विचार

वक्फ को लेकर आखिर हंगामा है क्यों बरपा!

यह जानना इन दिनों बहुत जरूरी हो गया है कि वक्फ बोर्ड गैरमुसलमान की संपत्ति नहीं ले सकता। वक्फ के साथ किसी भी करार की शुरुआत और उसका कार्यान्वयन किसी मुसलमान की संपत्ति को लेकर ही हो सकता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

इन दिनों सोशल मीडिया के जरिये यह भ्रांति फैलाई जा रही है कि वक्फ बोर्ड जब चाहे किसी की, मतलब किसी हिन्दू की भी जमीन पर कब्जा कर सकता है और उसकी किसी कोर्ट में भी सुनवाई नहीं हो सकती। इनके उलट सच्चाई यह है कि वक्फ की अपनी संपत्ति ही खुर्द-बुर्द हो रही है

माना जाता है कि उद्योगपति मुकेश अंबानी का दक्षिण मुंबई में बना 27 मंजिला आवास- एंटिलिया दुनिया का सबसे महंगा 'घर' है। लेकिन आरोप है कि यह विवादित वक्फ संपत्ति पर बना हुआ है। इसी साल 21 जुलाई को लोकसभा में दिए गए प्रश्न के जवाब में लिखित तौर पर बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में 7 सरकारी संस्थान और 51 गैरसरकारी संस्थान वक्फ की जमीन पर बने हुए हैं। यूपी में वक्फ के मुद्दे पर काम कर रहे वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद इसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि लखनऊ में विधान भवन, बापू भवन, सहकारिता भवन-जैसी सात इमारतें वक्फ की जमीन पर मौजूद हैं।

किसी गैरमुसलमान से पूछें कि वक्फ क्या है, तो अधिकतम संभावना यही है कि उसे इस बारे में कुछ नहीं मालूम होगा। वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे इस्लाम मानने वाला व्यक्ति अल्लाह के नाम पर या धार्मिक या परोपकार के मकसद से दान करता है। यह संपत्ति समाज के लिए हो जाती है और अल्लाह के सिवा कोई उसका मालिक नहीं होता और न हो सकता है। मतलब, एक बार वक्फ हमेशा के लिए वक्फ- इसे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता।

वक्फ बोर्ड राज्यों में बनाए गए जबकि वक्फ काउंसिल राष्ट्रीय स्तर पर बनाया गया। इनका काम वक्फ संपत्तियों की देखभाल और उनकी हिफाजत करना है। वक्फ संपत्तियों का इस्तेमाल पूरा समाज करता है। वक्फ संपत्तियों पर खोले गए स्कूल, मदरसे, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, अनाथ आश्रम या अस्पताल से समाज के हर तबके के लोग फायदा हासिल कर सकते हैं। वैसे, वक्फ बोर्ड के जिम्मे कब्रगाह और मस्जिद भी होते हैं।

 हाल के वर्षों में सोशल मीडिया, खास तौर से वीडियो, वाट्सएप मैसेज, कई बार टीवी डिबेट और ब्लॉग के जरिये भी कहा जा रहा है कि वक्फ एक्ट की कुछ धाराएं इतनी खतरनाक हैं कि वे वक्फ बोर्ड को मुल्क की किसी भी संपत्ति पर कब्जा लेने का अधिकार देती हैं; कि वक्फ बोर्ड चाहे, तो किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता सकता है; कि इसके लिए उसे कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं है और वह जिलाधिकारी या किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को उस संपत्ति को खाली करने का आदेश दे सकता है। यह कहकर भी सांप्रदायिक डर पैदा किया जा रहा है कि इस तरह के मामलों की हाईकोर्ट तक में सुनवाई नहीं हो सकती और इसके खिलाफ याचिका लेकर वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल में ही जाना होगा- ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम होगा और कोई भी कोर्ट, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी ट्रिब्यूनल के फैसले को नहीं बदल सकता। इसी सिलसिले में वक्फ बोर्ड के अधिकारों पर अंकुश के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की गई हैं। इस पर कोर्ट को सुनवाई करनी है।

 जानकार लोग बताते हैं कि वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन होने से संपत्तियों की धीरे-धीरे पहचान भी सुगम हो रही है। इससे यह भी पता चल रहा है कि इसका उपयोग किस तरह हो रहा है। इन पंक्तियों के लेखक ने 2011 में ही आरटीआई आवेदन के जरिये दिल्ली वक्फ बोर्ड से वक्फ की दुकानों और मकानों के किरायदारों की सूची हासिल की, तो पता चला था कि करीब 80 फीसद किरायेदार गैरमुस्लिम समाजों से हैं। इनका किराया बहुत मामूली है, इसके बावजूद ये लोग ये किराया भी अदा नहीं कर रहे हैं।

केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन वक्फ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (वामसी) की वेबसाइट के अनुसार, देश भर के 32 वक्फ बोर्डों के पास मिलाकर 3,54,624 वक्फ एस्टेट, 8,57,526 अचल और 16,628 चल वक्फ  संपत्तियां दर्ज हैं। इनमें से 57,171 वक्फ संपत्तियों पर गैरकानूनी कब्जे हैं। वैसे, गैरकानूनी कब्जों का यह आंकड़ा इससे कई गुणा अधिक हो सकता है क्योंकि वामसी के पास 4,35,329 वक्फ संपत्तियों के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। इनके वक्फनामा तो मौजूद हैं लेकिन रिकॉर्ड में इनका कोई अता-पता नहीं है। वक्फनामा वह डीड या दस्तावेज है जिसके तहत कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ करता है।

 इस लेखक को आरटीआई के जरिये सेन्ट्रल वक्फ काउंसिल से 20 जुलाई, 2020 को यह भी जानकारी मिली कि देश में 18,259 वक्फ संपत्तियों के साथ-साथ 31,594 एकड़ जमीन पर भी अवैध कब्जा है। इसमें यह भी बताया गया कि 1,342 वक्फ संपत्तियों के साथ-साथ 31,594 एकड़ भूमि पर सरकारी विभागों या एजेंसियों का कब्जा है, यानी ये इनके पास हैं। आरटीआई से मिले इन आंकड़ों में गुजरात, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के आंकड़े शामिल नहीं थे।

यूपी सरकार ने पिछले 7 सितंबर को सभी मंडलायुक्त और जिलाधिकारी को वक्फ संपत्तियों के राजस्व रिकॉर्ड का सर्वे करने, उनकी समीक्षा करने और उनकी जांच करने का आदेश दिया। शासनादेश में इसे 8 अक्तूबर तक समाप्त करने का आदेश दिया गया था। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री धर्मपाल सिंह के मुताबिक, वक्फ संपत्तियों के बेचे जाने आदि की शिकायतें मिलने के बाद सरकार ने साफ मंशा से वक्फ का सर्वे कराना शुरू किया है।

2021 में गठित निजी गैरलाभकारी संगठन- वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद सर्वे का तो स्वागत करते हैं लेकिन उनका कहना है कि बात प्रदेश में मौजूद पूरे वक्फ की होनी चाहिए क्योंकि जितनी संपत्ति अभी यूपी के दोनों वक्फ बोर्ड में दर्ज है, उससे अधिक संपत्ति अभी दर्ज होना बाकी है जिस पर सरकार या वक्फ बोर्ड ने कभी ध्यान नहीं दिया। उनका कहना है कि 'सरकार की नीयत साफ है तो उसे अपने भू-अभिलेख के सिस्टम में ही जमीन की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए जैसा कि दूसरे कुछ राज्यों ने किया है।' यूपी से ताल्लुक रखने वाले रिटायर्ड इनकम टैक्स आयुक्त अकरमुल जब्बार खान एक और बात कहते हैं, 'वक्फ का कोई भी सर्वे वक्फ कानून के तहत होना चाहिए। वक्फ के केन्द्रीय कानून में सर्वे से संबंधित सभी नियम दर्ज हैं।'

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वक्फ संपत्तियों के हाल का सरकार को है अंदाजा!

वक्फ संपत्तियों के हाल का अंदाजा सरकार को है। संभवतः इसी ख्याल से, केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने इस साल 21 फरवरी को देश के सभी अल्पसंख्यक कल्याण विभागों को जारी नोटिस में राजस्व विभाग के अधिकारियों, मुतवल्लियों और भू-माफियाओं की मिलीभगत से विभिन्न वक्फ संपत्तियों को अवैध रूप से बेचे जाने या उन पर कब्जा कर लेने की बात कही गई थी। मंत्रालय ने राज्य वक्फ बोर्डों, राजस्व विभागों और अन्य संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने और राज्यों में सभी वक्फ संपत्तियों को राजस्व रिकॉर्ड में 'वक्फ' के रूप में दर्ज करने को कहा।

तब तो यूपी समेत शायद ही किसी राज्य सरकार ने इसे गंभीरता से लिया लेकिन अब यूपी, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, उत्तराखंड आदि की बीजेपी सरकारें वक्फ के नाम पर जो सर्वे करा रही हैं या इस बारे में कदम उठाने की बात कह रही हैं, उसकी मंशा सर्वे से अधिक धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के नाम पर राजनीति करना ही दिखती है।

ध्यान रहे कि एडवोकेट रऊफ रहीम ने औकाफ (वक्फ का बहुवचन) प्रबंधन में गड़बड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली हुई है। रऊफ रहीम से तो संपर्क नहीं हो पाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर 28 अक्तूबर, 2020 को वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण को लेकर सभी राज्य सरकारों को चार सप्ताह की अवधि के भीतर जवाब देने का नोटिस जारी किया था। पर हुआ कुछ नहीं। यही नहीं, इससे पहले 22 जुलाई, 2019 को यूपी विधानसभा में विधायक हाजी इरफान सोलंकी ने राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री से प्रदेश में कब्रिस्तानों और वक्फ जमीनों का सर्वे कराकर उन पर से अवैध कब्जे हटाने और इन संपत्तियों की पैमाइश कराकर सीमांकन कराने का सवाल उठाया था। बात यह कहकर टरका दी गई कि हर जनपद में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित है और वह इस बारे में कार्यवाही करती है। वक्फ लिबरेशन एंड प्रोटेक्शन टास्क फोर्स से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सलीम मुल्ला का कहना है कि बीजेपी-शासित राज्य सरकारें वक्फ को लेकर बड़ी-बड़ी बातें तो कर रही हैं लेकिन वे वक्फ बचाने के बजाय उसे हर तरह से खत्म करने की कोशिश में ही लगी हुई हैं। उनका कहना है कि उलटा आम लोगों में यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि वक्फ बोर्ड अन्य धर्मों से जुड़े लोगों की जमीन हड़पने का काम कर रहा है।

 वह बताते हैं कि साल 2017 में महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने वक्फ सर्वे कराने का आदेश जारी किया था और पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पुणे और परभनी जिलों को लिया गया था। हमने खुद पुणे की तमाम वक्फ संपत्तियों की सूची सौंपी। सर्वे का यह काम आज तक आगे नहीं बढ़ सका है। इसी तरह, उत्तर प्रदेश सरकार ने अक्तूबर, 2019 में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा गलत तरीके से खरीद-फरोख्त और स्थानांतरित की गई वक्फ संपत्तियों की जांच सीबीआई से कराने का निर्णय लिया था। लेकिन यह जांच भी कहां तक पहुंची, इसका कोई अता-पता नहीं है।

वैसे, एक बात ध्यान दिलाने लायक है। उस वक्त वसीम रिजवी यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष थे। यह वही वसीम रिजवी हैं जिन्होंने हजरत मोहम्मद साहब को लेकर गलत-सलत जानकारी देकर किताब लिखी और वह जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी बन चुके हैं। इनका कार्यकाल 18 मई, 2020 को समाप्त हो गया। उस वक्त सूबे के अल्पसंख्यक राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा था कि राज्य सरकार ने शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड में विभिन्न पदों पर गलत नियुक्ति, पदोन्नति और सेवा विस्तार की शिकायतों की जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने साफ तौर कहा था कि उन्हें विशेष रूप से शिया वक्फ बोर्ड में कई शिकायतें मिली हैं। लेकिन इसकी जांच में क्या सामने आया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।

वैसे, सलीम मुल्ला वक्फ को लेकर जिन गलत सूचनाओं को सोशल मीडिया में फैलाने का आरोप लगाते हैं, उसके तो कई उदाहरण हैं, लेकिन मुख्य धारा की मीडिया भी इसमें शामिल है। द टाइम्स ऑफ इंडिया में अभी हाल में एक ब्लॉगपोस्ट में चार्टर्ड एकाउंटेन्ट राजीव गुप्ता ने लिखा कि '2013 में वक्फ कानून में एक और संशोधन कर वक्फ बोर्डों को किसी की भी संपत्ति पर कब्जा कर लेने का असीमित अधिकार दे दिया गया, जिसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। वक्फ बोर्ड के पास मुस्लिम चैरिटी के नाम पर संपत्तियों पर दावा करने के असीमित अधिकार हैं।'

जबकि सच्चाई यह है कि वक्फ एक्ट की सभी धाराएं सिर्फ वक्फ की गई संपत्तियों पर ही लागू होती हैं और बोर्ड सिर्फ उस संपत्ति पर दावा कर सकता है जो किसी मुसलमान ने धार्मिक काम के लिए दान में दी हैं। वक्फ बोर्ड के पास दूसरे धर्मों की बात तो दूर, किसी मुस्लिम की निजी संपत्ति पर भी दावा करने का अधिकार नहीं है। लेकिन जब सबकुछ चुनावी वोट के ख्याल से कहा-किया जा रहा हो, तो इस प्रकार की मुहिम पर कौन रोक लगा सकता है?

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एंटिलिया से रिश्ता

उद्योगपति मुकेश अंबानी दूसरे सबसे धनी भारतीय हैं। मुंबई में उनके घर का नाम है एंटिलिया। इसकी जमीन जुलाई, 2002 में रिलायंस कंपनी को बेची गई। पहले यह जमीन खोजा मुस्लिम चैरिटेबल ट्रस्ट की थी जहां पर अनाथालय चलता था। महाराष्ट्र के चैरिटी कमिश्नर ने इस जमीन की बिक्री की अनुमति दी थी। लेकिन उसी साल जनवरी में महाराष्ट्र ने वक्फ बोर्ड का गठन किया था। बोर्ड को उसी महीने वक्फ संपत्तियों की सर्वे रिपोर्ट मिली थी। एंटीला के लिए जमीन बेचने के खिलाफ जो याचिका बंबई हाईकोर्ट में दायर की गई है, उसमें इसी आधार पर दावा किया गया है कि यह वक्फ की संपत्ति है और इसीलिए चैरिटी आयुक्त को इसकी बिक्री की अनुमति देने का अधिकार नहीं है।

बंबई हाईकोर्ट ने इन आपत्तियों को निरस्त कर दिया और बिक्री को तकनीकी आधार पर सही ठहराया। नियमनों के उल्लंघन में सर्वे की रिपोर्ट प्राप्त करने से पहले राज्य सरकार ने बोर्ड का गठन किया था। इसने कहा कि प्राथमिक तौर पर बोर्ड में चार सदस्य थे और उस वक्त तक बोर्ड का पूरी तरह गठन नहीं हुआ था। इसलिए, निरंतरता के खयाल से आयुक्त ने बिक्री की अनुमति अपने अधिकार क्षेत्र के अंदर ही दी।

इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। यहां न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट वक्फ और ट्रस्ट संपत्ति के बीच अंतर बताने में विफल रही। कोर्ट ने कहा कि चूंकि वक्फ संपत्ति अल्लाह को समर्पित है इसलिए उसकी बिक्री नहीं की जा सकती। लेकिन ट्रस्टों के मामले में ट्रस्टी अपना स्वामित्व तब तक लिए रहते हैं जब तक वे इसका खास तौर पर त्याग न कर दें। जो खबरें हैं, उस हिसाब से इस मामले में 2011 से ही यथास्थिति बनी हुई है।

अभी पिछले सितंबर में इस मुद्दे पर एक मोड़ आया। उस वक्त निवृत्तमान हो रहे महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल की कार्यावधि सितंबर में समाप्त हो रही थी। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक, इससे पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को एक अस्वाभाविक पत्र लिखा। इसमें बताया गया कि इस पत्र में उन्होंने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई कि उन्हें एंटिलिया जमीन बिक्री मुकदमे से महाराष्ट्र सरकार ने पैरवी करने वाले अधिवक्ता के तौर पर हटा दिया। इस पत्र में उन्होंने कहा कि 10 साल से स्थगन आदेश के बावजूद कुछ लोग इस मुकदमे में जल्द सुनवाई का दबाव बना रहे हैं। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन लिखा कि उनके विचार में बिक्री अमान्य है।

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वक्फ क्या है, क्या है उसकी भूमिका?

वक्फ क्या हैः लोगों की भलाई के लिए मुसलमानों द्वारा दान की गई चल या अचल संपत्ति को वक्फ कहा जाता है।

वक्फ बोर्ड की भूमिकाः राज्यों के 32 वक्फ बोर्डों और केन्द्रीय वक्फ परिषद से वक्फ के रिपोर्ट को दुरुस्त रखने, उनके पंजीकरण की देखभाल करने और यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा रहती है कि उनका उपयोग सार्वजनिक हित के लिए हो।

बोर्ड का गठनः राज्य सरकारें बोर्ड का गठन करती हैं, जिसमें सरकारी अधिकारी, अधिवक्ता और सिर्फ मुसलमानों ही नहीं, सभी समुदायों के प्रोफेशनल लोगों को शामिल किया जाता है।

वक्फ और ट्रस्ट में अंतरः ट्रस्ट संपत्तियों से विपरीत, वक्फ संपत्तियों की बिक्री नहीं की जा सकती, क्योंकि दानदाता या वाकिफ अपने अधिकार त्याग देते हैं। वक्फ अल्लाह का है। मुस्लिम ट्रस्टों के ट्रस्टी अपने पास संपत्ति का अधिकार रखते हैं और ट्रस्ट संपत्ति की बिक्री कर सकते हैं। ट्रस्ट का संचालन भारतीय ट्रस्ट कानून के तहत होता है, जबकि वक्फ का संचालन वक्फ कानून के तहत होता है।

वक्फ बोर्ड नहीं ले सकता गैरमुस्लिम की संपत्तिः यह जानना इन दिनों बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि सोशल मीडिया में इस बात को लेकर बहुत सारी गलत बातें फैलाई जा रही हैं। वक्फ बोर्ड गैरमुसलमान की संपत्ति नहीं ले सकता। वक्फ के साथ किसी भी करार की शुरुआत और उसका कार्यान्वयन किसी मुसलमान की संपत्ति को लेकर ही हो सकता है। इस बारे में दस्तावेजों की जांच-पड़ताल सरकार द्वारा नियुक्त वक्फ बोर्ड करते हैं और वक्फ बोर्ड की अनुमति के बाद ही राजस्व बोर्ड में वक्फ संपत्ति का पंजीकरण होता है।

वक्फ बोर्ड की मनमानीः भूमि माफिया के साथ वक्फ बोर्ड के संबंधों को लेकर समय-समय पर कई किस्म के आरोप लगाए जाते रहे हैं। संदेह है कि बोर्ड के कुछ सदस्य संपत्ति हड़पने के लिए अधिकारियों के साथ जोड़-तोड़ कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2019 में वक्फ बोर्ड की सीबीआई जांच के आदेश की घोषणा की थी। इस जांच का क्या हुआ, इस बारे में सार्वजनिक तौर पर कोई जानकारी नहीं है।

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