बताइए आज भी इस पृथ्वी पर ऐसे देश हैं, जहां एक भारतीय गर्भवती महिला को एक बड़ा अस्पताल भर्ती न कर पाया और दूसरे अस्पताल जाते समय उसकी मौत हो गई तो देश की स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा! कमाल यह है कि त्यागपत्र तत्काल मंजूर भी हो गया! कमाल यह भी है कि मरनेवाली महिला न वहां की नागरिक थी, न वहां की रहवासी। वह मात्र पर्यटक थी! हमारे यहां इस तरह मर जाना रोज की बात है। रूटीन है। जीवन का शाश्वत नियम-सा है। इस तरह के कारणों से अनगिनत औरतें-बच्चे, बूढ़े-जवान रोज मरते रहते हैं। कभी अस्पताल में थोड़ा हंगामा मचता है। डाक्टर के साथ कभी मारपीट भी हो जाती है। डाक्टर एक-दो दिन विरोध में हड़ताल पर चले जाते हैं और अध्याय समाप्त हो जाता है! हद से हद डाक्टर का तबादला हो जाता है। जांच रिपोर्ट जब तक आती है या नहीं भी आती है, तब तक मामला बर्फ से भी ज्यादा ठंडा हो जाता है। ऐसे मामले में मंत्री के इस्तीफे की मांग करना हमारे यहां घनघोर पाप समझा जाता है। रौरव नरक में जाने का डर विपक्षी सांसदों तक को सताता है! और जी महज़ एक महिला की मौत पर इस्तीफा की मांग कोई सांसद करे तो शायद बाकी सांसद उसकी हंसी उड़ाएं। देसी पैमाने से देखें तो पुर्तगाल की मंत्री के साथ घनघोर अन्याय हुआ है! और अन्याय भी एक महिला मंत्री के साथ हुआ है! और यही वह मंत्री थी, जिसकी कोरोना के दौरान किए गए कामों की पूरे देश में तारीफ हुई थी!
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हमारे महान देश में ऐसा अमूमन होता नहीं और होना भी नहीं चाहिए वरना मोदी जी समेत सारी कैबिनेट 2014 में ही इस्तीफा दे चुकी होती! फिर नया प्रधानमंत्री और नया मंत्रिमंडल बनता।छह महीने में उसके भी एक-एक कर मंत्री हटाए जाते। नया प्रधानमंत्री उनकी जगह नये मंत्री बनाते, तब तक खुद उनके जाने की बारी आ जाती! 2014 से अब तक एक दर्जन से अधिक मंत्रिमंडल बन और मिट चुके होते! नये-नये प्रधानमंत्री आते ही चले जाते। एक का नाम हम याद करते, तब तक दूसरा प्रधानमंत्री आ जाता! इतिहास तो बन जाता मगर हमारा देश मज़ाक भी बन जाता!
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अगर पुर्तगाल जैसी यह घटना हमारा आदर्श हुई होती तो सन 2002 में ही मोदी जी राजनीति विदा प्राप्त कर चुके होते। उनकी झोला लेकर चल देने की दिली इच्छा समय से बहुत पहले पूरी हो जाती! और वह झोला लेकर जाते तो नानस्टाप हिमालय ही पहुंचते! एवरेस्ट शिखर को छूकर आनेवालों में वह नहीं हैं! वहीं वह समाधि जमाकर बैठ जाते! इन बीस सालों में उनके कम से कम चालीस झोले फट या गल चुके होते और इनमें से एक का खर्च भी किसी अंबानी, किसी अडाणी, किसी अमित शाह, किसी राजनाथ सिंह, किसी पीयूष गोयल ने नहीं उठाया होता! इस 'तपस्वी' को झोले का खर्च भी स्वयं उठाना पड़ता! ऊपर से मुश्किल यह कि एवरेस्ट तक झोले की सप्लाई होती नहीं। सारे कुरियरवाले, स्पीड पोस्ट मना कर देते मगर इस आपदा में भी खैर वह अवसर तो ढूंढ ही लेते। इसकी आदत है उन्हें। पहले आपदा बुलाओ और फिर अवसर पैदा करो। जैसे अचानक लाकडाउन लगाकर उन्होंने कोरोना की आपदा को और बड़ी आपदा बना दिया! लोगों को जीभर मरने दिया। किसी को रोका-टोका नहीं। हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं किया। जिसे इस दुनिया से जाना हो, खुशी-खुशी जाए! उनकी एक ही ज़िद थी कि आक्सीजन की कमी से किसी को मरने नहीं दूंगा। मर जाएगा तो भी मरने नहीं दूंगा ! उन्होंने देश को बदनाम न होने देने की कसम खाई थी! उसे पूरी निष्ठा से निभाया! कम्युनल कार्बन डाइऑक्साइड की आपूर्ति इतनी तेजी से बढ़ा दी कि आक्सीजन की कमी से मरना चाहने वाले भी आक्सीजन की कमी से मर नहीं पाए! ऐसा उच्च कोटि का प्रबंध था उनका। दुनिया दांतों तले ऊंगली दबाने लगी थी! तभी से उसकी ऊंगली दांतों तले दबी हुई है। लहूलुहान हो चुकी ऊंगली अब निकलती नहीं! लगता है, उसे वह जगह बहुत पसंद आ गई है!
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यही कारण है कि पिछले आठ वर्षों में हमने अपने प्यारे और प्राचीन देश में अपने ही कुछ आदर्श स्थापित किए हैं! इन पर चल कर हम फिर से जगद्गुरु बन चुके हैं। हमारे यहां गुजरात 2002 होता है तो उस राज्य के मुख्यमंत्री का कद छोटा नहीं, बहुत बड़ा हो जाता है। इतना बड़ा कि 2014 में हम उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रूप में पाते हैं! कुछ समय बाद प्रधानमंत्री पद भी उनके कद को आगे छोटा लगने लगता है मगर हम करें क्या, हमारे देश में इससे बड़ा पद दूसरा है नहीं। हम उन्हें अमेरिका का राष्ट्रपति बना पाने में असमर्थ हैं। वह बन जाते तो अमेरिका को भी भारत बना देते!
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खैर मोदी जी अगर 2002 में झोला लेकर चले गए होते तो ज़रा सोचकर देखिए, भारत का क्या हुआ होता? किसी को दुनिया में यह याद भी नहीं रहता कि भारत भी कोई देश है! वह तो मोदी जी हैं तो दुनियाभर में आज भारत की पहचान बनी हुई है। दुनिया टकटकी लगाकर भारत की ओर ही देख रही है वरना दुनिया के सामने संकट पैदा हो जाता कि वह किसकी ओर टकटकी बांधकर देखे! कोई तो चाहिए न इस काम के लिए! इस तरह मोदी जी ने न केवल भारत को बल्कि विश्व को भी गंभीर संकट से बचा लिया! हम तो ' धन्यवाद मोदी जी ' कहते ही रहते हैं मगर दुनिया के कोने-कोने में भी इसके पोस्टर लगने चाहिए थे मगर दुनिया स्वार्थी है। मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं, टाइप है!
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खैर पुर्तगाल जैसे देश अगर इसी तरह चलता रहा तो लिख कर रख लीजिए कि उस देश को न कभी मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिल पाएगा, न अमित शाह जैसा गृहमंत्री! उसे कभी ऐसी सक्षम सरकार हासिल नहीं हो सकेगी, जिसके लगभग आधे मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हों और जिसके दो बड़े मंत्रियों ने अपने को कानूनी रूप से निरपराध घोषित करवा चुके हों! सोच लो पुर्तगालवालो,बाजी अभी भी हाथ से निकली नहीं है!
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