विचार

आकार पटेल का लेख: पड़ोसी देशों के साथ खुले मन से कारोबार को देनी होगी रफ्तार, तब मिला पाएंगे दुनिया से कदमताल

विश्व बैंक का कहना है कि, “सीमाई चुनौतियों के चलते भारत में किसी कम्पनी को ब्राजील के साथ कारोबार करना किसी पड़ोसी देश के साथ कारोबार करने के मुकाबले 20 फीसदी सस्ता पड़ता है।” और, मुख्य समस्या है कि, “पूरे क्षेत्र में एक व्यापक भरोसे की कमी है।”

फोटो सौजन्य : ट्रेड प्रोमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया
फोटो सौजन्य : ट्रेड प्रोमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया  

पिछले सप्ताह, मैंने एशिया के उन देशों की तुलना में दक्षिण एशिया के गरीब रहने के बारे में लिखा था, जिन्होंने हमसे कुछ अलग किया है। मकसद यह पता लगाना है कि हम क्या गलत या अलग तरीके से कर रहे हैं और हमारे और उनमें क्या अलग है। और, ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि तर्क दिया गया है, कि सिर्फ आर्थिक व्यवस्था का स्वरूप ही दोषी नहीं है।

हमने अपनी अर्थव्यवस्था को केंद्रीय योजनाओं (भारत में 1950 और 60 के दशक में), लाइसेंस राज से (1980 के दशक में) और उदारीकरण से (पाकिस्तान में उदारीकरण 60 के दशक में और भारत में 90 के दशक में शुरु हुआ) चलाने की कोशिश की है। हम जो कुछ पहले कर रहे थे (1970 के दशक में और वर्तमान में आयात का विकल्प), उसी की तरफ लौट गए थे। हमें कुछ कामयाबी मिली थी और हमने ऐसे क्षेत्र (भारत करीब चौथाई सदी से सूचना तकनीक आधारित सेवाओं में और बांग्लादेश गारमेंट के कारोबार में) विकसित किए जिनमें हम शीर्ष पर पहुंचे।

ऐसा नहीं है कि हमारे पास ठोस शक्ति नहीं था या हमने उसके लिए कोशिश नहीं की। हमने परमाणु हथियार विकसित किए, हमने अपनी सेनाओं पर भारी-भरकम रकम खर्च की। पाकिस्तान ने अपने सारे सरकारी खर्च का 17 फसदी सेना पर खर्च किया, भारत और बांग्लादेश ने इस पर 9 फीसदी खर्च किया। हमने खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश की, इसके लिए ताकतवर शब्द का इस्तेमाल हो सकता है, जोकि उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से में सेना की शक्ति से ही आंका जाता है (भारत में कश्मीर और उत्तर पूर्व, पाकिस्तान में बलूचिस्तान में तैनाती आदि से)।

Published: undefined

हमने निडर बने रहने की कोशिश की। हम पश्चिमी गठबंधनों (1960 के दशक में पाकिस्तान इसमें आया) में शामिल हो गए हम गुटनिरपेक्ष बने हुए हैं (1950 के दशक में भारत) और, हमने बीच-बीच में कुछ और भी करने की कोशिश की है।

लेकिन नतीजा वह आंकड़े हैं, जिनका जिक्र हमने पिछले लेख में किया था। विश्व की वार्षिक प्रति व्यक्ति जीडीपी 12,262 डॉलर है। चीन इससे थोड़ा आगे है और बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान इसका पांचवा हिस्सा हैं। 1960 में हम वैश्विक आंकड़े 459 डॉलर के मुकाबले पांच गुना कम 82 डॉलर पर थे। यहां ध्यान रखना होगा कि यह दुनिया के 7.7 अरब लोगों की प्रति व्यक्ति आय है, दक्षिण एशिया की इसमें 23 फीसदी हिस्सेदारी है। यानी हम अर्थव्यवस्था और उत्पादकता के मामले में बीते 60 साल से दुनिया को , कमोबेश एक ही दर से नीचे खींच रहें हैं।

Published: undefined

शायद कुछ ऐसा है जिसे हम भूल रहे हैं। आखिर वह क्या है?  विश्व बैंक का कहना है कि बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर-क्षेत्रीय व्यापार हमारे कुल व्यापार का 5 फीसदी है, यह दक्षिण एशिया के मुकाबले काफी कम है जो इससे पांच गुना ज्यादा है। इन देशों के बीच अभी कुल व्यापार 23 अरब डॉलर का है जो दरअसल 100 अरब डॉलर से अधिक का होना चाहिए था। आखिर क्यों? समस्या मानवनिर्मित है। विश्व बैंक कहता है कि, “सीमाई चुनौतियों के चलते भारत में किसी कम्पनी को ब्राजील के साथ कारोबार करना दक्षिण एशिया के किसी पड़ोसी देश के साथ कारोबार करने के मुकाबले 20 फीसदी सस्ता पड़ता है।” और, मुख्य समस्या है कि, “पूरे क्षेत्र में एक व्यापक भरोसे की कमी है।”

Published: undefined

इसमें आगे कहा गया है कि दक्षिण एशिया “व्यापार और लोगों से लोगों के संपर्क के मामले में दुनिया के सबसे कम एकीकृत क्षेत्रों में से एक है। पारंपरिक चिंताओं को दरकिनार कर और साझा कदम उठाकर साझा मुद्दों के लिए सीमाई समाधान विकसित किया जा सकता है, क्षेत्रीय संस्थानों को मजबूत किया जा सकता है, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी में सुधार किया जा सकता है और व्यापार नीति को आगे बढ़ाया जा सकता है।"

सवाल है कि आखिर बाहर की कोई संस्था हमें वह क्यों बता रही है जो एकदम सामने है? लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा ही है। विश्व बैंक आगे कहता है कि क्षेत्रीय सहयोग से दक्षिण एशिया के सभी देशों में फायदा हासिल करने की क्षमता है क्योंकि व्यापार का ग्राफ सालाना 44 अरब डॉलर है। विकसित देशों की तुलना में दक्षिण एशिया में कंटेनर शिपमेंट की लागत 50 प्रतिशत कम करने की गुंजाइश हमारे पास है। लेकिन यह तभी हो सकता है जब हम एक-दूसरे के प्रति अभी के मुकाबले कम दुश्मनी और अधिक खुलेपन का रवैया अपनाएं।

यह वह एक बात है जिसे हमने नहीं आजमाया है। हमने एक दूसरे के प्रति खुलापन नहीं अपनाया और लगभग उसी भौगोलिक और आर्थिक स्थिति की तरफ लौट गए हैं जैसा कि 1947 से पहले था। वास्तव में, हमने आंतरिक रूप से अधिकारों को संघ से लेकर राज्यों तक और इसके आगे भी हस्तांतरित नहीं किया है।

Published: undefined

रुचिर शर्मा ने अपनी किताब ‘द 10 रूल्स ऑफ सक्सेसफुल नेशंस’ में लिखा है कि, "सबसे बड़े उभरते देशों में, व्यापार औसतन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 60 फीसदी है, और उस औसत से काफी ऊपर के देश प्रमुख निर्यातक होते हैं, जिनका नेतृत्व चेक गणराज्य (142), वियतनाम (210), मलेशिया (131), और थाईलैंड (117) करते हैं।”

उन्होंने आगे लिखा है और जिससे हमें आश्चर्य नहीं होगा कि, “इस बीच, दक्षिण एशिया के बीच दीवारें खड़ी हो गई है। अलगाव, अराजकता और क्षेत्रीय युद्धों से पैदा कड़वाहट ने भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए सीमाएं खोलना मुश्किल बना दिया है और अब तक, किसी भी नेता ने इस शत्रुता को कम करने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाया है।”

दरअसल भारत में जीडीपी के मुकाबले व्यापार 2014 के 58 फीसदी से नीचे गिरकर 44 फीसदी पर पहुंचा है, पाकिस्तान की 30 फीसदी पर और बांग्लादेश की 28 फीसदी पर आ गई है।

Published: undefined

क्या यह संभव है कि हम स्वयं को एक-दूसरे के प्रति खोल सकें? यदि हां, तो सभी कठिनाइयों और अंतर्निहित ऐतिहासिक प्रतिरोध को देखते हुए, किस यथार्थवादी तरीके से? और अगर ऐसा हो गया, तो इसका हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? मुझे नहीं पता कि ऐसा करके हम ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया ने जो किया उसे दोहरा सकते हैं या नहीं, लेकिन मुझे पता है कि इससे कम से कम वह प्रतिबंध हट जाएगा जिसे हमने जानबूझकर खुद पर लगाया है।

सच्चाई यह है कि तीनों देशों के लोकतांत्रिक होने के बावजूद इस क्षेत्र में आज इसकी व्यापक रूप से चर्चा भी नहीं की जाती है, और इससे पता चलता है कि हम अपनी स्थिति के प्रति कितनी नजर फेरे हुए हैं। और, 21वीं सदी की दूसरी तिमाही में प्रवेश करने के साथ ही दक्षिण एशिया में जिस तरह से हालात बने हुए हैं, उससे हमारे राजनीतिक दल कितने संतुष्ट और गैर-महत्वाकांक्षी हैं।

आइए हम इसे बदलने का प्रयास करें, भले ही यह बदलाव कितना भी मामूली क्यों न हो।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined