजे के बेदखली के हालात हैं, भले ही उनकी जमीन बाहरी लोगों, मंदिर ट्रस्ट और सरकार द्वारा कब्जा ली जाए।
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फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन ने कथित तौर पर अयोध्या में 14.5 करोड़ रुपये की कीमत का एक प्लॉट खरीदा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके लिए यह बहुत सस्ता है और ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अमिताभ ‘द सरयू’ में 10,000 वर्ग फुट का घर बनाना चाहते हैं जो ‘पवित्र शहर में सात सितारा मिश्रित उपयोग वाला एन्क्लेव’ होगा। 81 वर्षीय बॉलीवुड दिग्गज ने कथित तौर पर कहा, अयोध्या का ‘मेरे दिल में एक विशेष स्थान है’ और वह ‘...वैश्विक आध्यात्मिक राजधानी में अपना घर बनाने के लिए उत्सुक हैं।’ यह हाउसिंग एस्टेट राम मंदिर से ज्यादा दूर नहीं है। याद रहे कि सरकार के ‘अयोध्या विजन 2047’ मेकओवर पर करदाताओं का अनुमानित 30,000 करोड़ रुपये खर्च होगा।
इस सरकार का ध्यान तो बस इस बात पर है कि पैसे ‘जरूरी’ जगह पर खर्च हो। अगर आस्था है तो फिर भला नौकरी और रोजी-रोटी की किसे जरूरत? अयोध्या एक धार्मिक पर्यटन हॉटस्पॉट बनने की राह पर है।
दिसंबर, 2023 में प्रधानमंत्री मोदी ने कथित तौर पर यहां 15,700 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं शुरू कीं। मंदिर शहर में रियल एस्टेट में उछाल देखा जा रहा है। इसे एक नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मिल ही गया है। कई होटल शृंखलाएं शहर में अपनी जगह बना रही हैं जो रियल एस्टेट डेवलपर्स को मधुर संगीत की तरह लग रही होंगी, लेकिन इन सबमें राम अवतार, सपना मधुकर या मोहम्मद उमर कहां हैं?
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सवाल यह है कि इस नई उभर रही अयोध्या के बीच आखिर पुरानी अयोध्या कहां है? अयोध्या न केवल हिंदू धर्म बल्कि इस्लाम, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लिए भी अहम केंद्र रहा है। यहां सैकड़ों हिंदू मंदिरों के अलावा सौ से अधिक मस्जिदें, पांच जैन मंदिर, गुरुद्वारे और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खोदे गए प्राचीन बौद्ध स्थल हैं। इनमें से कई जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं और इनसे जुड़े लोगों को चिंता है कि जो भी कुछ लोग यहां आते हैं और जो भी थोड़ा-बहुत चढ़ावा देते हैं, वे भी अब नए राम मंदिर के खाते में चले जाएंगे।
20 और 21 जनवरी के लिए दिल्ली और मुंबई से अयोध्या के लिए उड़ान टिकट 16,000 रुपये के आसपास थे, जबकि इन मार्गों पर औसत किराया 3,500-4,000 रुपये होता। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, मुंबई-अयोध्या उड़ान टिकट 20,000 रुपये तक हो चुके हैं। हो-हल्ला स्पष्ट रूप से वास्तविक है लेकिन अयोध्या की अंदरूनी सड़कों और बड़े होटलों को लेकर ‘चीयरलीडिंग’ मीडिया जो शोर-शराबे वाली तस्वीर पेश कर रहा है, हकीकत उससे बहुत दूर है।
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नई अयोध्या में चल रही गतिविधियों को लेकर केवल शंकराचार्य ही चिंतित नहीं हैं। रामानंद अखाड़ा जिसने दिसंबर 1949 में बाबरी मस्जिद में चोरी-छिपे रखी गई राम की मूर्ति की पूजा की, से जुड़े साधु-संत सरकार द्वारा नियुक्त श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के हाथ नियंत्रण चले जाने से खासे परेशान हैं और शिकायत कर रहे हैं कि विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर पर कब्जा कर लिया है। वे नई मूर्ति पर भी आपत्ति जता रहे हैं। हनुमानगढ़ी मंदिर के तेजपाल दास का कहना है कि जिस मूर्ति की इतने वर्षों से पूजा की जा रही है, वही मंदिर का मुख्य देवता होना चाहिए। मंदिर देवता का आसन है, मूर्तियां प्रदर्शित करने की जगह नहीं।
जाहिर है, इस दिखावटी रामराज्य में सब कुछ ठीक नहीं है।
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