विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: PM जैसे भी हों, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि वो अभी तक के सभी प्रधानमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हैं!

वह प्रधानमंत्री जैसे भी हों, इसमें संदेह नहीं कि वह अभी तक के सभी प्रधानमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हैं । उन्हें निश्चित रूप से दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया जाना चाहिए।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

जिनके लिए मुश्किल है, उनके लिए सबकुछ मुश्किल है। रोना, भावुक होना, सब। जिनके लिए मुश्किल नहीं है, उनके लिए रोना भी बांए हाथ का खेल है। इधर कहो, उधर टप-टप आंसू  टपकने लगते हैं। उनके लिए रोकर दिखाना बच्चों का खेल भी है और व्यवसाय भी। इस काम में सबसे प्रवीण हमारे नेता हैं और अगर नेता, हमारे प्रधानमंत्री टाइप हों, तो फिर कहने ही क्या! जैसे भाषण देते समय इधर-उधर हाथ घुमाना, आवाज को तेज से तेज करना, वैसे ही रोना, गले का रुंधना उनके लिए उतना ही सहज-स्वाभाविक है, जितना कि सच न बोलना! (झूठ शब्द असंसदीय है।)

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एक ने तो लिखा है कि मोदी जी नियम से सालभर में एक बार 'व्यापक जनहित' में रोकर-भावुक होकर अवश्य दिखाते हैं। उन्हें कहां आंसू टपकाना है और कहां गले के रुंध जाने का भाव प्रकट करना है, यह लोकेल पर निर्भर करता है। उन्हें कितनी देर तक उदास दिखना है और कब दो घूंट पानी पीना है, यह स्क्रिप्ट के मुताबिक होता है। उन्होंने इसमें इतना परफेक्शन हासिल है कि पहली ही बार में  उनका शाट ओके हो जाता है। शायद ऐसा परफैक्शन अमिताभ बच्चन और आमिर खान को भी हासिल न हो!

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इतना हो जाने के बाद फिर वह अपनी पर आ जाते हैं, वही रटंत शुरू कर देते हैं, उसने सत्तर साल में ये नहीं किया, उसने वो नहीं किया। पहले ये नहीं होता था, पहले वो नहीं होता था। सब हमीं ने किया है। हम ही कर सकते हैं। ऐसी बातें गुजरात में कहते हुए भी उन्हें झिझक नहीं होती, जहां 27 साल से बीजेपी की सरकार है। जहां के मुख्यमंत्री पद को एक दशक से अधिक समय तक माननीय सुशोभित अथवा कुशोभित कर चुके हैं और जिसके कथित माडल से वह देशभर में वोट की लहलहाती फसल दो-दो बार काट चुके हैं! ऐसा माडल, जो धरती पर कहीं पाया नहीं जाता! 

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वह प्रधानमंत्री जैसे भी हों, इसमें संदेह नहीं कि वह अभी तक के सभी प्रधानमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हैं । उन्हें निश्चित रूप से दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया जाना चाहिए। निर्णायक मंडल की सदस्यता अगर वे मुझे देना पसंद करें तो जिसकी कहो, उसकी कसम खाकर कहने को तैयार हूं कि मैं केवल उनका नाम सामने रखूंगा और यह सुनिश्चित करूंगा कि उन्हें ही यह पुरस्कार मिले। मैं आपसे भी यही निवेदन करता हूं कि अगर मेरे बजाय आपको यह अवसर मिले तो आप भी केवल वहां मोदी- मोदी करें। आखिर मोदी जी, जो करते हैं, वह भी तो बॉलीवुड सिनेमा है! तो फिल्मवालों को ही यह पुरस्कार साल दर साल क्यों मिले? कोई ठेका ले रखा है इन्होंने इस पुरस्कार का! नवाचार आवश्यक है!

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उनकी इस काबिलियत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के वक्त की पुकार हो और रोज रोकर दिखाना हो, तो मोदी जी कैमरे को हाजिर-नाजिर जानकार रोज रोकर भी दिखा सकते हैं। छह ड्रेस बदलने की तरह वह दिन में छह बार रो भी सकते हैं।अगर  प्रतिदिन सुबह सात बजे और रात नौ बजे रोने का बुलेटिन जारी करने से काम चलता हो तो आप देखेंगे कि वह बिल्कुल ठीक समय पर पट् से रोकर दिखा रहे हैं और कोई कह नहीं सकता कि यह नकली रोना है। आप उनके रोने के समय से अपनी घड़ी मिला सकते हैं। अगर कोई उनके रोने, भावुक होने के कीमती क्षणों पर फिल्म बनाना चाहे तो कुछ पुराने शाट्स तो उपलब्ध हैं ही और जरूरत पूरे एक घंटे रोकर दिखाने की हो, तो साठ मिनट वह रोकर भी दिखा सकते हैं! इससे न एक सेकंड कम और न एक सेकंड ज्यादा!

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और यह मत समझिए कि मैं एक घंटे से अधिक रोने की उनकी क्षमता पर सवालिया निशान लगा रहा हूं। कतई नहीं। यह निर्देशक को तय करना है कि उसे कितनी फुटेज चाहिए और कितनी देर उनका रोना दर्शक बर्दाश्त कर सकते हैं! वह देश को अपने नेतृत्व आदि-इत्यादि के अतिरिक्त 'कश्मीर फाइल्स 'की तर्ज पर 'मोदी फाइल्स' नामक फिल्म में मुख्य भूमिका निभाकर भी दे सकते हैं, बशर्ते उसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री हों। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि ऐसी फिल्म मार्च, 2024 तक अवश्य रिलीज हो जाएगी। और इस आइडिया के लिए अपना नाम विशेष आभार में न देने पर मैं निर्माता निर्देशक का विशेष रूप से आभार होऊंगा! देशसेवा के लिए मैं आभार स्वीकार नहीं करता!

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इस पृष्ठभूमि में अब बताइए अगर प्रधानमंत्री जी- गुजरात चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा से ठीक ऐन पहले हुए मोरवी हादसे पर भावुक न होते तो क्या करते? यह भूलिए मत कि पुल बंगाल का नहीं, गुजरात का टूटा था! इसे फ्राड का नतीजा बताना आत्मघाती होता, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता! कंपनी के मालिक समेत सभी तो उनके अपने थे, अजीज थे, जिगर के टुकड़े थे! एक भी तो कोई पराया नहीं था। एकाध कम अक्ल ने इसे केजरीवाल का षड़यंत्र बताया मगर सौभाग्य से मूर्खता की एक हद जनता ने अभी भी तय कर रखी है ! बहरहाल जनता को बधाई कि भाग्य से हमें ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जो 'एक्ट आफ फ्राड ' और 'एक्ट आफ गाड' में अंतर करने की गजब तमीज रखता है। ईश्वर सभी देशों को ऐसे प्रधानमंत्री \राष्ट्रपति बख्शे! और वे ऐसा न कर पाएं तो भारत की जनता से उनकी सेवाएं स्थायी अथवा अस्थायी रूप से मांगने के लिए प्रार्थनापत्र दे सकते हैं। एक के साथ एक योजना के तहत शाह साहब से लेकर संबित पात्रा तक की सेवाएं मुफ्त उपलब्ध होंगी!

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