विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: मस्जिद में अगर शिवलिंग मिल गया है तो आज का 'आडवाणी' भी मिल ही जाएगा!

ज्ञानवापी मस्जिद में वजू करने की जगह बने एक कुंड में जब हिंदू पक्ष ने कह दिया है कि वहां शिवलिंग है, तो फिर शिवलिंग है ही। बात खत्म। गोदी चैनलों और हिंदी अखबारों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है फिर बचा क्या? जो है महज औपचारिकता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कोई कहे न कहे ,फैसला तो जी हो चुका। अब कोई कुछ भी कहे, कोई अदालत कोई भी फैसला दे, कभी भी दे, उससे खास फर्क नहीं पड़ता। संविधान और कानून की कोई दुहाई देना चाहे तो वह जीभर देकर देख ले। थोड़े दिन, कुछ महीने, एक- डेढ़ साल वह भी खुश हो ले मगर अब किसी के दुखी-सुखी होने से अंतर पड़नेवाला है नहीं। फैसला हो चुका है। ज्ञानवापी मस्जिद में वजू करने की जगह बने एक कुंड में जब हिंदू पक्ष ने कह दिया है कि वहां शिवलिंग है, तो फिर शिवलिंग है ही। बात खत्म। गोदी चैनलों और हिंदी अखबारों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है फिर बचा क्या? जो है महज औपचारिकता है।

सच तो यह है कि अब किसी कोर्ट के किसी फैसले की जरूरत नहीं। सारे तर्क, सारी बहस अब फिजूल है। अब आस्था जाग उठी है। अब आस्था ही निर्णय लेगी। अब आस्था ही कोर्ट है। आस्था ही वकील और आस्था ही पक्षकार है। और भाइयो -बहनो, आप गलत मत समझना, फैसला चैनलों-अखबारों ने खुद नहीं लिया है,.परम आस्थावान मोदी-शाह-योगी की सुपर सुप्रीम कोर्ट ने लिया है। इनका काम तो केवल उस कोर्ट की ओर से मुनादी करना, उसकी ताइद करना था, जो बेचारे आज तक कर रहे हैं। सच पूछो तो अब उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय को इसमें पड़ना नहीं चाहिए। कह देना चाहिए कि जब आपके पासक्षसंसद है धर्म संसद है, सुपर सुप्रीम कोर्ट भी है तो फिर हमारे पास आकर अपना और हमारा समय बर्बाद क्यों करते हो!

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तो अब संसद के बनाये किसी पहले के कानून, किसी अदालत के किसी पूर्व निर्णय, किसी कमेटी की किसी रिपोर्ट की जरूरत नहीं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की विस्तृत छानबीन की भी आवश्यकता नहीं। अब मुसलिम पक्ष को सुनने की जरूरत नहीं रही। किसी विडियोग्राफी रिपोर्ट की आवश्यकता भी नहीं। फैसला हो चुका, अब कार्यान्वयन बाकी है। और इसकी अभी वैसे खास जल्दी भी नहीं है। 2024 के आमचुनाव अभी दो साल दूर हैं। तब तक यह आग जलती रहेगी। मुद्दा धीमी आंच पर पकता रहेगा।

सबको मालूम होवे कि 'हिंदू' जब जाग जाता है तो फिर वह बरसों-बरसों सोता नहीं, झपकी तक नहीं लेता। वह पिछले आठ साल से जागरणरत है। जागा हुआ 'हिंदू' , बाकी सब को सुला देता है। फिर वह कोई भी हो। इतना ही नहीं, उसकी दयालुता देखो, वह गर्मी में सबको रजाई के अंदर सोने को कहता है और ठंड में सबकी रजाई खीच लेता है। फिर हर मस्जिद के नीचे मंदिर निकलना शुरू हो जाता है। मस्जिद तो मस्जिद, ताजमहल के नीचे भी मूर्तियां प्रकटना चाहने लगती हैं। ताजमहल, तेजोमहालय बन जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ज्ञानवापी में शिवजी प्रकट होकर सनातन परंपरा का संदेश देने लगते हैं। वह दिन भी आएगा, जब कानून और संविधान की बात करनेवालों के आवासों के नीचे भी मंदिर प्रकट होने लगेंगे!

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जब संघ-भाजपा 'हिंदू' को जगा देती है तो वह फिर खूनखराबे से भी नहीं डरती! बस इस बार यह तय होना बाकी है कि रथयात्रा से आग लगाने का काम कौन करेगा? आज का आडवाणी कौन बनेगा? मोदी बनेंगे नहीं। वह प्रधानमंत्री हैं। एक बार डोर उन्होंने किसी को कुछ देर के लिए थमा दी। उसने पतंग उड़ाना शुरू कर दिया, तो फिर उससे छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। योगी भी आडवाणी नहीं बनेंगे, उनकी भी यही समस्या है। यहवाली डोर छूटी तो प्रधानमंत्री बनने का सपना भी हवा हो जाएगा। बचे अमित शाह। उनके अलावा इस देश का गृहमंत्रालय कोई संभाल नहीं सकता। फिर जो आडवाणी बनता है, उसे उपप्रधानमंत्री बनकर संतोष करना पड़ता है। बाजी कोई और मार ले जाता है। उसके बाद भी यह सिलसिला टूटता नहीं। फिर एक दिन प्रधानमंत्री वह बन जाता है , जो आडवाणी के पीछे उचक-उचक कर अपनी तस्वीर खिंचवाता रहता था और कोई उस पर ध्यान नहीं देता था। इसलिए आडवाणी बनने की कुर्बानी कौन दे, यह यक्षप्रश्न अभी बना हुआ है।

लेकिन इतना तो तय हो चुका है कि शिवलिंग वहीं है। शिवलिंग है तो कोई न कोई आडवाणी भी मिल जाएगा। इस बार उसे उपप्रधानमंत्री भी बनने नहीं दिया जाएगा। उसे समाज कल्याण या विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी मंत्रालय देकर निबटा दिया जाएगा। उसी में वह मर-खप जाएगा। वैसे फैसला जब ज्ञानवापी मामले में हो चुका है तो गए बाकी सब मुद्दे गड्ढे में। निकाल लो भारत जोड़ो यात्रा अब। कर लो हिन्दू-मुसलिम एकता की बात। करके देखो अब भयानक महंगाई, बेरोजगारी की बात। अर्थव्यवस्था के गिरते चले जाने की बात। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने की बात। कुछ भी कर लो अब 'हिंदू' जाग उठा है, शिवजी प्रगट हो चुके हैं।

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'हिंदू' को इस पूरी सदी में केवल मंदिर ही चाहिए, शिवलिंग ही चाहिए। अब आस्था की ही चलेगी, पेट की आग की नहीं। पेट तो भरता और खाली होता रहता है मगर संघी आस्था हमेशा भूखी रहती है। वह आस्था के लिए कोई मस्जिद, कोई ताजमहल के नीचे मंदिर खोजती और पाती रहती है। अतः आस्था को इधर से उधर शिफ्ट करना होता है। अयोध्या से काशी, आगरा और मथुरा तक ले जाना पड़ता है, ताकि उसकी कुछ भूख मिटे। आस्था का पथ कठिन है। उस पर चलने के लिए हर हिंदू को जगाने की और बाकी सभी समस्याओं को सुलाने की जरूरत है।

आस्था इसलिए जागती है, हिंदू इसलिए जागता है कि मोदी को अपने इस पूरे जीवन को प्रधानमंत्री बनकर कृतार्थ करना है। अब इतिहासकार और पुरातत्वविद् वही माने जाएंगे, जो हिंदू आस्था की बात करेंगे। जीवन में जिसे कुछ करना है ,उसे आस्था के यज्ञ में अपनी आहूति देते रहना है।

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