प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना’ का शुभारंभ किया और इस मौके पर कहा कि यह 42 करोड़ श्रमिकों के सेवा में समर्पित योजना है। इस योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के कामगरों को 60 साल की उम्र के बाद हर महीने 3000 रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी। इस योजना का ऐलान वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए किया था। इस योजना को अंतिम रूप देने की जिम्मेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को मिली है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि असंगठित मजदूरों के लिए इस नई पेंशन योजना की वास्तविकता क्या है? दरअसल केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए जो प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन योजना की शुरूआत की है, उसके अंतर्गत जो श्रमिक 29 साल की उम्र में प्रतिमाह 100 रुपए पेंशन के लिए देना आरंभ करेंगे या 18 वर्ष की उम्र में प्रति माह 55 रुपए देना आरंभ करेंगे, उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद 3000 रुपए की पेंशन प्राप्त हो सकेगी। इसके लिए बजट में 500 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है।
सभी जानते हैं कि असंगठित क्षेत्र में रोजगार बदलते रहते हैं, कभी रोजगर मिलता है कभी नहीं। कभी श्रमिक किसी शहर में जाते हैं तो कभी दूसरे शहर में तो कभी वापस अपने गांव में लौट आते हैं। अतः उनके लिए 20 से 40 साल तक नियमित धनराशि जमा करवाना बहुत कठिन है। इस पर तीस साल बाद 3000 रुपए का मूल्य कितना कम रह जाएगा यह किसी से छिपा नहीं है। इतना ही नहीं 15000 रुपए की आय सीमा भी कम है। और तो और योजना के लिए 500 करोड़ का प्रावधान भी बहुत कम है। अतः इस स्कीम से कोई बड़ी उम्मीद उत्पन्न नहीं होती है।
आइए अब असंगठित मजदूरों और पेंशन से जुड़ी कुछ अन्य योजनाओं की स्थिति देखते हैं। असंगठित मजदूरों का राष्ट्रीय मंच बनाने की योजना के लिए साल 2016-17 के बजट में 144 करोड़ रुपए की व्यवस्था थी। अंतरिम बजट 2019-20 में इसके लिए मात्र 1 करोड़ रुपए की व्यवस्था है।
वहीं, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (नेशनल सोशल असिस्टैंस कार्यक्रम) में 2018-19 के बजट में 9975 करोड़ रुपए की व्यवस्था थी, जबकि इस साल 9200 करोड़ रुपए की व्यवस्था है। इस तरह इस सरकार ने 775 करोड़ रुपए की कटौती तो पेंशन के सबसे बड़े कार्यक्रम में ही कर दी। मोदी सरकार 500 करोड़ रुपए की अपनी नई योजना का ढिंढोरा तो पीट रही है, लेकिन सामाजिक सहायता कार्यक्रम में 775 करोड़ रुपए की कटौती का कहीं कोई जिक्र नहीं है।
इतना ही नहीं एक और ‘स्वावलंबन योजना’ के लिए साल 2015-16 में 581 करोड़ का बजट रखा गया था जबकि इस साल इस योजना के लिए कोई आवंटन नहीं किया गया है।
इस तरह की विभिन्न योजनाओं को हम देखें तो स्पष्ट है कि सरकार का ध्यान किसी पुरानी योजना को ही नए आकर्षक नाम से घोषित कर सिर्फ प्रचार करने पर है। हकीकत तो ये है कि अगर पहले से चल रही पेंशन योजनाओं को ही मजबूत कर दिया जाए और बहुत समय से रुकी उनकी वृद्धि को सुधार लिया जाए तो इससे लोगों को अधिक राहत मिलेगी।
यह बहुत दुखद स्थिति है कि ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना’ तक में कटौती की गई है, जबकि इसमें वृद्धि की मांग बहुत समय से हो रही है। इस स्कीम के लिए साल 2018-19 में 2256 करोड़ रुपए तक की व्यवस्था थी (बजट अनुमान) जबकि साल 2019-20 के अंतरिम बजट के बजट अनुमान में इस आवंटन को 1938 करोड़ रुपए कर दिया गया है। (यह स्कीम भी राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का ही एक हिस्सा है)
इस तरह अगर सभी पक्षों को देखें तो देश के अधिकांश लोगों की सामाजिक सुरक्षा की स्थिति अभी बहुत कमजोर बनी हुई है और इस क्षेत्र में वास्तव में किसी बड़ी पहल का अभी भी इंतजार है।
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