जब से नरेन्द्र दामोदर दास मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से देश में ' गोमूत्र- गोबर विज्ञान' का तीव्र गति से और ऐतिहासिक तथा अद्भुत विकास हुआ है। ऐसा विकास तो ऋषिमुनि सतयुग तथा त्रेतायुग में भी नहीं कर पाए थे। कांग्रेस वगैरह भी इस किस्म का विकास करने के योग्य नहीं थीं बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी भी लगता है, यह काम मोदीजी के लिए छोड़ गए थे।
मैं तो प्रतीक्षा कर रहा था कि गोमूत्र-गोबर-विज्ञान(गोगोवि) में उनके इस महती योगदान के लिए इस बार का चिकित्सा या रसायन का नोबल पुरस्कार प्रधानमंत्री को दिया जाएगा मगर खेद है कि निर्णायकों की दृष्टि अमेरिका और यूरोप के बाहर नहीं जाती। हमें एकमत से इसका विरोध करना चाहिए और 2021 में गोगोवि के विकास के लिए यह पुरस्कार मोदी जी को मिले, यह सुनिश्चित करना चाहिए। नोबेल कमेटी को यह चेतावनी देना चाहिए कि अगर अगला नोबेल पुरस्कार मोदी जी को नहीं दिया तो भविष्य में कोई भी भारतीय इसे स्वीकार नहीं करेगा। इतना ही नहीं भारतवासी कैलाश सत्यार्थी भी इसे वापिस कर देंगे।
अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के एक बड़े हिस्से का यह नैतिक कर्तव्य है कि वे न केवल ट्रंप को जिताएं बल्कि उनका अगला मिशन ' मोदी-नोबेल ' होना चाहिए। इस पुण्य कार्य में वे ब्रिटेन आदि के प्रवासियों का भी सहयोग ले सकते हैं। बाकी यहां भक्त मंडली है ही। वह इसके लिए जीजान लड़ा देगी। बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनाव के बाद उनका यही मिशन -2021 होना चाहिए।
प्रसन्नता की बात है कि गोगोवि में नित नई प्रगति चालू है। अभी बीते मंगलवार को कोई राष्ट्रीय कामधेनु आयोग है, उसके कोई अध्यक्ष हैं- वल्लभ भाई कथीरिया। उन्होंने हमें नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान दिया है कि गाय का गोबर एंटीरेडिएशन है। इसका इस्तेमाल मोबाइल में किया जा सकता है। चाहें तो इस ज्ञान का फायदा उठाकर मुकेश अंबानी, जियो को आगे और आगे रख सकते हैं।
गोगोवि के वैज्ञानिक आज भारत के कोने-कोने में फैले हुए हैं। बहु संख्यकों के किसी भी मोहल्ले के किसी भी घर पर पत्थर मारो, 99 फीसदी से अधिक संभावना है कि वहां एक या अधिक गोगोवि वैज्ञानिक मिल जाएंगे। इनकी संख्या इतनी बड़ी है कि जिन्हें बाकायदा वैज्ञानिक माना जाता है, वे इनके आगे कहीं नहीं ठहरते। विश्व के सारे वैज्ञानिकों की संख्या भी इनके आगे बमुश्किल दो प्रतिशत होगी।
यह भारत के लिए गौरव की बात है मगर 21वीं सदी के महान भारतीय वैज्ञानिक मोदी जी का इस पर गौरव प्रकट न करना लज्जा का विषय है। उनकी अचूक दृष्टि से भारत की यह श्रेष्ठ उपलब्धि चूक सकती है, इस पर भरोसा नहीं होता मगर करना पड़ रहा है। गोमूत्र- गोबर वैज्ञानिकों की एक अत्यंत लोकप्रिय और अत्यंत सामयिक खोज है कि गोमूत्र से कोरोना ठीक हो सकता है। इसके अलावा कैंसर के इलाज में भी यह कारगर है। अगर मोदीजी एम्स समेत सब जगह कोरोना और कैंसर के इलाज में गोमूत्र सेवन अनिवार्य कर दें तो कोरोना और कैंसर लंगोट छोड़कर भारत से हमेशा के लिए भाग जाएंगे। यह मिशन आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा और 2024 के आमचुनाव में मोदी जी की विजय का यह विश्वगुरु टाइप नुस्खा साबित होगा।
भारत के विश्व गुरू फिर से बनाने का जो मजाक उड़ाते हैं, उनके मुंह क्या जो-जो भी अंग बंद हो सकते हैं,सब बंद हो जाएं। ऐसे लोग मास्क पहनकर भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे। मोदीजी स्ट्रेटेजिक गलती न करें और हर पिछले प्रधानमंत्री का हर रिकॉर्ड तोड़ते हुए नोबल पुरस्कार की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाएं। एक गोगोवि वैज्ञानिक ने शोध किया है कि गाय ऑक्सीजन लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है। यह ब्रह्मांड की सबसे बड़ी खोज है। इस वैज्ञानिक के आगे आइंस्टीन भी छूंछे साबित होते हैं।
एक खोज यह भी है कि बंसी की धुन सुनकर गाय ज्यादा दूध देने लगती है। शायद पड़ोसन गाय से उधार लेकर दे देती होगी। वैसे भी गाय मां होने के कारण दयालु होती है। गोगोवि के क्षेत्र में इस बीच इतनी अधिक खोजें हुई हैं कि मैं कंप्यूटर को कलम समझकर सबकुछ लिखने की कोशिश करूंगा तो उसकी हार्डड्राइव फट जाएगी या गौरव से फूला हुआ मेरा सीना या दोनों एक साथ। मैं इतना स्वार्थी हूँ कि दोनों की रक्षा करना चाहता हूं। अतः इति गोमूत्र- गोबर विज्ञान पुराणे रेवाखंडे करके आपसे अनुमति चाहता हूं।
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