स्वामी अग्निवेश पर हमले के अगले दिन संसद में गृहमंत्री ने देश में पीट-पीटकर लोगों को मार डालने की घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। ना तो गृहमंत्री ने और ना किसी और मंत्री ने स्वामीजी पर हुए हमले की निंदा की। गृहमंत्री ने कहा कि कानून व्यवस्था राज्य सरकारों का मामला है। फिर भी केन्द्र सरकार सोशल मीडिया कंपनियों को अफवाह फैलने से रोकने के उपाय करने को कह रही है। कानून मंत्री ने कहा कि अगर अफवाह सोशल मीडिया के जरिए फैलती है, तो जिम्मेदारी उनकी भी उतनी ही है।
स्वामी अग्निवेश पर हमला किसी अफवाह के कारण उनसे नाराज होकर अपने आप इकट्ठा हो गई भीड़ ने नहीं किया था। यह पूर्वनियोजित और संगठित हमला था। भारतीय जनता युवा मोर्चा ने स्वामीजी के पाकुड़ आने पर पहले से विरोध घोषित कर रखा था। वहां वे पहाड़िया जनजातीय समूह के एक संगठन के बुलावे पर गए थे। मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि वे भोले-भाले पहाड़िया लोगों को बरगलाने गए थे, उनको ईसाई बनाने के षड़यंत्र में शामिल थे, वे नक्सल समर्थक हैं, इसलिए हमने उनका विरोध करना तय किया था, लेकिन हमला हमने नहीं किया। यह बहुत दिलचस्प है। स्वामीजी को काले झंडे दिखाने वाले और उनपर टूट पड़ने वाले एक ही हैं। यह आप वीडियो में भी साफ देख सकते हैं। फिर भाजयुमो के दावे को सही कैसे मानें?
भारतीय जनता पार्टी की ढिठाई यह है कि उसके झारखंड प्रदेश के एक मंत्री ने कहा कि यह हमला स्वामीजी ने खुद ही करवाया था। लगातार स्वामीजी के खिलाफ विषवमन, उनपर हुए हमले की कोई निंदा नहीं और उसी सांस में खुद को उससे बरी कर लेना, यह है भारतीय जनता पार्टी की रणनीति जो वह बरसों से इस्तेमाल करती आई है।
लेकिन हम गृह मंत्री के बयान पर लौटें। वे अफवाह या झूठी खबर को इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेवार मानते हैं। यानी झूठी खबरें फैलाकर लोगों में चिंता, अनजान या दूसरे लोगों को लेकर आशंका, उनके खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा किया जाता है। इसके कारण किसी भी “दूसरे’ को देखते ही लोग उत्तेजित हो जाते हैं और बिना सोचे-समझे उनपर टूट पड़ते हैं।
गृह मंत्री गलत नहीं कह रहे, हालांकि वे कोई मौलिक बात भी नहीं बता रहे। लेकिन झूठी खबर का स्रोत सोशल मीडिया नहीं है, वह माध्यम मात्र है। प्रश्न यह है कि उसे माध्यम बनाता कौन है? गृह मंत्री इस सन्दर्भ में खुद अपनी भूमिका याद करें साल 2016 की। 9 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफजल गुरू की फांसी की बरसी पर हुए कार्यक्रम में हंगामे के बाद राजनाथ सिंह ने इलाहाबाद के एक कार्यक्रम में कहा,“मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि जो भी जेएनयू में हुआ उसको लश्करे तोयबा के प्रमुख हाफिज सईद का समर्थन प्राप्त था और इस तथ्य को सभी देशवासियों को समझ लेना चाहिए। लश्करे तोयबा ने इस घटना के प्रति अपना समर्थन घोषित किया है।”
जो राजनाथ सिंह कह रहे थे, जिस पर वे देशवासियों को विश्वास करने और जिसे साफ-साफ समझ लेने को बार-बार कह रहे थे, वह बात बहुत गंभीर थी। आखिर देश का गृहमंत्री यह कह रहा था। उनके इस बयान के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा कि गृहमंत्री ने जेएनयू के छात्रों पर बहुत गंभीर आरोप लगाया है और उन्हें इसके लिए उनके पास जो सबूत हैं, वे सार्वजनिक करने चाहिए। दूसरे राजनातिक दलों ने भी गृहमंत्री को सबूत पेश करने को कहा।
राजनाथ सिंह ने जिस बात को एक ही वकतव्य में दो बार कहकर भारत के लोगों को साफ-साफ उसे समझने को कहा था, उसके पक्ष में सबूत देने की जरूरत उन्होंने महसूस नहीं की। उनके प्रवक्ताओं ने कहा कि सरकार को विभिन्न एजेंसियों से खबर मिलती है और वह न तो अपने स्रोत और न सबूत जाहिर करने के लिए बाध्य है। उसका कर्तव्य जनता को खतरों से सावधान करना है और गृह मंत्री वही कर रहे थे।
राजनाथ सिंह जो कह रहे थे वह सफेद झूठ था। वे अपने पद का सहारा लेकर जनता पर दबाव डाल रहे थे कि इस झूठ पर वह यकीन करे। दूसरे शब्दों में वे अफवाह फैला रहे थे।
भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे संगठनों के विष-प्रचार को छोड़ दें तो राजनाथ सिंह के इस बयान के चलते पूरे भारत में जेएनयू के छात्रों, खासकर कन्हैया और उमर खालिद के खिलाफ घृणा का वातावरण बना। कन्हैया पर दिनदहाड़े दिल्ली की एक अदालत में वकीलों की एक भीड़ ने हमला किया जिसमें उनकी जान जा सकती थी। आजतक उन्हें और उनके मित्रों को हिन्दुओं के एक बड़े हिस्से में देशद्रोही माना जाता है। आज तक कन्हैया किसी सार्वजनिक जगह पर असुरक्षित है क्योंकि उन्हें देशद्रोही मानकर उनपर हमला करने को अपना राष्ट्रीय कार्य मानने वालों की संख्या कम नहीं है। मुझे एक मित्र ट्रेन में उनके साथ हुई एक घटना बता रहे थे। अपने सहयात्री के साथ बातचीत में जब उन्होंने कन्हैया के प्रति सहानुभूति जताई तो उसने तुरंत अपनी पिस्तौल निकाल ली। क्या जनता में कन्हैया के खिलाफ इतनी घृणा और जहर भरने का एक कारण गृहमंत्री का गैरजिम्मेदाराना झूठा बयान नहीं?
अगर गृह मंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर विराजमान व्यक्ति उसके कान में पड़ी किसी बात को, बिना उसकी सच्चाई की जांच किए फैलाने लगता है तो साधारण लोगों को ऐसा करने से वही कैसे रोक सकता है? राजनाथ सिंह की ओर से बाद में उनके पार्टी के लोगों ने सफाई दी कि उन्हें ऐसा बताया गया था, इस वजह से उन्हें यह लगा कि जनता को सावधान करना चाहिए।
राजनाथ सिंह ने अपने इस बयान से जेएनयू के छात्रों को असुरक्षित कर दिया। लेकिन जो उन्होंने कहा वह इसलिए कि यह उनकी राजनीतिक विचारधारा के बहुत अनुकूल था। उस बात का सच होना जरूरी नहीं था। एक झूठ को अपने पद का सहारा लेकर सच का आवरण देने में उन्हें झिझक नहीं थी।
जेएनयू के छात्रों पर उनके इस बयान के बाद मेट्रो या दूसरी जगहों पर हमले की खबरें सुनी गईं। पड़ोसी मुनीरका के निवासियों में उनके खिलाफ क्रोध भर गया। उन्होंने कई छात्रों को मकान खाली करने को कह दिया। यह सब किसने किया?
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इस तरह का झूठ फैलाकर, या अफवाह फैलाकर भारतीय जनता पार्टी के नेता विशेषकर हिंदुओं के भीतर कुछ तबकों और कुछ राजनीतिक नेताओं के खिलाफ घृणा भर देना चाहते हैं। जब आज का त्वरित गतिवाला सोशल मीडिया नहीं था तब स्वयंसेवकों के और शाखाओं के जाल के जरिए मुंहामुंही अफवाह फैलाई जाती थी। वरना, गांधीजी की हत्या गोडसे ने नहीं, झाड़ी में छिपे किसी और ने की थी, यह बात उनकी हत्या के सत्तर साल बाद भी एक सत्रह साल का बच्चा कैसे पूछ सकता है? अफवाह की उम्र लंबी होती है और वह राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए फैलाई जाती है। यह काम भारत में एक दल और एक संगठन और उसके सदस्य ढिठाई से खुलेआम करते हैं।
भले ही सोशल मीडिया पर सारा जिम्मा डालकर गृहमंत्री पल्ला झाड़ना चाहें, लेकिन वे खुद जानते हैं कि वे एक अफवाह तंत्र के शीर्ष पर हैं जिसका मकसद समाज में मुसलमानों, ईसाईयों के खिलाफ घृणा भर देना है और उनसे एक हिंसक अलगाव बढ़ाना है। जब तक यह वजह रहेगी, अफवाह फैलानेवाला तंत्र भी रहेगा और अगर उसी के हाथ में सत्ता हुई तो इसके चलते हत्याएं भी होती रहेंगी।
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