इस देश के सबसे लोकतंत्र-विरोधी समय में आज नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा है। इसी तरह चुनाव से पहले सेंट्रल विस्टा का भव्य और दिव्य उद्घाटन होगा। राममंदिर का उससे भी और भव्य -दिव्य होगा! इसी तरह अगले साल मार्च-अप्रैल तक उद्घाटन, भूमि-पूजन, शिलान्यास आदि सरकारी-भाजपाई उत्सवों का आयोजन होता रहेगा। सब कुछ 2024 के चुनाव से पहले होगा और सब कुछ का सबकुछ कैमराजीवी करेंगे। वह आज साढ़े चार घंटे तक कैमरे के सामने रहेंगे। हमारा जो संबंध आक्सीजन से है, उनका वही रिश्ता कैमरे से है!
भले ही संविधान के अनुसार राष्ट्रपति संसद के सर्वप्रमुख होते हैं मगर इससे क्या, उद्घाटन तो कैमराजीवी ही करेंगे। उन्हें आप आदिवासी और महिला राष्ट्रपति की उपेक्षा और अपमान के तर्क से डरा नहीं सकते। वह स्वयं ब्राह्मण से लेकर आदिवासी, उत्तर से लेकर दक्षिण, पूर्व से लेकर पश्चिम तक सब हैं। वह व्यक्ति नहीं, अपने आप में भारत देश हैं। वही संविधान हैं, वही कानून। वही संसद हैं, वही अदालत। जो हैं वही हैं, बाकी सब उनके होने या न होने से है।
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2024 के चुनाव तक कैमरा- केंद्रित होने से कोई उन्हें रोक नहीं सकता। नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करनेवाले बीस दलों के नेता भी यह जानते थे। जो आदमी हर नई 'वंदे भारत' ट्रेन का उद्घाटन करने कहीं भी पहुंच जाता है, जिसे अपनी सूरत, अपने भाषण में ही जगत दिखाई देता है, वह नए संसद भवन के उद्घाटन का मौका चूकता?
और माननीय जी, आज इस अवसर पर भारतीय संसदीय लोकतंत्र की आरती उतारना नहीं भूलेंगे, जिसे अधमरा करने के सभी संभव प्रयास उन्होंने किए हैं और आगे और तीव्र गति से करेंगे। हो सकता है नए भवन की सीढ़ियां चढ़ते समय उसके आगे झुक कर नमन करें, जैसा कि उन्होंने पुराने संसद भवन की सीढ़ियां चढ़ते समय भी किया था। और जिसके आगे वे नमन करें, समझ लो, उसका बेड़ा गर्क होना तय है! और इस अवसर को अगर वह राजनीतिक अवसर में न बदलें तो समझिए कि उन्होंने अपने ‘संस्कारों' के विरुद्ध काम किया है। और उन जैसा 'संस्कारी' व्यक्ति ऐसा कर नहीं सकता! राजदंड की स्थापना और उसके नाम पर झूठा इतिहास रचना उसी संस्कार का अनिवार्य अंग है।
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विपक्ष पहले कह रहा था कि 27 मई को नेहरू जी की पुण्यतिथि पर यह उद्घाटन करना चाहिए था मगर उनके 'संस्कार' उन्हें धिक्कारते! अगले दिन सावरकर जी के जन्मदिन पर उनकी जय जयकार के बहाने वह अपनी जय-जयकार करेंगे! गनीमत है कि उद्घाटन गोडसे के जन्मदिन या उसकी फांसी के दिन नहीं हो रहा है! 2024 के बाद जनता उन्हें अवसर दिया तो यह भी होकर रहेगा!
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और अब ये याद करके क्या होगा कि जब कोरोना से हजारों लोग तड़ातड़ मर रहे थे, तब इन माननीय की प्राथमिकता हजारों करोड़ फूंककर संसद भवन, सेंट्रल विस्टा, नया प्रधानमंत्री निवास और उपराष्ट्रपति निवास बनाना था! जब हमसे कहा गया था कि हम घरों से बाहर नहीं निकलना है, तब मजदूरों से मजदूरी करवाई जा रही थी। 2024 के चुनाव का भूत जो उन पर सवार था। वैसे भी मजदूरों में क्या जान भी होती है? क्या वे मनुष्य होते हैं?
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और जब संसद में एक के बाद एक विधेयक बिना बहस के पास हो रहे हों, संसदीय समितियां जब निष्प्रभावी हैं, जब जम्मू- कश्मीर की जनता को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित है, जब दिल्ली की निर्वाचित सरकार को प्रशासन चलाने के फैसले के सुप्रीम कोर्ट को एक अध्यादेश से उलट दिया गया है, जब पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में बीजेपी सांसद निगरानी के डर से बैठने से डरने लगे थे और जब इस व्यवस्था को नए संसद भवन में खत्म कर दिया गया है, जब मणिपुर जल रहा है और माननीय तथा उनके गृहमंत्री को वहां जाने की फुर्सत नहीं है, जब एक मामूली बात पर राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त करवाई जा सकती है, जब देश का नाम रोशन करनेवाली महिला पहलवानों की सेक्स अपराध में आरोपित कुश्ती संघ के मुखिया के विरुद्ध शिकायत की सुनवाई के लिए कोई तैयार नहीं है,जब महिला संगठनों पर ईडी का दबाव बनाकर उन्हें जमीनी काम करने से रोका जा रहा है, जब जरूरी सवालों के जवाब न संसद में दिए जाते हैं, न बाहर, जब चीन हमारी एक हजार वर्ग किलोमीटर जमीन कब्जाए बैठा है, तब भी क्या आप नए संसद भवन के उद्घाटन का शो नहीं देखेंगे? जरूर देखिए और इतनी जोर से ताली बजाइए की सारी दुनिया गूंज जाए। हमारे पास और काम क्या है, बाकी सबकुछ जब माननीय कर रहे हैं!
बताया जा रहा है कि यह भवन 150 साल तक की जरूरतें पूरी करेगा। हमारी तरफ से पांच हजार साल की आवश्यकताएं पूरी करे मगर डेढ़ सौ साल तक भी आज जो जीवित हैं, वे इस बात की पुष्टि के लिए जीवित नहीं रहेंगे! हां मोदी जी की बात ही अलग है!
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