हम तो सोचते थे कि जो भी देश का प्रधानमंत्री होगा, वह सबका प्रधानमंत्री होगा, एक-एक हिंदुस्तानी का प्रधानमंत्री होगा मगर हमारे ये प्रधानमंत्री संवैधानिक रूप से तो सबके प्रधानमंत्री हैं मगर सबके होकर भी ये सबके नहीं हैं। ये केवल हिंदुओं के प्रधानमंत्री हैं और इन्हीं के होकर रहना चाहते हैं। ये पिछले 10 साल से केवल हिंदू-हिंदू रट रहे हैं। आज भी ये यही कर रहे हैं।संविधान कहता है कि जो भी देश का प्रधानमंत्री होगा, वह सबका प्रधानमंत्री होगा मगर संविधान-संविधान की माला जपने वाले इन सज्जन की विशेषता यह है कि जिसकी माला जपते हैं, उसे ही किनारे कर देते हैं।
सुहेल, माला, शबाना, जावेद, आमीर, इरशाद, आरिश, रईस, सगीर, सलीम सभी चाहते हैं कि देश का प्रधानमंत्री इनका भी प्रधानमंत्री हो मगर प्रधानमंत्री जी को यह पसंद नहीं है। उन्हें डर है कि वे जिस दिन सबके हो गए, उसी दिन इनका पतन हो जाएगा। उस दिन से ये मुसलमानों के भी प्रधानमंत्री हो जाएंगे। ऐसा हुआ तो इनकी सारी राजनीति हमेशा के लिए बैठ जाएगी, ये ज्यादा समय पद पर नहीं रह पाएंगे, जबकि इन्हें अनंतकाल तक प्रधानमंत्री बने रहना है और यह केवल और केवल हिंदुओं का प्रधानमंत्री होने पर ही संभव है।
Published: undefined
भारत का इनका भूगोल बहुत विस्तृत है। इन्हें भारत नहीं, अखंड भारत चाहिए। पाकिस्तान, बांग्लादेश,अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत भी चाहिए (गनीमत है कि चीन नहीं चाहिए) मगर वहां के लोग, उनकी संस्कृति, उनकी भाषा, उनका इतिहास, उनका वर्तमान नहीं चाहिए। उनकी जमीन, पर्वत, हवा , जंगल, नदियां और समुद्र चाहिए मगर आदमी और औरतें और बच्चे नहीं चाहिए। उनका धर्म नहीं चाहिए। उनका खान-पान, उनके रीति-रिवाज, उनकी ज्ञान संपदा नहीं चाहिए।
लोग तो इन्हें अपने देश के भी सब नहीं चाहिए। हिंदू भी इन्हें एक खास काट के, खास नमूने में ढले चाहिए। ऐसे हिंदू चाहिए,जो नफरत करने- करवाने में माहिर हों। ऐसे न हों तो कम से कम मार खाकर चुप रहने वाले हिंदू हों। इन्हें सहमत हिंदू चाहिए, भक्त हिंदू चाहिए। इन्हें असहमत और अभक्त हिंदू नहीं चाहिए। जिसे देश के नागरिकों ने इन्हें सबका होने का अवसर दिया, उन्हें सबका होना नहीं चाहिए। उस आदमी को अपनी यह बदकिस्मती समझ में नहीं आती, जबकि दूसरे सबका होने के लिए जान तक देते आए हैं!
Published: undefined
भारत का एक ही प्रधानमंत्री हो सकता है और यहां के सब नागरिक चाहते हैं कि जो भी प्रधानमंत्री हो, वह सबका हो, वह हमारा प्रधानमंत्री भी हो। न उनका अधिक हो, न हमारा कम हो। कमलजीत चाहते हैं कि देश का प्रधानमंत्री उनका भी उतना ही प्रधानमंत्री हो मगर हमारे प्रधानमंत्री, उनके भी प्रधानमंत्री हैं, इसका भरोसा क्या उन्हें है? अपूर्व, अंकुर, दीपशिखा, दीपक, प्रमिला, प्रतिभा, प्रज्ञा, स्नेहलता, ज्योत्स्ना, नेहा सब चाहते हैं कि देश का प्रधानमंत्री, सबका प्रधानमंत्री हो। वह हिंदू -मुसलमान- सिख-ईसाई सबका हो। वह दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों का भी हो। वह औरतों, आदमियों, बच्चों, बूढ़ों, सबका हो। अरविंद, इंदिरा, विनोद, सुरेश, कमल, सीमा, राजेन्द्र भी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री सबका हो पर समस्या प्रधानमंत्री को है। दिक्कत उसे है, जिसने देश के लोगों को हाजिर- नाजिर जानकर शपथ ली है कि वह सबका है मगर शपथ की कौन परवाह करता है? शपथ लेना और गारंटी देना नेताओं का बिजनेस है और इस बिजनेस में बेईमानी ही ईमानदारी है!
हमारे प्रधानमंत्री केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक,आंध्र, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय के भी क्या उतने ही प्रधानमंत्री हैं, जितने वे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों के हैं? वह दिल्ली के तो प्रधानमंत्री ही नहीं, मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल, पुलिस निदेशक सब हैं। हर पद पर वही हैं मगर क्या मणिपुर के भी वह उतने ही प्रधानमंत्री हैं, जहां डेढ़ साल से चल रही हिंसा के बावजूद वह एक बार भी जाने की हिम्मत नहीं कर पाए हैं? वोट मांगने तक नहीं गए हैं, ऐसी कायरता? जान का ऐसा डर?
Published: undefined
क्या मणिपुर, अमेरिका और उन सब देशों से अधिक दूर है जहां प्रधानमंत्री न जाने कितनी बार जा चुके हैं, अभी भी गए हुए हैं और न जाने कितनी बार कितने बहानों से अभी और जाएंगे! क्या वह कश्मीर घाटी के भी उतने ही प्रधानमंत्री हैं, जितने कि वह जम्मू के हैं और क्या जम्मू के भी मुसलमानों के भी वह उतने ही प्रधानमंत्री हैं, जितने वह वहां के हिंदुओं के हैं? अब तो यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वह लद्दाख के प्रधानमंत्री भी हैं? अगर वह लद्दाख के भी प्रधानमंत्री हैं तो सोनम वांगचुक और उनके साथ लेह से आए डेढ़ सौ कार्यकर्ताओं को सीधे महात्मा गांधी की समाधि तक आने क्यों नहीं दिया? क्यों उन्हें राजघाट पर 2 अक्टूबर को श्रद्धांजलि देने का उतना ही हक नहीं है, जितना प्रधानमंत्री को है? और जब आने दिया तो क्यों उन्हें अपनी मांगों के समर्थन में शांतिपूर्ण धरना नहीं देने दिया? वांगचुक से प्रधानमंत्री या गृहमंत्री क्यों नहीं मिल सकते,उनके सामने अपनी मांग क्यों नहीं रख सकते?
छोटी से छोटी चीज पर टैक्स हर आदमी से वसूला जाता है। छोटी से छोटी बात पर किसी को बेवजह भी जेल में डाला जा सकता है। कहा जाता है कि कानून सब पर बराबर लागू होते हैं, फिर देश का प्रधानमंत्री, सबका प्रधानमंत्री और देश का गृहमंत्री सबका गृहमंत्री क्यों नहीं है? क्यों उत्तर प्रदेश,असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री सबका मुख्यमंत्री नहीं है? इस देश की मिट्टी और पानी सबमें है, तब कोई मुसलमान या कोई दलित अपने धर्म या जाति का पट्टा सीने पर लगाए यह क्यों जरूरी है?
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined