जयपुर के पुराने इलाके किशन पोल बाजार में एक बड़ी-सी हवेली है। इसके बुलंद दरवाजे से सामने के इलाके के मेहराबों के बीच से झांकती ढेर सारी तस्वीरें दिख रही हैं। तस्वीरों के सामने चंद नौजवान लड़के-लड़कियां भी हैं। यह प्रदर्शनी है जिसे आजादी के 75 साल के मौके पर राजस्थान उर्दू अकादमी ने गांधी जी की जिंदगी पर लगाई है। लेकिन ये नौजवान यहां क्या कर रहे हैं? कहीं घूमते-फिरते-भटकते तो यहां तक नहीं आ गए?
गांधी जी, आजादी का आंदोलन और नौजवान- आमतौर पर यही मान लिया गया है कि आज के नौजवानों को इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं रही। आखिर ये कौन-से नौजवान हैं?
इनमें एक हैं- आदर्श। उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले। यहां कैसे और क्यों पहुंचे? आदर्श बताते हैः ‘मुझे गांधी हमेशा प्रभावित करते रहे हैं। मैंने उनकी आत्मकथा पढ़ी है। मुझे यह जानने में दिलचस्पी है कि वे अपने जीवन में कैसे रहे होंगे।’ कुछ ऐसी ही जिज्ञासाओं के साथ पूजा, सोमू आनंद, अंजलि शर्मा भी इस प्रदर्शनी में आई हैं। संयोग से ये सभी जयपुर के हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय से अलग-अलग विषयों में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही/ रहे हैं।
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महात्मा गांधी में ऐसा क्या है? बंगाल की रहने वाली पूजा बताती हैः ‘गांधी की उपयोगिता तब तक बनी रहेगी जब तक समाज में गैर बराबरियां समाप्त नहीं हो जातीं।’ राजस्थान की अंजलि के लिए ‘उनके सत्य और अहिंसा के पाठ की आज सबसे ज्यादा जरूरत है। उनके द्वारा किए गए आंदोलन आज के दौर में भी प्रेरक हैं।’ गांधी जी की मशहूर लाइन है- मेरी जिंदगी ही मेरा संदेश है। ये सब भी उनकी जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं से मुतास्सिर दिखते हैं।
गांधी जी की आज भी जरूरत है। वाकई? आदर्श कहते हैः ‘आज हम जाति-धर्म के नाम पर नफरत और सामाजिक बंटवारा देखते हैं। यह बढ़ता जा रहा है। गांधी जी ने इसे खत्म करने के लिए काम किया। कोलकाता और दिल्ली में हिंसा रोकने के लिए लोगों के बीच गए। यह हमारे लिए बेहद महत्व की सीख है।’
सोमू गांधी जी के ‘अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता और समाज के विकास के बारे में विचार’ को बेहद उपयोगी मानते हैं। वह कहते हैः ‘गांधी के विकास की सोच की आज सबसे ज्यादा जरूरत है।’ लेकिन उस विकास में ऐसा क्या है? सोमू के मुताबिक, ‘उसमें इंसानों के लिए जगह है।’
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लेकिन कुछ लोग तो लगातार गांधी जी पर हमला करते हैं कि उनके आंदोलन के तरीके- खासतौर से अहिंसा की आलोचना करते हैं। उन पर इलजाम लगाते हैं कि हमें कायर बना दिया। इस बात के जिक्र पर ये सब ठिठकते हैं। अपने-अपने तरीके से इसका जवाब देते हैं। आदर्श के मुताबिक, ‘उनके नेतृत्व में कई बड़े आंदोलन हुए। कई बार आंदोलन की गति धीमी पड़ी। लगा कि आंदोलन और वह- दोनों खत्म हो गए। लेकिन उन्होंने फिर पहले से बड़ा आंदोलन शुरू किया। यह अहिंसा की वजह से ही हो पाया। अहिंसक आंदोलन का रास्ता आज भी बेहद काम का है।’ वे जोर देकर कहते हैः ‘अहिंसा ही वह हथियार था जिसने सबको एकजुट किया।’
सोमू की राय में अहिंसा तो बहुत मजबूत हथियार है। वह कहते हैः ‘अगर आजादी के आंदोलन की मुख्यधारा ने हिंसा का रास्ता अपनाया होता तो मुझे लगता है कि आजादी के बाद हम पर हिंसात्मक प्रवृत्ति हावी रहती।’ मगर हिंसा तो आज भी हो रही है? शायद इसीलिए सोमू तुरंत जोड़ते हैः ‘गांधी जी ने अहिंसा को हमारे राष्ट्रीय चरित्र के तौर पर विकसित करने की कोशिश की। इसमें वह कितने कामयाब हुए, इस पर बहस की जा सकती है।’
अंजलि इस बात को आज के हालात से जोड़ती हैः ‘आज बात-बात पर हिंसा और दंगे हो जाते हैं। इसलिए अहिंसा तो आज के दौर में बेहद जरूरी है।’ अंजलि अहिंसा पर थोड़ा और रोशनी डालती हैः ‘गांधी जी की अहिंसा का रिश्ता सिर्फ आजादी से ही नहीं है। इसका रिश्ता आम लोगों की जिंदगियों से है।’
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इन सबसे सैकड़ों किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में नौजवान ऋत्विक हैं। वह समाज के उस समूह से अपने को जोड़ती हैं जो स्त्री-पुरुष के बने-बनाए खांचे में जबरन ढलने को तैयार नहीं है। वह कहती हैः ‘गांधी-जैसा व्यक्तित्व किसी भी लोकतांत्रिक देश और उसके नागरिकों के लिए हमेशा आदर्श और प्रासंगिक रहेंगे।’ अपनी अलग यौनिक पहचान की वजह से ऋत्विक को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। शायद इसीलिए वे गांधी जी के हवाले से एक अहम बात कहती हैः ‘विविधताओं को स्वीकारने तथा अलग-अलग विचारधाराओं के साथ सामंजस्य बिठाने की उनकी कला जबरदस्त है। हम आम लोगों को उनसे यह सीखना चाहिए। सहिष्णुता सीखनी चाहिए।’ यही नहीं, उनकी राय में, ‘लोकतंत्र में धार्मिक बहुसंख्यकवाद कैसे रोका जाए, अल्पसंख्यकों और शोषित वर्गों के अधिकार की गारंटी कैसे की जाए- यह सब गांधी जी से सीखा जा सकता है।’
गांधी जी और अहिंसा का सीधा रिश्ता आजादी से है। तो क्या आजादी या आजादी के दिन को भी याद रखना जरूरी है? आदर्श की राय हैः ‘आजादी के दिन का मतलब छुट्टियां और जलेबियां नहीं हैं। इस दिन को इसलिए याद रखा जाना चाहिए क्योंकि इस आजादी को हासिल करने के पीछे लंबा संघर्ष शामिल है।’ वह इसके साथ यह भी ध्यान दिलाते हैं, ‘आजादी का अर्थ समाज की गैरबराबरी दूर होने से है। हमें देखना चाहिए कि कितनी चीजें हासिल करनी अब भी बाकी है।’
इसीलिए ऋत्विक अपनी जिंदगी के तजुर्बों से आजादी को जोड़ती हैं, ‘हम समलैंगिक क्वीयर हैं। हमें आम जीवन बिताने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अगर 75 साल की आजादी के बाद भी किसी समुदाय को इसलिए अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ रहा है क्योंकि उनकी पहचान समझ में नहीं आती, तो कैसी आजादी?’ ऋत्विक एक सवाल हम सबसे पूछते हैः ‘जिस समाज को बदलना नहीं आता, विचार करना नहीं आता, वह भला कैसे आजाद होगा?’
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सोमू के लिए आजादी का मतलब हर तरह की गैर बराबरी की समाप्ति से है। वह कहते हैः ‘इस आजादी ने हमें अपना संविधान बनाने का हक दिया। संविधान ने भारत के सभी लोगों को गरिमापूर्ण बेहतर जीवन पाने का अधिकार दिया।’ अंजलि भी कुछ इसी तरह की बात कहती हैः ‘आजादी के दिन को हमें इसलिए याद रखना चाहिए क्योंकि हम 200 साल की गुलामी के बाद एक आजाद देश के नागरिक बने।’
पूजा के मुताबिक, ‘75 साल पहले मिली आजादी ने जनता के शासन को संभव बनाया। जन को संविधान की सुरक्षा हासिल हुई। समाज में बदलाव की गति तेज हुई।’ पूजा बतौर स्त्री एक बात कहती हैः ‘इन्हीं बदलावों के कारण मैं आज उच्च शिक्षा हासिल कर पा रही हूं। खुलकर अपने विचार आपसे साझा कर पा रही हूं।’
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