विचार

भारत डोगरा का लेख: देश में इस तरह तो नहीं सुलझेगा जल संकट, मोदी सरकार की इन गलतियों का भुगतना पड़ सकता है खामियाजा!

कुछ समय पहले घोषणा हुई कि आजादी के 75 वें महोत्सव में हर जिले में 75 तालाब खोदे जाएंगे। तालाब बनाना बहुत अच्छा कार्य तो निश्चित तौर पर है, पर इतने अधिक तालाबों के लिए ऐसी एक निश्चित समय अवधि तैयार करना उचित नहीं है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

केंद्रीय सरकार ने हर घर में नल और इसके लिए पाइपलाइन बिछाने को बड़ी प्राथमिकता बनाया हुआ है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन नलों और पाइपलाइनों में जिन जल स्रोतों से पानी आना है उनमें से अधिकांश सिमटते जा रहे हैं। कहीं प्रदूषण से तो कहीं रेत-खनन से, कहीं अतिक्रमण से तो कहीं भूजल-स्तर नीचे चले जाने से, जल-स्रोतों पर संकट बढ़ता जा रहा है।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

कुछ समय पहले घोषणा हुई कि आजादी के 75 वें महोत्सव में हर जिले में 75 तालाब खोदे जाएंगे। तालाब बनाना बहुत अच्छा कार्य तो निश्चित तौर पर है, पर इतने अधिक तालाबों के लिए ऐसी एक निश्चित समय अवधि तैयार करना उचित नहीं है। यदि तालाब सही तरीके से बनना है, तो उसे जन-भागेदारी की कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। कौन सा स्थान उचित है, कहां लोग इसके निर्माण में और रख-रखाव में उचित सहयोग देंगे, इन सब बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि कहां नया तालाब बनाने की जरूरत है, कहां यही उद्देश्य पहले से उपेक्षित पड़े तालाबों की मरम्मत से कहीं कम खर्च में बेहतर ढंग से प्राप्त हो सकता है।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

एक लंबे समय तक उपयोगी रहने वाले तालाब बनाने में और गड्डे या खाई खोद देने में निश्चय ही बहुत फर्क है। किसी तालाब का अपने जलग्रहण क्षेत्र से भरने या उसे पाईप लाईन से या टैंकर लाकर भरने में भी बहुत फर्क है। सफल तालाब बनाने के लिए जन-भागेदारी जरूरी है और जन-भागेदारी की अनेक प्रक्रियाएं जरूरी हैं जो समय मांगती हैं। ऐसे में यदि किसी विशेष समय पर कार्य समाप्त करने का जोर हो और जन-भागेदारी की विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए पर्याप्त समय न दिया जाए तो नौकरशाही वही भूल दोहराएगी जो पहले होती रही है। तालाब की जगह गड्डे बन जाएंगे और इनसे जुड़ी कुछ सजावट, कुछ उद्घाटन समारोह तो हो जाएंगे, यह आंकड़ों में तो जुड़ जाएगा पर यह ऐसे तालाब नहीं बन जाएंगे जो दीर्घकालीन स्तर पर सफल माने जाएं।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

दूसरी ओर बहुत से परंपरागत तालाबों में यह दीर्घकालीन सफलता का गुण आज भी नजर आ रहा है और इनसे सीखना चाहिए कि स्थानीय जरूरतों के अनुसार विभिन्न स्थानों के तालाबों में किन सावधानियों को ध्यान में रखा गया है और किस तरह के कौशल को अपनाया गया है। इस तरह के दीर्घकालीन महत्त्व के बहुत समझदारी से बनाए तालाबों और अन्य जल-स्रोतों की मरम्मत से, सही रख-रखाव से, अतिक्रमण हटाकर भी बहुत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

इसके लिए विकेन्द्रित सोच और प्रयास की जरूरत है, जिससे स्थानीय जरूरतों के अनुसार, कार्य हो। पर केन्द्रीय सरकार द्वारा अति केन्द्रित नीति अपनाई जा रही है और आजादी के 75 वर्षों के उपलक्ष्य में यह घोषित किया गया है कि हर जिले में 75 तालाब बनाए जाएं। हो सकता है कि किसी जिले में 50 की जरूरत है किसी में 100 की, हो सकता है किसी जिले में अभी 25 की ही तैयारी हो सकती है और किसी में 125 की। हो सकता है कहीं इतने तालाबों के लिए उपयुक्त स्थान ही न हो और अन्य जल स्रोतों के लिए बेहतर संभावनाएं हों। हो सकता है कि कहीं के लिए नए तालाब उपयुक्त हों तो कहीं के लिए पुराने तालाबों की मरम्मत और सही रख-रखाव की जरूरत हो। अतः सभी जिलों के लिए अपनी स्थिति के अनुसार, जल-संग्रहण की जरूरतों के अनुसार, कार्य करने की आवश्यकता है न कि एक ही लकड़ी से सबको हांकने की या एक ही केन्द्रीय आदेश को सब पर जबरदस्ती लादने की।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

इतना जरूर सही है कि तालाबों और लघु स्तर के जल-संरक्षण और संग्रहण पर अधिक ध्यान देना जरूरी है। पर इसके लिए यह भी जरूरी है कि नदी-जोड़ जैसी विशालकाय परियोजनाओं पर जो बहुत बड़ी फिजूलखर्ची हो रही है, उसे रोका जाए। केवल केन-बेतवा लिंक परियोजना पर ही 45000 करोड़ रुपए खर्च होंगे और इसमें 20 लाख से भी अधिक पेड़ कटेंगे जबकि इस परियोजना से होने वाले प्रचारित लाभों के बारे में बहुत सवाल उठाए गए हैं। अतः इस तरह की अति खर्चीली, पर्यावरण की तबाही और लोगों का विस्थापन करने वाली परियोजनाओं को त्याग कर छोटे स्तर की जन-भागेदारी की जल-संग्रहण और संरक्षण पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST

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Published: 05 Jun 2022, 11:17 AM IST