जश्न का दिन था केंद्र की मोदी सरकार के लिए। शाम का एजेंडा तय हो चुका था, सरकार और बीजेपी के प्रवक्ता अपने बयानों की धार तेज़ कर स्टूडियो में सीना चौड़ा कर बैठने को तैयार थे। आखिर भगोड़ा विजय माल्या भारत आने वाला था। आने वाला नहीं था तो कम से कम उसके आने की खबर तो आने ही वाली थी। लंदन के एक कोर्ट में फैसला सुनाया जाना था।
दिल्ली में शाम होने लगी थी, दिसंबर के दूसरे सप्ताह में शहर का तापमान गिर रहा था, हवाएं भी चल रही थीं, और बस इंतजार था लंदन से आने वाली खबर का। कई राष्ट्रवादी चैनलों ने तो अपने-अपने संवाददाता भी भेज रखे थे लंदन, जो अदालत में जारी कार्यवाही का पल-पल विश्लेषण दे रहे थे।
मंच सज चुका था, लेकिन यह जो उर्जित पटेल हैं न, बड़े वो निकले। ऐन उस वक्त जब रसीदी टिकट की साइज़ में टीवी चैनलों पर विशेषज्ञ दिखने वाले थे, सब एक साथ, एक सुर में मोदी सरकार का जयकारा लगाने वाले थे, उसी वक्त इन उर्जित पटेल ने धमाका कर दिया। उन्होंने चंद पंक्तियों में विदाई संदेश आरबीआई की वेबसाइट पर पोस्ट करा दिया। निजी कारणों से इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
सारा खेल गड़बड़ा गया। साउथ ब्लॉक से लेकर नॉर्थ ब्लॉक तक सबके सब भौंचक्के रह गए कि अरे क्या हो गया। अचरज को आरबीआई के बोर्ड को भी हुआ, कम से कम एक डायरेक्टर को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसा हो गया। यह वही डायरेक्टर हैं जिनके आरबीआई बोर्ड में आने के बाद से सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी शुरु हुई थी। यह संघ विचारक हैं और अर्थशास्त्री माने जाते हैं।
अभी तीन दिन बाद 14 दिसंबर को आरबीआई बोर्ड की बैठक होने वाली है। चर्चा यह थी कि इस बैठक में सरकार आरबीआई गवर्नर पर कई किस्म के दबाव बनाएगी। कैश रिजर्व में हिस्सा मांगेगी, ज्यादा डिविडेंड की मांग रखेगी, आरबीआई को सेक्शन 7 के इस्तेमाल का हौवा दिखाकर दबाव बनाएगी। लेकिन उर्जित पटेल ने तो इस्तीफा देकर सरकार पर ही दबाव बना दिया।
मंगलवार संसद का शीत सत्र शुरु हो रहा है। उससे एक दिन पहले समूचा विपक्ष एक मंच पर जमा था और केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली मोदी सरकार के खिलाफ रणनीति तय कर चुका था। सरकार संयुक्त विपक्ष के हमले से निपटने की जोड़-तोड़ में लगी थी। उसे अंदाज़ा था कि विपक्ष राफेल सौदे, सीबीआई के वबाल आदि पर उसे घेरेगी। पेट्रोल-डीज़ल के दाम, रुपए की खस्ता हालत, अर्थव्यवस्था की कमजोरी आदि के मुद्दे उठाएगी। इसके लिए सरकारी तैयारी भी पूरी थीं।
एक और टेंशन भी था सरकार के सिर। वह था पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी मंगलवार को ही आने वाले थे। एक्जिट पोल से मिले संकेत सरकार के लिए अच्छी खबर का इशारा नहीं कर रहे थे, इसलिए भी सरकार दबाव में थी। इसीलिए लंदन से आने वाली खबर ही उसके बचाव का हथियार बनती। खबर तो आई, और जैसा सरकार चाहती थी, वैसी ही आई, लेकिन उर्जित पटेल ने सब गुड़ गोबर कर दिया।
ज्यादातर न्यूज़ चैनलों के लिए विजय माल्या ही खबर थी। सब उसी पर जुटे हुए दिखे भी। एकाध चैनल को छोड़ दें तो सबके सब के लिए उर्जित पटेल का इस्तीफा खबर बनी ही नहीं। लेकिन सोशल मीडिया बहुत जालिम है। उसने तो उर्जित पटेल को ट्रेंड करा दिया। एक साथ कई-कई हैशटैग उर्जित पटेल के नाम से ट्रेंड कर रहे थे। जैसे इन हैशटैग पर संदेशों की संख्या बढ़ी, सरकार का टेंशन भी बढ़ने लगा।
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बात आरबीआई गवर्नर से जुड़ी है, इसलिए शेयर बाजार का नर्वस होना लाजिमी ही है। यूं भी सप्ताह की शुरुआत शेयर बाजारों के लिए अच्छी नहीं रही। सोमवार को शेयर बाजार गोता खा ही चुके हैं, मंगलवार को क्या होगा, इसकी चिंता में निवेशकों, ब्रोकरों और सबसे ज्यादा वित्त मंत्री की नींद खराब होने वाली है।
सोमवार का दिन सरकार के लिए इतना खराब साबित होगा, किसी ने सोचा भी नहीं था। सुबह-सुबह उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए और पीएम मोदी को खरी-खोटी सुनाते हुए एनडीए और सरकार से अलग हो गए। कुशवाहा का अलग होना, भले ही अभी सरकार पर कोई असर न डाले, लेकिन आने वाले समय में उसके राजनीतिक गणित तो गड़बड़ा ही देगा।
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