विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: बीजेपी है बड़ी नेक पार्टी और संघ का तो खैर कहना ही क्या!

रामराज्य हमें लाना है, मगर आज राम जी तो उपलब्ध नहीं हैं, मोदी जी हैं, तो मोदी राज ही राम राज्य हुआ। उनका अच्छा भाषण ही रामराज्य है, वह भाषण नहीं मंत्र है। उसका जाप करो और खुश रहो।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह

वैसे बीजेपी बड़ी नेक पार्टी है और संघ का तो खैर कहना ही क्या ! उस जैसा दूसरा संगठन देश में ही क्या, विश्व में ही क्या, ब्रह्मांड तक में नहीं हुआ। सतयुग में कभी भारत में ऐसा रहा हो तो रहा हो। मगर तब लोगों को संगठन बनाना आता कहां था? भाजपा और संघ में एक से एक नेक लोग हैं।मोदी जी तो सिरमौर हैं, अमित शाह भी कम नहीं बल्कि इन दोनों में नेकी की प्रतियोगिता सी है। इनमें कौन आगे, कौन पीछे है, यह इतिहास ही तय करे तो करे, हम-आप जैसे नहीं कर सकते।

वैसे ये जो कहते हैं, वही करते हैं और जो नहीं कहते, वह नहीं करते। मोदी जी ने 2014 के चुनावी भाषणों में एकदम साफ कहा था कि देखो भाई-बहनों, हम आए तो अर्थव्यवस्था बर्बाद करके ही छोड़ेंगे, लोगों का जीना जब तक हराम न हो जाए, उनक जान नहीं छोडेंगे! वे खुद मर जाएं,आत्महत्या कर लें तो और भी बढ़िया।और हम यह भी बता दें कि हम अडानी-अंबानी टाइपों का ही भला करेंगे, बैंकों को खोखला ही करेंगे बल्कि इनकी सेवा में लुटा देंगे। इन्होंने साफ कहा था कि बुरा लगे या भला, हम नोटबंदी जरूर करेंगे और जीएसटी को ऐसे लागू करेंगे कि सबकी ऐसी-तैसी न हो जाए, तो कहना। सच हम बोलेंगे नहीं, हां मन की बात जरूर करेंगे, उसमें तुम फिर हमारा मन ढूंढते रहना। और ये मनरेगा-फनरेगा क्या होता है? सब सोनिया गांधी आदि की चोंचलेबाजी है। इसे बर्बाद जरूर करेंगे, ताकि गरीब की कमर हो तो वह टूट जाए। हां, अच्छे दिन लांएगे मगर किसके लाएंगे, यह रहस्य है। सबका साथ, सबका विकास भी करेंगे, मगर लोग जबर्दस्ती समझ लें कि उनके अच्छे दिन आएंगे, उनका विकास करेंगे, तो हम उनकी इस गलतफहमी का फायदा उठाएंगे। यह तो महाभारत में भी हुआ था। ‘नरो वा कुंजरोवा’, हमारी परंपरा है, पूर्णतः भारतीय है, स्वदेशी है।

जहां तक धर्मनिरपेक्षता का सवाल है, उसमें हमारा विश्वास अटल है। इतना अटल है कि जितना खुद धर्मनिरपेक्षता को अपने पर भी नहीं है। हम छद्म नहीं, असली धर्मनिरपेक्षता चाहते हैं। अब असली का अर्थ पुराने टाइप के असली लगा लें तो लोग जानें। लोकतंत्र के तो हम समझिए कि खुदाई खिदमतगार हैं। 1925 में संघ की स्थापना हमने इसीलिए तो की थी, जिसका शताब्दी वर्ष हम सात साल बाद धूमधाम से मनाएंगे। हिंदू राष्ट्र का असली अर्थ यही है, संविधान में जो लिखा है, वह नहीं है। हम अंबेडकर साहब का ऊपरी सम्मान कर लेते हैं, मजबूरी है, उतनी ही करते हैं, जितना गांधी जी का।

अब जहां तक बाबरी मस्जिद, नहीं-नहीं, ढांचे का सवाल है, जब वह गिर ही चुका है, हम गिरा ही चुके हैं तो मंदिर बन जाने दो। वैसा न बनने दो, उलझाकर रखो तो हमें ज्यादा फायदा है। रामराज्य हमें लाना है, मगर आज राम जी तो उपलब्ध नहीं हैं, मोदी जी हैं तो मोदी राज ही राम राज्य हुआ। और मोदी जी तो भाषण में रामराज्य लाने में कुशल हैं। उनका अच्छा भाषण ही रामराज्य है, अच्छे दिन हैं, सबका साथ ,सबका विकास है। वह भाषण नहीं मंत्र है। उसका जाप करो और खुश रहो। अब कई लोगों को खुश रहना ही नहीं आता तो मोदीजी क्या करें? मोदीजी तो नोटबंदी से कालाधन समाप्त नहीं होने पर किसी भी चौराहे पर फांसी पर लटकने को तैयार थे, किसी ने लटकाया नहीं तो उनका क्या दोष? मान लो भगत सिंह को अंग्रेज फांसी पर लटकाने से मना कर देते तो क्या भगत सिंह खुद लटक जाते? मोदी तो इतने नेक हैं और क्या करें देश के लिए? जान से ज्यादा कोई क्या दे सकता है?

इन्होंने आज तक किसी के खिलाफ कड़वा तो क्या मीठा शब्द तक नहीं कहा। वह मनमोहन सिंह जी की तरह वाचाल नहीं हैं। चाय जरूर इन्हें बेचनी पड़ी कभी, अभी देश बेच सकते हैं मगर फिलहाल उनका इरादा अपने को बेचने का है, देश तो कभी भी बिक सकता है। गांधी जी के आदर्शों को आजकल यही आगे बढ़ा रहे हैं। सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के कट्टर समर्थक एक यही बचे हैं, भले ही इनका इस्तेमाल खुद नहीं करते। उनके योगदान के कारण इन्हें कई बार नोबेल शांति पुरस्कार देने की बात चली, लेकिन इन्होंने ही कोई रुचि नहीं दिखाई। वैसे नाम आता रहा, षड़यंत्र चलते रहे, नाम निकलता रहा। इससे झोलेवाले फकीर को क्या फर्क पड़ता है। नोबेल वाले गांधी जी के साथ अन्याय कर सकते थे तो उनके साथ भी यह होना ही था। आखिर वह भी तो गुजराती हैं। मोदीजी अन्याय क्या, न्याय के आगे भी झुकना नहीं जानते, तो वह क्यों झुकते? झुकने की उन्हें आदत नहीं। खजूर भी भला कभी झुकता है?

वह गौ-भक्त हैं, परम योगी हैं, परमहंस हैं, परम संन्यासी हैं। न खुद खाते हैं, न खाने देते हैं, हां पीते हैं मगर हवा। खाने के नाम पर खुद भी उपवास रखते हैं, देश के लोगों से भी करवाते हैं। आजकल अडानी-अंबानी प्रजाति के लोग भी अगर खाते हैं तो सरकार का पैसा ही खाते हैं, खाना नहीं खाते। वे भी न्याय और सत्य के मार्ग पर हैं। और क्या कहें, क्या-क्या कहें। अब फुलस्टॉप लगाते हैं।

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