विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: फट्टेबाज से विनम्र निवेदन, मत मारो इतने फट्टे भाई जी!

मत मारो इतने फट्टे भाई जी, जनता बता चुकी है कि अब वह इन चक्करों में नहीं आनेवाली। दस साल तक वह सब देख चुकी है, अपनी ग़लती की सजा भुगत चुकी है। अब वह और नहीं भुगतना चाहती। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो: सोशल मीडिया

अपने पीएम जी ने अभी भी दिल्ली की भाषा में फट्टे मारना (हांकना) नहीं छोड़ा है। दस साल तक फट्टे मारने का नतीजा अच्छी तरह भुगत चुके हैं पर अक्ल दुरुस्त नहीं हुई। फिर से फट्टे पर फट्टे मार रहे हैं। हारते-हारते मुश्किल से बचे हैं और भरोसा नहीं है कि इनकी सरकार कितने दिन, कितने महीने चलेगी पर फट्टागीरी योग जारी है। अबकी बार चार सौ पार वाला ढाई से आर भी नहीं हो पाया। वाराणसी की जिस जनता के असीम स्नेह के जो फट्टे पिछले दिनों मार रहा था, उस तक ने इनकी इज्जत का कचरा कर दिया मगर इनकी फट्टगी नहीं छूटी! अभी भी खुशफहमी में जी और जिला रहे हैं। कहते हैं, मैं यहीं का हो गया हूं। दो लाइन भोजपुरी की बोलकर भैया जी ठेठ बनारसी हो गए हैं। हांक रहे हैं, जनता ने मुझे इतना विश्वास, इतना प्रेम दिया है कि साठ साल बाद एक मैं ही हूं, जो तीसरी बार लगातार पीएम बना हूं! मां गंगा ने मुझे गोद लिया है, यह थ्योरी बुरी तरह पिट चुकी, गंगा बता चुकी कि इनके फट्टे में मत आना भाइयों-बहनों, मगर फिर भी पेले चले जा रहे हैं। 2047 के हसीन ख्वाब देखना-दिखाना अब भी नहीं छोड़ा है। जो-जो हथियार, जो-जो नुस्खे फेल हो चुके हैं, जिनका दम निकल चुका है, जो जमीन पर चित पड़े हैं, सब फिर से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। डेमोक्रेसी की ऐसी-तैसी करके उसका राग कश्मीर तक में जाकर अलाप रहे हैं। संविधान का कचूमर निकाल कर संविधान की पुस्तक को धर्मग्रंथ की तरह छूकर फोटू खिंचा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट कर, उसका राज्य का दर्जा छिनने जैसी हरकत करके वहां चुनाव कराने और राज्य का दर्जा लौटाने की बात ऐसे कर रहे हैं, जैसे कोई तोहफा दे रहे हैं! मजबूरी को महात्मा गांधी का नाम दे रहे हैं।

Published: undefined

मतलब जनता को बेवकूफ समझने का खेल चालू आहे। जनता की समझदारी पर भैया जी को अभी भी शक है। अभी भी ये मानकर चल रहे हैं कि जनता की आंख पर पट्टी बंधी हुई है, वह बहरी और गूंगी है। अक्ल से पैदल है। जनता ने दिखा दिया कि फट्टेबाज, तुम्हारा युग बीत गया। अब खसक लो मगर खुशफहमी में जीने और जिलानेवाले को कौन रोक सकता है! अनाज आयात करने की मजबूरी सामने खड़ी है, सरकारी स्टाक खाली होता जा रहा है मगर फट्टे मार रहे हैं कि मैं दुनिया की हर डाइनिंग टेबल पर भारत कोई न कोई अनाज देखना चाहता हूं। पिछले दस साल में जिस आदमी ने, नालंदा जैसी प्राचीन यूनिवर्सिटी तक को बर्बाद करने में कसर नहीं छोड़ी, वह कह रहा है कि मेरा मिशन है कि भारत दुनिया में उच्च शिक्षा और शोध का प्रमुख ज्ञान केंद्र के रूप में उभरे। जो हर दिन कहीं न कहीं कम से कम एक मिशन बेचने का धंधा करता हो, उस पर मूर्ख भी भरोसा नहीं करेगा।

Published: undefined

मत मारो इतने फट्टे भाई जी, जनता बता चुकी है  कि अब वह इन चक्करों में नहीं आनेवाली। दस साल तक वह सब देख चुकी है, अपनी ग़लती की सजा भुगत चुकी है। अब वह और नहीं भुगतना चाहती। उसे अक्ल आ चुकी है मगर मुंगेरीलाल जी, हसीन सपने दिखाए चले जा रहे हैं। इनकी सुई अटक गई है तो सुई पर लटककर दिखा रहे हैं कि देखो ,सुई तो चल रही है! छोटे बच्चा भी एक बार गलती से किसी गर्म चीज को छू लेता है तो हमेशा के लिए डर जाता है। दुबारा यह गलती नहीं करता। उसे बताओ कि ये ता-ता है तो वह भी आंखें फैलाकर कहता है-ता ता, गम्म। पर ये तो बच्चों को भी अक्ल में शर्मिंदा कर रहे हैं। राम मंदिर का चुनावी धंधा पिट गया। रामलला को ऊंगली पकड़कर मंदिर में लाने की फट्टेबाजी फिस्स हो गई। अयोध्या के लोगों ने भाजपा के उम्मीदवार को नकार दिया, अयोध्या की फ्लाइटें फेल हो चुकीं, जनता ने दस साल से चलाई जा रही मंदिरबाजी को बाहर का रास्ता दिखा दिया, जयश्री राम से, जय जगन्नाथ पर आना पड़ गया पर वही बच्चों से भी गई बीती हरकतें जारी हैं। हुजूर छोड़ो ये सब। इज्ज़त से घर बैठने का समय आ चुका, कानून भविष्य में मजे से आराम करने दे , तो करो। और फट्टेबाजी ही करना हो तो दो-चार भक्तों के बीच घर में बैठकर, लेटकर बीच- बीच में खर्राटे लेते हुए  करो। उन्हें तर माल खिलाओ, जो दिन-रात खुद खाते- चबाते रहते हो। उन्हें खिलाते जाओ, पिलाते जाओ और आनंदपूर्वक फट्टे पे फट्टे मारते जाओ। तर माल के चक्कर में चार से दस और दस से बीस भक्त हो जाएंगे। जो वही- वही तर माल खाकर तंग आ जाएंगे, फट्टेबाजी से बोर हो जाएंगे, वो चले जाएंगे, अपनी जगह किसी और को माल उड़ाने भेज देंगे। इससे आपकी फट्टेबाजी की कला भी सुरक्षित रहेगी, आगे संवर्धित भी होती रहेगी और देश का आगे और नुकसान भी नहीं होगा। इस तरह आपको देश की असली सेवा करने का पुनीत अवसर मिलेगा!एक पंथ, दस काज का यह आखिरी मौका जल्दी से लपक लो वरना कहीं ये भी हाथ से चला न जाए!

Published: undefined

और आखिरी तीन बातें। राज्य सरकारों के पैसों पर अखबार-टीवी पर अपना मुखड़ा दिखाने की यह बचकानी हरकत अब छोड़ दो महाराज। थक गए लोग आपका मुखड़ा-दुखड़ा देखते -देखते। इसका फायदा तो कुछ होगा नहीं, नुकसान कहीं और अधिक न हो जाए! कहीं इस बार असलीवाले आंसू न आ जाएं! और ये जो 18-18 घंटे जनता की  'सेवा' करने का जो मर्ज आपको है, वह भी अब छोड़ दो, उससे जनता का भला नहीं हो रहा और जिनका भला आप कर रहे हो, चिंता मत करो, उनका भला करने को दूसरे भी उतने ही तत्पर हैं! तीसरी बात। भाजपा और एनडीए के जो सांसद कथित रूप से उन्हें वोट न देनेवालों को धमका रहे हैं, उनसे कहो कि वे यह बंद करें। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना बुद्धिमानी नहीं है, हालांकि मैं यह किससे कह रहा हूं!

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined