ये न हंसने देते हैं, न रोने देते हैं। इनकी एक बात पर हंसो तो दूसरी पर रोना आता है। ये मूर्ख भी हैं, शैतान भी। वैसे शैतान भी अंततः मूर्ख होता है। कौवे के बारे में माना जाता है कि वह बहुत चतुर होता है मगर वह वहीं बैठता है। खैर कौवे की तो मजबूरी है। उसकी, एक पक्षी की, मजबूरी का क्या मज़ाक उड़ाना मगर इनकी तो पसंद यही है, च्वाइस यही है। इन्हें सुगंध में दुर्गंध और दुर्गंध में सुगंध आती है। पिछले आठ साल से इनका इतिहास दुर्गंध फैलाने का है। दो साल का बच्चा भी इन्हें हंसता हुआ कहीं दिखाई दे तो इन्हें शक होता है कि ये हम पर हंस रहा है। इनका बस चलता है तो ये उसका मुंह कस कर बांध देते हैं और कहते हैं कि उल्लू के पट्ठे,अब तू हंस कर दिखा! और हंसेगा हम पर! उसे दो झापड़ भी रसीद कर देते हैं। इसकी शिकायत करने आप थाने गए तो पक्का है आप धर लिए जाओगे! रामराज्य है न!
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ये किसी अजीब प्रजाति के, किसी अनजान ग्रह से टपके हुए लोग हैं, तभी इनकी बुद्धि इतनी अधिक 'विकसित' है। इन्हें हर उस शहर, कस्बे, सड़क के नाम से बदबू आती है, जिसके साथ जरा भी इस्लामी नाम जुड़ा हो। मेरे-आपके लिए मुगलसराय एक रेलवे स्टेशन का नाम था।इलाहाबाद एक शहर का नाम था। जहन में आता नहीं था कि इसका हिन्दू-मुसलमान होने से कोई संबंध है और अगर है तो भी इसे बदलना जरूरी है मगर इनके दिमाग में तो यही कचरा घुसा हुआ है। ये तो अकबर इलाहाबादी को भी अकबर प्रयागराजी बनाने पर तुले थे मगर किसी तरह बेचारे बच गये। आज वह अगर प्रयागराजी बन जाते तो कल उनका अशोक या अमित हो जाना तय था! उनकी शायरी की मौत तय थी।
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इन्हें इरफ़ान पठान में भारत का एक नामी क्रिकेटर नहीं दीखता, शाहरुख खान और आमिर खान में एक्टर नहीं नजर आता। मुसलमान नजर आता है। और मुसलमान भी इसलिए कि उससे नफ़रत की जाए! इन्हें शाहरुख खान, लता मंगेशकर के लिए खुदा से दुआ मांगता नजर नहीं आता, थूकता हुआ नजर आता है। इरफ़ान पठान उदयपुर के कन्हैयालाल की दो आतंकवादियों द्वारा हत्या का विरोध करे तो यह भी इन्हें सुहाता नहीं। नफ़रत भले नुपूर शर्मा फैलाए मगर गिरफ्तार मोहम्मद ज़ुबैर होगा। ज़ुबैर इनके लिए झूठ का पर्दाफाश करनेवाला पत्रकार नहीं, मुसलमान है। नुपूर शर्मा के खिलाफ नौ आई आर होगी मगर पूरी दुनिया में भारत की बदनामी करनेवाली यह 'वीरांगना' गिरफ्तार नहीं होगी क्योंकि कानून में शायद इन्होंने कहीं लिख रखा होगा कि इनके 'फ्रिंज एलीमेंट' को गिरफ्तार करना नियम विरुद्ध होगा। गिरफ्तार होंगे इनकी हकीकत को सामने लाने वाले ज़ुबैर। बहाना कोई भी हो सकता है। बहाने का क्या है। ताकतवर के पास हजार कारण, हजार बहाने होते हैं। यह भी कि ये आदमी रोज एक बजे खाना खाता है,आज इसने दो बजे क्यों खाया? जरूर कोई षड़यंत्र है! इसलिए जिस चार साल पुराने ट्विट से एक मक्खी तक की तबियत नहीं बिगड़ी, ये भी आहत नहीं हुए थे,अब अचानक आहत होकर मर गये, मर गये कर रहे हैं!
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इन्हें बात-बेबात पर आहत होने की लत पड़ चुकी है। बिना आहत हुए इनकी तबियत बिगड़ जाती है और इन्हें आहत करने के लिए एक पूरी कौम है। इन्हें उससे किसी भी कीमत पर नफ़रत करना है, इसलिए जवाहरलाल नेहरू भी मुसलमान हो जाते हैं और गांधी जी मुस्लिमपरस्त, इसलिए उनकी हत्या नहीं 'वध' होता है। 'वध' ही कहते हो न आज तक आप लोग? हत्या कहना तो शुरू नहीं किया न! मेरी हिंदी कमजोर हो सकती है मगर 'वध' तो शायद दुष्टों का किया जाता है न! खैर जब गांधी-नेहरू मुसलमान होने से नहीं बच पाए तो तीस्ता सीतलवाड़ की क्या हस्ती? वे कैसे बच सकती थीं! और हम-आप जो इनके साथ नहीं हैं, सबके सब इनके लेखे मुसलमान हैं ! मुझमें बस इतनी कमी है कि अभी ट्विटर और व्हाट्स एप पर नहीं हूं। किसी दिन ईश्वर ने चाहा तो वहां भी पाया जाऊंगा।
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