विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: दो लड़के धर्मेंद्र और नरेंद्र की कहानी

धर्मेंद्र के घर में रोज किसी नरेंद्र की तारीफ़ होती रहती थी। रोज शाम को कोई आ जाता और नरेंद्र की तारीफ शुरू हो जाती। उस दौरान कोई गलती से भी धर्मेंद्र की तारीफ नहीं करता था‌। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो: द प्रिंट

धर्मेंद्र एक अच्छा लड़का है। इतना अच्छा लड़का है कि उसे भी लगता है कि वह बहुत ही अच्छा लड़का है। उसकी दुआ है कि हर मां- बाप को उस जैसी संतान हो। वह हर लड़के को देखकर मन ही मन तुलना करता है कि यह मेरे जैसा अच्छा लड़का है या नहीं है और हर बार वह यह जानकर खुश हो जाता है कि उसके जैसा अच्छा लड़का कोई हो ही नहीं सकता। वह सोचता तो यह भी है कि उसके जैसा लड़का ही क्या, लड़की भी शायद ही कोई इस दुनिया में हो मगर इस बारे में वह निश्चय नहीं कर पाता क्योंकि लड़कियां उसे बहुत अच्छी लगती हैं। हो सकता है, उनमें उस जैसी कोई पूरी तरह नहीं तो 80 प्रतिशत हो मगर उस जैसी सौ-फीसदी अच्छी तो कोई हो ही नहीं सकती! वह सुरक्षित है।

वह हर दिन अपनी मम्मी  से पूछता है कि मम्मी मैं एक अच्छा लड़का हूं न! मां कहती हैं, हां मेरे लाल, तेरे जैसा अच्छा लड़का, दुनिया में कोई नहीं। मैं भी नहीं, तेरे पापा भी नहीं, कोई और भी नहीं। भगवान भी नहीं। वह पिता से पूछता है तो वो भी कहते हैं, हां मेरे बेटे जैसा कोई नहीं। इससे वह और अधिक खुश हो जाता है। किसी दिन उसके पापा कह देते हैं कि रोज क्या पूछता रहता है बेवकूफ। अपनी रोज तारीफ करवाना अच्छी बात नहीं है। तो वह थोड़ी देर के लिए हताश हो जाता है। वह सोचता है, पापा मुझसे जलते हैं। बस मां है, जो मुझसे जलती नहीं!

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उसकी मम्मी, उसके पापा को अलग ले जाकर कहती है कि बेचारे का दिल क्यों तोड़ते हो, कह दो, अच्छा लड़का है। खुश हो जाएगा बच्चा। तो वह कह  देते हैं। एक दिन उन्होंने कहा कि हमसे तो रोज पूछते हो मगर तुम ये तो कभी नहीं कहते कि पापा, आप बहुत अच्छे हो, मम्मी, तुम बहुत अच्छी हो। वह सोच में पड़ गया। मजबूरी में कह तो दिया कि आप दोनों बहुत अच्छे हो मगर वह जानता था कि वही सबसे अच्छा है। मां-बाप में वह बात कहां, जो उसमें है!

धर्मेंद्र के घर में रोज किसी नरेंद्र की तारीफ़ होती रहती थी। रोज शाम को कोई आ जाता और नरेंद्र की तारीफ शुरू हो जाती। उस दौरान कोई गलती से भी धर्मेंद्र की तारीफ नहीं करता था‌। धर्मेंद्र को इसका बहुत बुरा लगता। उससे अच्छा भी इस दुनिया में कोई हो सकता है? पता चला, यह वही नरेंद्र है, जो रोज अखबार में आता है, टीवी में भेस बदल -बदल कर छाता है। सड़क पर जिसका फोटो टंगा मिलता है।

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एक दिन धर्मेंद्र ने अपने पापा से पूछा, पापा, क्या ये नरेंद्र,  मुझसे भी अच्छा है? पापा ने मुस्कराते हुए कहा, जाओ, बेटा खेलो। इसके आगे कुछ नहीं कहा। धर्मेंद्र ने सोचा, जरूर नरेंद्र मुझसे अच्छा है। अब नरेंद्र ,धर्मेंद्र का आदर्श बन गया। उसका लक्ष्य अब नरेंद्र बनना था।

धर्मेंद्र को अब जहां भी नरेंद्र की तस्वीर दिख जाती, उसके वह हाथ जोड़ना नहीं भूलता। एक बार साइकिल से जा रहा था, तो उसे नरेंद्र की तस्वीर दिख गई। उसे ध्यान नहीं रहा और दोनों हाथ छोड़कर हाथ जोड़ने के चक्कर में अपने हाथ- पैर तुड़ा बैठा। इससे उसकी नरेंद्र के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। वह नरेंद्र का नाम जहां सुनता, वहां श्रद्धा से उसका सिर झुक जाता। उसकी आवाज़ सुनता तो सब काम छोड़कर उसकी वाणी का आनंद लेने लगता। स्कूल में भी नरेंद्र-नरेंद्र का जाप  करता। वह नरेंद्र की तरह बोलता। नरेंद्र की तरह बादलों को, पेड़ों को,  हवा को टाटा किया करता। उसके सब साथी उससे ऊबने लगे थे। उसे चिढ़ाने लगे थे। धर्मेंद्र को पागल समझने लगे थे। साथी, जितना उसे पागल समझते, उतना ही उसका नरेंद्र बनने का संकल्प मजबूत होता जाता था।

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वह बिना टिकट एक दिन दिल्ली पहुंच गया। लोक कल्याण मार्ग पर उसे बार बार चक्कर लगाता देख पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फिलहाल वह जेल में हैं। वहां उससे पूछताछ जारी है। वहां भी वह नरेंद्र-नरेंद्र का अहर्निश जाप किया करता  है। उसे उम्मीद है कि एक दिन नरेंद्र खुद आएंगे। जेल से उसे छुड़ाकर ले जाएंगे और अपनी भक्ति का आदर्श बताते हुए उसे युवाओं के सामने पेश करेंगे। उस दिन तालियों की गड़गड़ाहट से दुनिया का आकाश गूंज जाएगा। नरेंद्र को भी एक दिन सब भूल जाएंगे। सब धर्मेंद्र-धर्मेंद्र करेंगे।  

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