अपनी पांच दिनों की तीन देशों की यात्रा के दौरान हमारे प्रधानमंत्री पूर्वी अफ्रीका के देश रवांडा की राजकीय यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। राजनय हमेशा से प्रतीकात्मकता में गहरा विश्वास रखता है, इसलिये प्रधानमंत्री ने मेज़बान देश की एक पारंपरिक (गिरिंका) योजना के तहत 200 गायों की भेंट देकर अपनी मैत्री का इज़हार किया। और इसकी नयनाभिराम छवियां (जिनमें वे बड़े स्नेह से गायों को चारा खिला रहे हैं) हम सबने देखीं। जिस समय गो-रक्षा के नाम पर भारत में इतना कुछ घट हो रहा हो, इस गोदान पर स्वदेश में चर्चा होना सहज है। दान की गई गायें चूंकि स्थानीय रूप से उपलब्ध कराई गईं थीं, कुछ विघ्नसंतोषी इसे पराई बछिया का गोदान कह कर डिसमिस कर रहे हैं। तो कुछ लोग उस देश को 200 दुधारू गायें देने के पीछे कुछ दीर्घकालिक खतरे देख रहे हैं जो पारंपरिक रूप से दुग्धाहारी और गोमांसभक्षी दोनों हो। पर जो भी हो, गोदान या राजकीय यात्रा का महत्व खारिज करना नादानी होगी।
भारत ने घोषणा की है कि गहरे रक्तपात और नस्ली हिंसा को भुगत कर उबरे इस देश में वह जल्द ही अपना दूतावास स्थापित करेगा। साथ ही औद्योगिक विकास और मुक्त व्यापार गलियारे के निर्माण के लिये भारत रवांडा को 20 करोड़ डॉलर और खेती के विकास के लिये 10 करोड़ डॉलर का ॠण भी देगा।
यह संयोग नहीं कि चीन के ताकतवर राष्ट्रप्रमुख शी (सपत्नीक) भी राजकीय यात्रा पर इसी वक्त रवांडा आये। अमरीका के लगाये कठोर आव्रजन और व्यापारिक प्रतिबंधों, युरोपीय महासंघ में दिखती टूट के मद्देनज़र इन दिनों आधी सदी बाद अफ्रो-एशियाई एकता का नारा फिर ज़ोर पकड़ रहा है। और अफ्रीका में चीन का केंद्रीय रोल बन चुका है। अमरीका इससे त्रस्त है और उसके सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ने आरोप लगाया कि वह अफ्रीका को भ्रष्ट नेताओं से गोपनीय डील कर अपने आक्रामक रूप से फैलाये ॠण के जाल में अफ्रीका को फंसा रहा है। पर अगर सूप चलनी में बहत्तर छेद गिनाये तो उससे क्या?
Published: undefined
चीन ने 12 बरस से इस देश से संपर्क बना कर वहां पर्यटन, खदान तथा निर्माण के 61 साझा उपक्रम बिठा लिये हैं। 2017 में ही रवांडा में उसने अपना मुक्त व्यापार गलियारा और अपना सैन्य बेस (जिबूति में) भी बना लिया है। आज की तारीख में चीन रवांडा का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। शी की ताज़ा राजकीय यात्रा के दौरान 15 और साझा योजनाओं पर दस्तखत किये गये हैं, और अगली फरवरी तक वहां से चीन के व्यापारिक शहर ग्वांगशू तक रवांडएयर की विमानन सेवायें काम करने लगेंगी।
इस सबसे एक ही बात उभरती है। आने वाले समय में ग्लोबलाइज़ेशन का तेज़ी से विखंडन होगा और संकट के भंवर में फ़ंसे तमाम विकासशील देश अपने अपने हित स्वार्थों के तहत ही बाहर अपनी नाकेबंदियां और आर्थिक-सामरिक साझेदारियां कायम करेंगे। अफ्रो-एशियाई देशों में अभी हमारा भौगोलिक महत्व चाहे चीन के बराबर का हो, राजनय में हमारा वज़न उससे कहीं कम है। और जब नैतिकता या पारंपरिक सहिष्णुता के तकाज़े स्वदेश में ही कड़ाई से लागू नहीं हो रहे, चुनावी अवसरवाद ही प्रमुख बन रहा हो, वहां विदेश जा कर 200 गायों का गोदान करना चीन के शिकारी तेवर या बढ़ती घरेलू अशांति की बाढ़ को कितना थाम सकेगा, यह कहना मुश्किल है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined