यह देश आजकल सुशांत सिंह राजपूतमय है। आज की तारीख में सुशांंत की आत्महत्या इतना पापुलर सब्जेक्ट है कि उसने मोदीजी की 'पापुलरिटी' को पीछे ढकेल दिया है। पहले टीवी चैनल और अखबार मोदीजी से शुरू होकर मोदीजी के एजेंडे पर खत्म होते थे। फिलहाल देश के हालात 180 डिग्री बदले हुए लग रहे हैं। अब सुबह होती है, शाम होती है, रात होती है,सुशांत-सुशांत-सुशांत सुनते- सुनते जिंदगी तमाम होती है। यही कारण है कि मेरा विषय भी इस बार बदला हुआ है। सबको समय के साथ चलना पड़ता है, चाहे समय साथ चले, न चले। क्षमा करें मोदीजी इस बार चाहकर भी पूरी तरह आपकी सेवा में उपस्थित नहीं हो पा रहा हूँ। इसका मुझे अपार दुख है मगर इसके लिए मैं नहीं आपकी सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, आपके सुब्रमण्यम स्वामी, आपकी परमभक्ता कंगना रनौत, आपके टीवी चैनल, अखबार सब जिम्मेदार हैं। सबने मिल कर इस सोये हुए लेखक को जगा दिया है कि हे मूरख मोदी-मोदी क्या करता है, सारी दुनिया आज सुशांत- सुशांत कर रही है और तू इस हकीकत से मुँँह फेरे बैठा है।तू भी सुशांत-सुशांत कर।
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वाकई वे सही हैं। सुशांत की आत्महत्या को ढाई महीने से ज्यादा हो गए हैं मगर चौबीस घंटे चलनेवाला यह सीरियल इतना अधिक पापुलर है कि लगता है कि कोरोना खत्म हो सकता है मगर ये खत्म नहीं होगा। रहस्य, रोमांच, रोमांस ,फाइट, कामेडी सब के सब मसाले इसमें इतनी अच्छी तरह समाहित हैं कि इसे स्पांसर की कोई कमी नहींं। ऐसी हालत में अगर यह 2024 तक भी चलता रहे तो आश्चर्य नहीं और ऐसा हुआ तो खतरा यह है कि जनता कहीं यह न कहने लगे कि मोदीजी जाओ, सुशांतजी आओ। आपके हितचिंतक होने के नाते मैं यह बात आज ही बताए दे रहा हूँ, कल मत कहना कि नहींं बताया था। आपको असली चुनौती अब राहुल गाँधी नहीं, सुशांत सिंह दे रहा है। जो आज मेरी बात पर हँस रहे हैं कि कोई देश मर चुके आदमी को भी कभी प्रधानमंत्री बना सकता है, तो वे 2024 तक इस सीरियल की पापुलरिटी बनाए रखकर खुद नतीजा देख लें। उन्हें असलियत का पता चल जाएगा। मौत के बाद ऐसी जबरदस्त पापुलरिटी पानेवाला कोई भी शख्स उस दुनिया में चैन से नहीं बैठ सकता और इस दुनिया में आए बगैर रह नहीं सकता!
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सुशांत सीरियल की, मोदी सीरियल से ज्यादा पापुलरिटी होने की ठोस वजह है। मोदीजी अपने सीरियल में अकेले ही सबकुछ कर लेते हैं। एक्टर, एक्ट्रेस, कैरेक्टर एक्टर, विलन, निर्देशक , कैमरामैन, स्पाटबाय, स्क्रिप्ट राइटर, ड्रेस डिजाइनर, बैकग्राउंड म्यूजिशियन ,लाइटमैन यानी सब वही होते हैं। वह किसी के लिए कुछ छोड़ते नहीं क्योंकि कोरोना- काल में भी उन्हें दिन में अट्ठारह घंटे काम करने का रिकार्ड मेनटेन करना है। उधर मरणोपरांत सुशांत सिंह ने ऐसी कोई कसम नहीं खाई है! अपने सीरियल का हीरो वह जरूर है मगर बाकी सारे रोल उसने दूसरों को दिए हैं। रिया चक्रवर्ती डबल रोल में है। वह हिरोइन भी है और प्राण का महिला अवतार भी।सुशांत ने अपने पिता, बहन, वकील, आदित्य ठाकरे, महेश भट्ट, शाहरुख खान, करण जौहर, बिहार पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस, सीबीआई, ईडी, ड्रग कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारियों, एंकरों, क्राइम रिपोर्टरों आदि सबको एक्टिव रोल दे रखा है। इनमें से कुछ के लिए तो अभिनय का यह पहला मौका है और रोल धाँसू मिला है। मंजे हुए अभिनेताओं ने भी इसे पुण्य का काम समझ कर फीस लेने से मना कर दिया है। अभी भी वेकेंसीज बची हैं। सीरियल आगे बढ़ता जाएगा, एक्टर बढ़ते जाएँगे। इस सीरियल में कोई पर्दे पर आकर फिर गुम नहीं हो जाता, इसलिए इसके फेल होने का कोई चांस नहीं है। वह सीरियलों में फिल्म ' शोले ' है। इसके अलावा दोनों सीरियलों में एक बड़ा फर्क और भी है। मोदीजी का सीरियल आता है तो अभक्त कोटि के हम अधम मनुष्य टीवी बंद कर देते हैं मगर भक्तगण अगरबत्ती जलाकर, आलथी-पालथी मार कर प्रणाम की मुद्रा में मोदी वचनामृतों का पान करते हैं। सुशांत सीरियल को भक्त हो या अभक्त, सब लोग खा पीकर ,रिलैक्स होकर आराम से बैठकर देखते हैं। सासें, बहुओं से कहती हैं: 'बहू, छोड़ काम, बाद में कर लेना। तू तो आ मेरे पास आ और बैठ के ये देख'। बहुओं के सामने ऐसे अद्भुत क्षण जीवन में यदाकदा ही आते हैं। वे भी सास के आग्रह पर उनके पैर छुकर बगल में बैठ जाती हैं। किसी को कोई टेंशन नहीं होता। इसलिए भी यह फेल नहीं हो सकता।
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वैसे भी आज की तारीख में देश की सबसे बड़ी कोई चिंता है तो सुशांत की आत्महत्या है। कोरोना नहीं, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था नहीं, चीन नहीं, पाकिस्तान नहीं। राममंदिर तक बताइए ठंडे बस्ते में है। उधर खतरा मोदीजी के द्वार पर दस्तक दे रहा है कि मोदीजी संभलो,सुशांत से बचो।अभी भी वक्त है। वैसे खतरा अमिताभ बच्चन, सलमान खान आदि की पापुलरिटी को भी कम नहीं है। वे भी संभल जाएँ तो उनके फिल्मी भविष्य के लिए अच्छा है!
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