विचार

गाय, गोमांस और समाज के अलावा राष्ट्रवाद पर क्या कहते थे प्रेमचंद!

प्रेमचंद अपने दौर की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को हमेशा अपने लेखन का हिस्सा बनाते रहे। उन्होंने उन सभी विषयों पर अपनी कलम चलाई जिसे राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे थे या आज भी कर रहे हैं।

राजस्थान के उदयपुर में बनी एक कलाकृति (फोटो -Getty Images)
राजस्थान के उदयपुर में बनी एक कलाकृति (फोटो -Getty Images) 

गाय, गोमांस और समाज 

भारत खेती का देश है और यहां गाय को जितना महत्व दिया जाए, उतना थोड़ा है। लेकिन आज कौल-कसम लिया जाए तो बहुत कम राजे-महराजे या विदेश में शिक्षा प्राप्त करनेवाले हिन्दू निकलेंगे जो गोमांस न खा चुके हों। और उनमें से कितने ही आज हमारे नेता हैं और हम उनके जयघोष करते हैं। अछूत जातियां भी गौमांस खाती हैं और आज हम उनके उत्थान के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। हमने उनके मंदिरों में प्रवेश के निमित्त कोई शर्त नहीं लगाई और न लगानी चाहिए।

हमें अख्तियार है, हम गऊ की पूजा करें लेकिन हमें यह अख्तियार नहीं है कि हम दूसरों को गऊ-पूजा के लिए बाध्य कर सकें। हम ज्यादा से ज्यादा यही कर सकते हैं कि गौमांस-भक्षियों की न्यायबुद्धि को स्पर्श करें। फिर मुसलमानों में अधिकतर गौमांस वही लोग खाते हैं, जो गरीब हैं और गरीब वही लोग हैं जो किसी जमाने में हिन्दुओं से तंग आकर मुसलमान हो गए थे। वे हिन्दू-समाज से जले हुए थे और उसे जलाना और चिढ़ाना चाहते थे। वही प्रवृत्ति उनमें अब तक चली आती है। जो मुसलमान हिन्दुओं के पड़ोस में देहातों में रहते हैं, वे गौमांस से उतनी ही घृणा करते हैं जितनी साधारण हिन्दू। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि मुसलमान भी गौभक्त हों, तो उसका उपाय यही है कि हमारे और उनके बीच में घनिष्ठता हो, परस्पर ऐक्य हो। तभी वे हमारे धार्मिक मनोभावों का आदर करेंगे।

(हिन्दू-मुस्लिम एकता - नवम्बर 1931 का अंश)

Published: 31 Jul 2023, 1:09 PM IST

क्या हम वास्तव में राष्ट्रवादी हैं?

यह तो हम पहले भी जानते थे और अब भी जानते हैं कि साधारण भारतवासी राष्ट्रीयता का अर्थ नहीं समझता और यह भावना जिस जागृति और मानसिक उदारता से उत्पन्न होती है, वह अभी हममें से बहुत थोड़े आदमियों में आई है। लेकिन इतना जरूर समझते थे कि जो पत्रों के संपादक हैं, राष्ट्रीयता पर लंबे-लंबे लेख लिखते हैं और राष्ट्रीयता की वेदी पर बलिदान होनेवालों की तारीफों के पुल बांधते हैं, उनमें जरूर यह जागृति आ गई है और वह जात-पांत की बेड़ियों से मुक्त हो चुके हैं। लेकिन अभी हाल में ‘भारत’ में एक लेख देखकर हमारी आंखें खुल गईं और यह अप्रिय अनुभव हुआ कि हम अभी तक केवल मुंह से राष्ट्र-राष्ट्र का गुल मचाते हैं, हमारे दिलों में अभी वही जाति-भेद का अंधकार छाया हुआ है। 

…शिकायत है कि हमने अपनी तीन-चौथाई कहानियों में ब्राह्मणों को काले रंगों में चित्रित करके अपनी संकीर्णता का परिचय दिया है जो हमारी रचनाओं पर अमिट कलंक है। हम कहते हैं कि अगर हममें इतनी शक्ति होती, तो हम अपना सारा जीवन हिन्दू-जाति को पुरोहितों, पुजारियों, पंडों और धर्मोपजीवी कीटाणुओं से मुक्त कराने में अर्पण कर देते। हिन्दू जाति का सबसे घृणित कोढ़, सबसे लज्जाजनक कलंक यही टकेपंथी दल है जो एक विशाल जोंक की भांति उसका खून चूस रहा है और हमारी राष्ट्रीयता के मार्ग में यही सबसे बड़ी बाधा है।

Published: 31 Jul 2023, 1:09 PM IST

राष्ट्रीयता की पहली शर्त है, समाज में साम्य-भाव का दृढ़ होना। इसके बिना राष्ट्रीयता की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जब तक यहां एक दल, समाज की भक्ति, श्रद्धा, अज्ञान और अंधविश्वास से अपना उल्लू सीधा करने के लिए बना रहेगा, तब तक हिन्दू समाज कभी सचेत न होगा। और यह दल दस-पांच लाख व्यक्तियों का नहीं है, असंख्य है। उसका उद्यम यही है कि वह हिन्दू जाति को अज्ञान की बेड़ियों में जकड़े रखे जिसमें वह जरा भी चूं न कर सकें। मानो आसुरी शक्तियों ने अंधकार और अज्ञान का प्रचार करने के लिए स्वयंसेवकों की यह अनगिनत सेना नियत कर रखी है। अगर हिन्दू समाज को पृथ्वी से मिट नहीं जाना है, तो उसे इस अंधकार-शासन को मिटाना होगा। हम नहीं समझते, आज कोई भी विचारवान हिन्दू ऐसा है जो इस टकेपंथी दल को चिरायु देखना चाहता हो, सिवाय उन लोगों के जो स्वयं उस दल में हैं और चखौतियां कर रहे हैं।

(क्या हम वास्तव में राष्ट्रवादी हैं? शीर्षक से प्रेमचंद के विचार- भाग 1 में संकलित)

-आयोजन - नागेन्द्र

Published: 31 Jul 2023, 1:09 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 31 Jul 2023, 1:09 PM IST