सरकार इस बात से बहुत क्षुब्ध है कि मंदिर-अर्थव्यवस्था का जीडीपी में योगदान अभी मात्र 2.3 प्रतिशत है, जबकि सेवा क्षेत्र का 50 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र का 18 प्रतिशत है। यह स्थिति तब है,जब सरकार रोज मंदिर- विमर्श में व्यस्त रहती है। हर रोज मंदिर बनवाती है, एक से एक ऊंची मूर्तियां स्थापित करवाती है, मंदिर कॉरिडोर में वृद्धि करवाने में जी जान से लगी रहती है,भव्य पूजा-पाठ, भाषण, प्रसाद वितरण को उच्च प्राथमिकता देती है। अभी तक चार मंदिर कारिडोर बन चुके हैं और भक्तगण इनका लाभ उठा रहे हैं। आम चुनाव से पहले इस तरह के 21 और कॉरिडोर बनेंगे, तब उनके आनंद में चहुंमुखी वृद्धि होगी। मध्य प्रदेश इसमें लीड ले रहा है, उत्तर प्रदेश को पछाड़ने में लगा है, पार्टी हाइकमान इससे बहुत खुश है। संघ ने भी छोटे मंदिरों के विकास के लिए स्मार्ट टेंपल मिशन चला रखा है। उधर राम मंदिर को अब केवल चुनाव की दृष्टि से शुभमुहूर्त में उद्घाटन का इंतजार है। साधु -संत कहे जाने वाले जन तन-मन और विश्व हिंदू परिषद के धन से बहुविधि मंदिर-मोदी मिशन को अंजाम दे रहे हैं, फिर भी स्थिति दयनीय है। इसका योगदान अर्थव्यवस्था में मात्र 328 लाख करोड़ है, जबकि इसे कम से कम 3028 लाख करोड़ तक पहुंच जाना चाहिए था।
Published: undefined
जल्दी ही इस गंभीर स्थिति पर मंत्रिमंडल की दिनभर की बैठक में विचार होगा। यह इतना राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महत्व का आर्थिक और राजनीतिक महत्व का मुद्दा है कि इस पर बैठकें हफ्ते भर तक चल सकती हैं। हर मंत्री से जवाब-तलब होगा कि इस मुद्दे की उसके मंत्रालय से अनदेखी क्यों की जा रही है? राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सचिवों, सांसदों आदि की अलग से बैठक बुलाना भी प्रस्तावित है।
Published: undefined
सरकार के क्षोभ का प्रमुख कारण यह है कि वह राजनीति और अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिए मंदिरों को अर्थव्यवस्था का इंजन बनाना चाहती है। सरकार के चुनिंदा विशेषज्ञों का मत है कि मंदिरों को भारत की राजनीति के साथ अर्थव्यवस्था का भी केंद्र बनाकर भारत , विश्व के सामने विकास का एक नया माडल पेश कर सबको हतप्रभ कर सकता है। यह गुजरात मॉडल के आगे का माडल है। आज तक दुनिया में कहीं भी मंदिर या मस्जिद या चर्च को अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाने की कल्पना नहीं की गई है। भारत भी अगर वास्तविक विश्व गुरु न होता तो ऐसा महान और उत्कृष्ट माडल की कल्पना नहीं कर पाता! वैसे जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रधानमंत्री भी हुए हैं, जो बड़े बांधों को आधुनिक भारत का मंदिर बताते थे। यह उनकी ऐतिहासिक भूल थी! बांध, बांध होते हैं, मंदिर नहीं। इन विशेषज्ञों का कहना है कि एक नास्तिक को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने का खामियाजा आज तक देश भुगत रहा है। अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो वे ऐसी गलती नहीं होने देते। वे मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था की नींव रखकर भारत को दुनिया का समृद्धतम देश बना देते! अमेरिका को भारत पीछे धकेल होता! भारत के जगद्गुरुत्व पर दुनिया में किसी को संदेह नहीं रहता! भारत का नाम आज भारत या इंडिया न होकर जगद्गुरु होता! सरकार सरदार पटेल के इस सपने को आज सरकार पूरा करना चाहती है। पहली पंक्ति में देश को खड़ा देखना चाहती है!
Published: undefined
पिछले दो वर्षों में सरकार का ध्यान विशेष रूप से इस ऐतिहासिक गलती को सुधारने की तरफ गया है। उसने मंदिर कारीडोर बनवाकर मंदिरों की अर्थव्यवस्था को पुष्ट करने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया है। आज गरीब से गरीब तीर्थयात्री के दिल में भी मंदिर कारीडोर के दर्शन करने के लिए पैसों का बलिदान करने का जज्बा पैदा हुआ है। पिछली सरकारों ने सभी तरह के भक्तों को मुफ्त दर्शन की लत लगा दी थी। लोग धर्म को मुफ्त का माल समझने लगे थे। रुपए -चार रुपए खर्च करके भगवान के दर्शन का अनुचित लाभ ले रहे थे और गर्भगृह तक भी पहुंच जाते थे। अब जनता की मुफ्तखोरी की यह आदत बड़ी हद तक रुकी है। महंगी टिकट, आसान प्रभु-दर्शन! अब सरकार को विश्वास हो रहा है कि उसे एक और मौका मिला तो वह मंदिर अर्थव्यवस्था को मजबूत कर 2029 तक भारत को विश्व की नंबर वन इकानॉमी बना देगी!
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined