आजकल मोदी जी से अधिक देश में बुलडोजर जी की चर्चा है। दिलचस्प यह है कि मोदी जी को इससे ईर्ष्या नहीं है। यह उनके व्यक्तित्व की 'गहराई' को दिखाता है। मोदी जी तो 'यूरोप विजय' करके स्वदेश विजय के लिए पुनः आ चुके हैं। उधर बुलडोजर जी भी अपनी 'विजय यात्रा' पर निकल चुके हैं। उनके दौरे का कार्यक्रम भी सामने आ चुका है। दिल्ली में कहाँ-कहाँ, कब-कब वे पदार्पण करेंगे, इसका नौ दिवसीय कार्यक्रम दिल्ली के अखबारों आदि पर प्रकाशित हुआ था। यह दौरा मोदी जी की यूरोप यात्रा से किसी भी सूरत में कम महत्वपूर्ण नहीं होगा। मोदी जी कि तरह बुलडोजर जी ने भी तय किया है कि वह यात्रा के बाद कोई प्रेसवार्ता नहीं करेंगे। केवल वक्तव्य जारी करेंगे। वैसे योजनानुसार अभी तक उनका तीन दिन का कार्यक्रम संपन्न हो जाना था मगर सुरक्षा प्रबंधों के अभाव में वह कल से अपनी यात्रा चर्चित शाहीनबाग से आरंभ करेंगे। उनके लिए भी उतने ही सुरक्षा प्रबंध होंगे, जितने मोदी जी के लिए होते हैं। फर्क यह है कि मोदी जी पिछले आठ सालों में कभी शाहीनबाग नहीं आए मगर बुलडोजर जी आ रहे हैं। कुछ कहते हैं कि जहाँ जहाँ- मोदी जी को दिल्ली में नहीं जाना चाहते, वहाँ-वहाँ बुलडोजर जी भेजे जा रहे हैं, ताकि प्रधानमंत्री जी पर कुछ इलाकों को उपेक्षित छोड़ देने का आरोप न लगे। इतनी दयानतदारी वह दिखा रहे हैं। ऐसी उदारता आजकल ढूँढे भी नहीं मिलती! एक तरह से उनका कर्तव्य भी बनता है कि वह दिल्ली में रहने का कर्ज उतारने के लिए कम से कम इतना तो करें! सभी इलाकों के लोगों का किसी न किसी रूप में खयाल रखें। इसे नगर निगम चुनाव की तंगनजरी से देखना गलत होगा। मोदी जी तंगनजरी के सख्त खिलाफ हैं। गरीबों-अल्पसंख्यकों का तो वह विशेष खयाल रखते आए हैं कि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो। खुद बड़ी से बड़ी तकलीफ़ सह लेंगे मगर उनके किसी कदम से किसी चींटी को भी तकलीफ़ हो जाए तो उन्हें रातभर नींद नहीं आती। वैसे भी मोदी जी ने संविधान की शपथ ली है, इसलिए वे सबकुछ भूल सकते हैं मगर सबका साथ, सबका विकास वह भूल नहीं सकते। उनके अपने तरीकें हैं ऐसा करने के। अब जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मकान दिया गया है, उसका भी और विकास करना है तो कैसे करें? उस पर बुलडोजर चलवा कर करते हैं। जिसे सरकार या नगरपालिका - नगरनिगम ने दुकान चलाने का अधिकार दिया है, उसका भी इसी पद्धति से विकास करते हैं। विकास उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। कोई इससे वंचित रह जाए, यह उन्हें सहन नहीं। चाहे इसके लिए एल आई सी को घाटे में बेचना पड़ जाए!
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वैसे अभी केवल दक्षिण दिल्ली के दौरे का कार्यक्रम ही सामने आया है। जरूरी नहीं, पूरी दिल्ली का कार्यक्रम इसी प्रकार प्रकाशित हो। वह औचक दौरा करने के पक्ष में अधिक रहते हैं, जैसा कि आपने दिल्ली में भी पहले देखा है। दृष्टिकोण यह है कि ऐसा न हो कि कोई गरीब अपना सामान बुलडोजर जी की निगाह से बचा ले और विकास से वंचित रह जाए वरना औचक निरीक्षण का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। बिस्किट, टॉफी, पानमसाला, फल, सब्जी, ठंडे पानी कोकाकोला आदि की बोतलें लोग सुरक्षित घर ले जाएँ! रेहड़ी बचा लेंं। खोखा बचा लें। साइकिल बचा लें। प्लास्टिक की शीट, टेबल सब बचा लें तो सबका साथ, सबका विकास कैसे होगा?बुलडोजर जी उनमें हैं, जो कठिन परिश्रम और में विश्वास रखते हैं। कोई उनके काम को आसान बना दे, यह उन्हें पसंद नहीं। वह खतरों के खिलाड़ी हैं। यही वजह है कि अभी वह इतनी चर्चा में हैं। उन्हें कुछ बचने नहीं देना है। बचाओगे तो फिर से 300-500-700 की रोज की कमाई करना शुरू कर दोगे। रोटी रोज खाने लगोगे। बच्चों को स्कूल भेजने लगोगे। बच्चों के लिए बड़े सपने देखने लगोगे। ये गलती ,बुलडोजर जी करने नहीं देंगे। आखिर मोदी जी के कल्याणकारी राज्य के सच्चे प्रतिनिधि जो हैं!
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और अब बुलडोजर जी शुद्ध सांप्रदायिक भी नहीं रहे। वह सेकुलरिज्म की रक्षा के लिए भी सन्नध्द हैं। बुलडोजर रवि गुप्ता की पान की दुकान पर भी सफाया करने जाते हैं और अनुज कुमार की गुमटी पर भी। और बाकी किन किन की गुमटियों, घरों, धर्मस्थलों पर आमतौर पर चलता है, यह बताने की जरूरत नहीं। इससे सिद्ध है कि न बुलडोजर हिंदूवादी है, न वह जिनके प्रतिनिधि हैं। इसी कारण उनका प्रमोशन हुआ है। पहले उनका दायित्व उत्तर प्रदेश तक सीमित था।अब अखिल भारतीय है।
तो आइए बुलडोजर जी शाहीनबाग। आप और प्रसिद्ध हो जाइए! बस इतना खयाल रखिएगा कि आपका सीना 57 इंची न हो जाए!
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