विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: इतना भव्य जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए सम्राट का धन्यवाद, दिल्ली वाले धन्य हुए!

सरकारी धन को तो हमारे सम्राट ने हमेशा अपने हाथ का मैल ही समझा है और उचित भी है। फिर भी इस आयोजन पर उन्होंने अधिक धन खर्च नहीं करवाया। ये कोई साढ़े चार हजार करोड़ से कुछ अधिक खर्च हुए हैं। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

फोटो: ANI
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जी-20 शिखर सम्मेलन के सालभर कानफोडू शोर और आंखथकाऊ सीन दिखाए गए। आज यहां तो कल वहां। परसों वहां तो नरसों वहां। सारा देश चकरघिन्नी होता रहा। सब तरफ जी -20, जी -20 था। ये जी तो, जैसे जी का जंजाल बन गया था। और आज तीसरे दिन भी दिल्ली, गुड़गांव, गाजियाबाद आदि के हम सामान्य लोगों के लिए मुसीबत ही बना रहेगा।

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शुक्र है कि आज शाम के बाद यह सब थम जाएगा। रवानगी शुरू हो जाएगी। छोटे कर्मचारियों, जूनियर अफसरों की सांस में सांस आएगी। मजदूर श्रेणी के कर्मचारियों को गुटखा खाने, चाय पीने, बीड़ी- सिगरेट का सुट्टा मारने, खुल कर हंसने, मिलकर गाने का वक्त मिलेगा। बिस्तर में बेसुध पड़कर खर्राटे लेने का वक्त मिलेगा। पत्नी- बच्चों की सूरत कई दिन बाद बहुत से लोग आज रात देख पाएंगे मगर इतने थके हुए होंगे कि उन्हें प्यार करने, उनसे प्यार लेने की हिम्मत न बची होगी। कुछ की जान तो आज के बाद भी नहीं छूटनेवाली। मेहमान जाएंगे तो उनके हवाई अड्डे तक पहुंचने और उड़ान भरने तक उन थके-हारों को खटते रहना पड़ेगा। तंबू उखाड़ना भी एक बड़ा काम है। सैकड़ों- हजारों इस काम में लगेंगे।

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दुकानदार, खोमचेवाले, साइकिल रिक्शा आदि चलाने वाले, मोची आदि तीन दिन के बाद कल से रोटी फिर से कमाना शुरू करेंगे। कुछ तो उनमें भूखे पेट होंगे पर कोई बात नहीं। सम्राट और सम्राट के मेहमानों ने तो खूब छककर बढ़िया खाया-पिया, इसका उन्हें संतोष रहेगा। और कुछ भी हो, उन्हें किसी भी तरह की एक सेकंड के लिए भी तकलीफ़ नहीं होना चाहिए था!

हम तो भाई, शुरू से उन्हें सम्राट मानते रहे। हमने उन्हें प्रधानमंत्री मान कर उनके मान-सम्मान में भरसक कोई कमी नहीं आने दी। चक्रवर्ती सम्राट नहीं कहा तो कम से कम उन्हें सम्राट कहा और माना, इसलिए आज तक सुरक्षित हैं।

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तो हमारे सम्राट ने अंतिम तीन दिनों तक मेहमानों को भारत की राजसी परंपरा का खूब रंगारंग ड्रामा दिखाया। अपने मेहमानों के लिए नृत्य- संगीत का भरपूर प्रबंध करवाया। एक से एक बढ़िया कारें उनकी सेवा में हाजिर करवाईं। फिर भी अमेरिका के राष्ट्रपति को हमारी कारों पर विश्वास नहीं था। वे अपनी कारों के काफिले के साथ आए। चीन के प्रधानमंत्री भी अपनी कारें लाए। सुरक्षा का प्रबंध तो ऐसा गजब था कि पंछी तो पंछी चींटी भी घुस जाए तो गोली खाए! और खान-पान की व्यवस्था तो दिव्यातिदिव्य थी। बड़े -बड़े सम्राटों को भी लजाने वाली! नाश्ते, दोपहर और रात के खाने में कुल चार सौ प्रकार के शाकाहारी व्यंजन थे। कोई देसी-विदेशी व्यंजन ऐसा न था, जो उन्हें परोसा न गया हो। ऐसे व्यंजन भी थे, जिनका आपने -हमने गाहे-बगाहे नामभर सुना होगा और ऐसे भी थे, जिनका नाम हम पहली बार सुन रहे थे। शहंशाह ने अपनी शहंशाही दिखाने में कोई कसर नहीं रखी। व्यंजन परोसने के लिए चांदी की पंद्रह हजार खास थालियां, कटोरियां, गिलास आदि बनवाए गए। परोसने के बर्तन भी चांदी के थे! उन पर एक से एक बढ़िया नक्थीकाशी थी। सम्राट चाहते तो सोने के बर्तनों में भी उन्हें खिलवा सकते थे। हवाई अड्डे से होटल तक उन्हें रथ पर सवार करवा सकते थे। चंवर डुलानेवाले उनके पास बिठवा सकते थे। रास्ते में स्वागत के लिए प्रजा का इंतजाम करवा सकते थे, जो सम्राट बाइडेन आदि के साथ हमारे सम्राट की भी जय-जयकार करती। स्वर्ग के देवताओं और अप्सराओं से पुष्प वर्षा भी करवा सकते थे। खैर। कुछ तो चूक सम्राटों से भी हो जाती है। फिर भी सम्राट ने एक काम बढ़िया किया। जी-20 शिखर सम्मेलन को विराट शिखर भोजन सम्मेलन में तब्दील करके दिखा दिया। इतनी तरह के व्यंजनों को उदरस्थ किया और करवाया कि उसके बाद जिस किसी में थोड़ी भी भलमनसाहत बची होगी, वह सोने के सिवाय कुछ और कर नहीं पाया होगा। हद से हद सोने से पहले, सोने के बाद और भारत मंडपम में सोते हुए वह हमारे सम्राट की तारीफ के पुल ही बांध सकता था। विचार-कुविचार-सद्विचार तो इन शिखर पुरुषों को ऐसे सम्मेलनों में करना भी नहीं होता। सबकुछ पहले से तैयार होता है। मेजें थपथपाने, ताली बजाने का काम ही बचा होता है। यह तो सोते- सोते, सोते-जागते, जागते-सोते भी आसानी से किया जा सकता है।

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और हां खा- खाकर तबियत बिगड़ जाए तो इलाज का भी उतना ही बढ़िया प्रबंध था, जितना भोजन का था। इनमें से हरेक भी बीमार हो जाता, तो भी सबको उम्दा से उम्दा इलाज मिलता। इन तीन दिनों के लिए दिल्ली विकसित देश की राजधानी बन चुका था।

सरकारी धन को तो हमारे सम्राट ने हमेशा अपने हाथ का मैल ही समझा है और उचित भी है। फिर भी इस आयोजन पर उन्होंने अधिक धन खर्च नहीं करवाया। ये कोई साढ़े चार हजार करोड़ से कुछ अधिक खर्च हुए हैं। इतना धन तो उनके शानदार विमान खरीदने पर  ही खर्च हो चुका है। इस तरह देखें तो इतनों की मेहमाननवाजी पर यह कुछ ज्यादा नहीं है! कम ही है। दो-चार हजार करोड़ और खर्च होने चाहिए थे। सम्राट को शायद यह याद आ गया होगा कि भारत एक विकासशील देश है, इसलिए आखिर बचत करवा ही दी। धन्यवाद चक्रवर्ती सम्राट!

हां इस शिखर सम्मेलन में आम लोगों के लिए दीपावली से भी बेहतर रोशनी देखने का इंतजाम था। उनकी खुशी के लिए इतना काफी था। इसे भी सम्राट की प्रजा वत्सलता ही मानना चाहिए!

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