खोजा नसरुद्दीन की एक कहानी है: एक दिन एक मरीज खोजा नसरुद्दीन के पास आया, जो हकीमी जानते थे। अंदर आते ही वह जोर-जोर से चीखने लगा- 'हाय मैं मर गया। हाय मेरी जान निकल गई। मेरे पेट में बहुत जोर का दर्द हो रहा है। जल्दी से कोई दवाई दीजिए, खोजा साहब।'
उन्होंने पूछा-' तुम्हें हुआ क्या है? तुमने कोई बेकार-सड़ी चीज तो नहीं खाई है?' 'नहीं खोजा साहब, ऐसा कुछ नहीं किया। मैंने तो सिर्फ एक रोटी खाई। उस पर फफूंद लगी हुई थी।' मरीज का जवाब था।
यह सुनकर खोजा अपनी दवाइयों की संदूकची खोलने लगे। उसमें से आंख की दवा निकाली।मरीज से कहा, 'जरा अपना सिर इधर ऊपर करो। आंखें खोलो। तुम्हारी आंखों में दवाई डालना है।' मरीज चीखा-' खोजा साहब आप यह क्या कर रहे हैं? मुझे पेट में दर्द है, आंखों में नहीं।'
खोजा नसरुद्दीन ने कहा- 'मैं बिल्कुल ठीक समझ रहा हूं। तुम्हें आंखों की दवा चाहिए। अगर तुम्हारी आंखें ठीक होतीं तो इस उम्र में तुम फफूंद लगी रोटी न खाते।'
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खोजा नसरुद्दीन ने यह कहानी खासतौर अरविन्द केजरीवाल पर लागू होती है, जो पिछले तीन साल से बीजेपी की फफूंद लगी रोटी खाए चले जा रहे हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उनके पेट में दर्द क्यों है? उन्हें यह बिल्कुल नहीं लगता कि उनकी इस समस्या की जड़ उनकी आंखों में है। उनकी आंखें ठीक होतीं तो वह बीजेपी की फफूंद लगी रोटी नहीं खाते। समस्या आंखों की है, इसीलिए उन्हें भारत को अमीर बनाने का रास्ता रुपये पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो लगाने में नजर आ रहा है। देश की समृद्धि का मार्ग लक्ष्मी-गणेश का आशीर्वाद लेने में दीख रहा है।
खोजा नसरुद्दीन के उस मरीज का तो पता नहीं कि उसने अंततः आंखों में दवा डलवाई या जान छुड़ाकर भाग निकला मगर केजरीवाल की समस्या ज्यादा गंभीर है। वह न तो आंखों में दवा डलवाएंगे, न फफूंद लगी रोटी खाना बंद करेंगे और न हकीम के पास दौड़ना छोड़ेंगे।
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लगता है कि राजनीति में अंततः इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस के पास बीए-एम ए की फर्जी डिग्री है और किसके पास आई आई टी की असली डिग्री। ताजा इतिहास बताता है कि फर्जी डिग्री वाले की राह पर ही ऊंची-ऊंची असली डिग्री वाले भी चला करते हैं। केजरीवाल ही नहीं, बीजेपी के बाहर और अंदर, फफूंद लगी रोटी खानेवाले तमाम पढ़े लिखे लाइन में लगे हैं।बीजेपी में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ी नुपूर शर्मा हैं, तो बाहर केजरीवालों की भीड़ है। अब समस्या अधिक गंभीर इसलिए है कि इनको फफूंद लगी रोटी पसंद आने लगी है और इसके खाने से किसी नेता के पेट में अब दर्द भी नहीं होता। अब दर्द ताजी रोटी खाने से होता है, अपनी मेहनत से कमाई रोटी से होता है। अब कोई खोजा नसरुद्दीन या कबीर कुछ नहीं कर सकता, केवल देख-देख हंस सकता है और हंसना अब कम खतरनाक नहीं रहा। समस्या अब आंखों से ऊपर, दिमाग तक पहुंच चुकी है। और जिसके पास जितनी बड़ी डिग्री है, उसका दिमाग उतना ही अधिक चल चुका है।
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केजरीवाल से ज्यादा चतुर तो फर्जी डिग्री वाला निकला। उसे शुरू से समझ में आ गया था कि फर्जीपन ही सफलता की असली कुंजी है और इसका सबसे आसान रास्ता वाया संघ बीजेपी तक जाता है। यही वजह है कि वह पिछले बीस साल से अपने प्रदेश के बाद अब देश पर निर्द्वंद्व होकर राज कर रहा है। उधर असली डिग्री वाले की सांस तो केवल पांच साल अपने रास्ते पर चलने पर ही फूलने लगी थी! उसे पिछले तीन साल में यह समझ में आ गया है कि फर्जी डिग्री वाले की राह ही असली राह है, जबकि हम दिल्ली वाले बेवकूफ इसलिए उसे वोट देते रहे कि यह अपनी राह पर चल रहा है। वैसे असली डिग्री वाले को अभी भी यह ठीक से समझ में नहीं आया है कि अंततः उसे करना क्या चाहिए? हनुमान भक्ति या परम नास्तिक और कम्युनिस्ट शहीद भगत सिंह की फर्जी भक्ति। वह बाबासाहेब अंबेडकर की भक्ति करते हुए भी नजर आना चाहता है और उन्होंने धर्मांतरण करते समय जो 22 शपथ ली थीं, उन्हें लेनेवाले अपने दलित मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम की मंत्रिमंडल से छुट्टी भी कर देता है। वह समृद्धि की राह, लक्ष्मी- गणेश की तस्वीर में ढूंढने की प्रेरणा व्यापारियों से लेता है।
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उसे शायद मालूम नहीं कि फर्जी डिग्री वाला इस खेल में उससे सौ कदम आगे है। वह जिस स्कूल का छात्र है, उस स्कूल का फर्जीवाला प्रिंसिपल रह चुका है। फर्जीवाला तो दो विधायक जिता कर भी अपनी सरकार बनाना जानता है। उसे नोट पर लक्ष्मी- गणेश की तस्वीर का मुद्दा उठा कर डराया नहीं जा सकता।
वैसे केजरीवाल जी की अगर सचमुच यह मंशा है कि नोट पर लक्ष्मी- गणेश की तस्वीर होना चाहिए तो उन्हें अपनी जेनुइननेस साबित करने के लिए सबसे पहले अपनी आईआईटी की डिग्री लौटा देना चाहिए,ताकि उन पर पढ़े -लिखे होने का आरोप लगा कर कोई उन्हें बदनाम न कर सके और वह सिरियसली फर्जी डिग्री वाले का मुकाबला करने के योग्यता प्राप्त कर सकें। मेरी शुभकामनाएं!
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