“दो सालों में मेरी सरकार ने वह कर दिखाया है जो हमारे देश के इतिहास में इसके पहले कोई नहीं कर सका है।” आप अंदाज करें कि यह किसने कहा होगा। सिर्फ भारत के बारे में सोचने वालों का ध्यान इस देश के एक ही व्यक्ति की ओर जाएगा। लेकिन यह अमेरीका के राष्ट्रपति ने कहा और वह भी अपने देश की जनता के सामने नहीं। जैसे ही उन्होंने यह वाक्य कहा, पूरे हाल में ठहाका गूंज उठा। श्रोता साधारण नहीं थे। वह ट्रंप की चुनावी सभा भी नहीं थी। वे अलग-अलग देशों के नेता थे जो संयुक्त राष्ट्र संघ की इस तरह की सालाना बैठकों में आकर अपने देश और दुनिया के बारे में अपने ख्यालात और नजरिये का इजहार करते हैं। ऐसे जमावड़े में अतिरिक्त औपचारिकता बरती जाती है। अपनी नापसंदगी को पोशीदा तरीके से ही पेश किया जाता है।
ट्रंप के इस दावे पर जो हंसी फूट पड़ी, वह इसी कारण असाधारण थी। ट्रंप की शेखी पर हंसे बिना कई राष्ट्राध्यक्षों से रहा न गया। यह कोई समर्थन और अभ्यर्थना की हंसी नहीं थी, यह ट्रंप को भी समझ में आ गया क्योंकि भले वह फूहड़ हों, बेवकूफ नहीं हैं। हंसा किस पर जा रहा है, यह समझना अक्सर मुश्किल नहीं होता। इसलिए ट्रंप इस हंसी से सकपका गए।
ट्रंप ने इस हंसी की उम्मीद क्यों नहीं की थी? वे क्यों ऐसा सोच पाए होंगे कि जब वे अपनी उपलब्धि का बखान कर रहे होंगे तो शाबाशी या तारीफ में तालियां बजेंगी। तारीफ में हंसा नहीं जाता, उसकी अभिव्यक्ति तो करतल ध्वनि से ही होती है।
“करतल ध्वनि”, इसे पहली बार पढ़ा था सोवियत यूनियन से छपकर आनेवाली किताब में। ख्रुश्चेव के भाषणों का संकलन था। नेता के भाषण के बीच-बीच में लिखा रहता था: करतल ध्वनि। खोजा तो अर्थ समझ में आया। बात तालियों की हो रही थी। ट्रंप के दावे के बाद लेकिन करतल ध्वनि नहीं हुई, ठहाका लगा। वह भी ट्रंप की खिल्ली उड़ाते हुए। “मैंने इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, लेकिन कोई बात नहीं”, यह कहकर इस अपमान को अमरीका के राष्ट्रपति ने झटक दिया और आगे बढ़ गए।
ट्रंप ने भाषण में जो कहा वह ट्रंप के स्वभाव के अनुकूल ही था, लेकिन अमरीका के राष्ट्रपति के मुंह से सुनना सदमे से कम न था कि वैश्वीकरण एक बकवास है और देशभक्ति का रास्ता अपनाया जाना चाहिए। एक ऐसा देश जो हर देश को शर्मिंदा करता रहा है कि वह विश्व बाजार में क्यों नहीं शामिल होता, वह अगर कहे कि अब अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं की जरूरत नहीं तो यह सदमे से कम नहीं।
अभी लेकिन बात हम इस हंसी की कर रहे हैं। इस हंसी का, जो असल में ट्रंप की खिल्ली उड़ा रही थी, क्या मतलब था? दुनिया के सबसे ताकतवर कहे जाने वाले मुल्क के प्रमुख का मजाक उड़ाना कोई हंसी नहीं। तो क्या अमरीका का खौफ दुनिया के मन से निकल गया?
लेकिन यह हंसी दुनिया की एक बड़ी संस्था के मंच पर सुनाई पड़ी, इसलिए भी जरा अजीब थी क्योंकि इस तरह की प्रतिक्रिया तो मामूली लोगों की होती है। राष्ट्राध्यक्ष संयमित तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। यह भी हो सकता था कि वे ट्रंप को सुनकर मन ही मन हंसते लेकिन खामोश रहते। अगर वे भी इस तरह का ठहाका लगाए, इसका अर्थ यह है कि कूटनीतिक संयम से अधिक प्रबल कारण हंसी का मौजूद था। वह था ट्रंप का हास्यास्पद दावा। इस हंसी ने ट्रंप का दबदबा तुरंत ही ढाह दिया।
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गार्डियन अखबार में सोफी स्कॉट ने इस हंसी को समझने की कोशिश की है। वे लिखती हैं कि हंसी जटिल मामला है। ट्रंप ने यह तो समझा कि यह हंसी उनके समर्थन में नहीं और लोग उन्हें पसंद नहीं करते, लेकिन शायद उन्होंने यह भी सोचा हो कि वे हास्य पैदा कर सकते हैं। इतना कौशल उनमें है और वे मजेदार हैं।
ठहाके ने साफ किया कि सभा में मौजूद लोग ट्रंप को मजेदार नहीं, हास्यास्पद मानते हैं। इस हंसी ने यह भी स्पष्ट किया कि वे ट्रंप को अपनी बिरादरी का नहीं मानते। इस हंसी ने ट्रंप को शामिल नहीं किया, अलग कर दिया। ट्रंप की तरह के दावे पूरी दुनिया में सुनाई दे रहे हैं। सिर्फ वैसा ठहाका, जो संयुक्त राष्ट्र सभा में इस शेखी को ठुकराते हुए उठा, सुनाई पड़ना बाकी है।
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