आधे दर्जन से ज्यादा टीवी न्यूज चैनलों ने बीती रात जो भी आंकड़े पेश किए, उससे कम से कम उन लोगों को तो हैरानी नहीं हुई होगी जो करीब एक साल से अपने राय जाहिर कर रहे थे। ये वे लोग हैं जिन्होंने गुजरात में बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खुलकर सामने आए विरोध और गुस्से को नजरंदाज़ किया। यह गुस्सा किसी एक तबके का नहीं, बल्कि हर जाति, हर वर्ग और शहरी-देहाती अंतर के बिना जगजाहिर था। लेकिन सर्वे करने वालों ने इसे शायद अहमियत दी ही नहीं।
फिर भी, अगर संयोग से यह एग्जिट पोल सही साबित हुए, और उत्तर प्रदेश में ईवीएम से हुए मेयर चुनाव और बैलट पेपर से हुए चुनावों के नतीजे कुछ संकेत हैं, तो इससे दो बातें साबित होंगी। पहली यह कि, ईवीएम में जरूर कोई गड़बड़ है, और दूसरी यह कि मोदी सरकार में प्रधान सचिव रह चुके मौजूदा चुनाव आयुक्त की भूमिका संदेह के घेरे में है। इसके साथ ही ये सर्वे करने वालों की निष्पक्षता और मकसद, दोनों पर ही सवालियां निशान भी लगते हैं।
ये सब झूठ का एक पुलिंदा नजर नहीं आता? हार्दिक पटेल के आव्हान पर गुजरात के युवाओं की हुंकार, जिग्नेश मेवानी की अगुवाई में दलितों का जबरदस्त आंदोलन और सूरत में लाखों ट्रेडर्स की जीएसटी के खिलाफ रैली को पूरी तरह नजरंदाज कर इन चुनावी सर्वे करने वालों ने गुजरात में मोदी की बीजेपी की विजय का अनुमान लगाया है। यह भी जगजाहिर है कि मुख्यमंत्री विजय रूपानी अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलना चाहते थे, या कम से कम दो जगह से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन मोदी ने उनकी मांग ठुकरा दी थी। यह किस बात का संकेत था? और क्या हार्दिक पटेल की रैली में रुपानी की रैली से कहीं ज्यादा जुटी भीड़ को अनदेखा किया जा सकता था। इस सबके बाद भी अगर रूपानी जीतते हैं और बीजेपी सरकार बनती है, तो क्या मायने निकाले जाएं?
या तो यह चुनावी पंडित पूरी तरह अज्ञानी हैं, या फिर उन्हें किसानों का आंदोलन नजर ही नहीं आया। इस चुनाव में तो साफ-साफ नजर आ रहा था कि गुजराती समाज का कौन सा तबका मोदी के साथ है और कौन विरोध में।
फिर भी, अगर बीजेपी सचमुच गुजरात चुनाव जीतती है और बीजेपी के बड़बोले राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के 150 सीटों के आंकलन के आसपास आती है, क्योंकि टुडेज़ चाणक्या ने तो उसी के आसपास सीटों का अनुमान लगाया है, तो एक ही बात साबित होगी। और वह यह कि इन चुनावी सर्वे करने वालों को गुजरात चुनाव में होने वाली गड़बड़ी का पहले से पता था, या इनकी जानकारी में था कि कहां-कहां ईवीएम से छेड़छाड़ की गई है।
इसी बात को अगर और जोर से कहा जाए, तो यह भी साबित होगा कि सर्वे करने वाले बीजेपी, चुनाव आयोग और मोदी-शाह की जोड़ी के उस षडयंत्र में शामिल हैं, जो जनमत को बदलने के लिए गया है।
बीजेपी की जीत, इस बात का संकेत नहीं होगी, कि अखबारों, टीवी और अन्य मीडिया माध्यमों में जो खबरें आ रही थीं, वे सब फर्जी थीं। सर्वे करने वाले इन लोगों ने तय कर लिया था कि लोगों का मिजाज भाड़ में जाए और राहुल गांधी को लेकर लोगों का उत्साह बकवास था। उनका काम तो सिर्फ और सिर्फ मोदी की जीत को पहले से ही सुनिश्चित करना था।
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