आदमी भी आखिर क्या करे! रामलला हैं तो क्या हुआ? हैं तो लला ही, बाल रूप ही! लला तो जिद्दी होते ही हैं। तुम्हारे हो या हमारे या हमारे पड़ोसी के। ये भी अब जिद कर बैठे हैं। बालक कब किस बात पर जिद कर बैठे, कुछ पता है? रामलला भी एक नहीं सुन रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर बन कर लगभग-लगभग तैयार सा है। 2024 में बचे ही कितने महीने अब! मोदी जी भी राममंदिर का उद्घाटन करने के लिए नहा धोकर तैयार बैठे हैं। वो ड्रेस-उस, अभी से सिलवा लिए हैं। फिटिंग चैक करवा ली है। दो बार फैशन डिजाइनर से चेंज-ऊंज भी करवा लिए हैं। अब सब फिट है मने। पहन के आईने के सामने खड़े होकर तीन बार देख भी लिये हैं। अवसरानुकूल लग रहे हैं। जंच रहे हैं। पक्के भक्तशिरोमणि। बस आम चुनाव के शुभ अवसर का इंतजार है। वस्त्र धारण करना है और पूजन करने बैठ जाना है और फिर ले, दनादन चुनाव प्रचार शुरू ! मंदिर-मंदिर-मंदिर-मंदिर, मंदिर.... ! अमित शाह ने तो गुजराती मतदाताओं से कह दिया है कि भैया, अभी से अयोध्या का टिकट बुक करा लो!
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उधर रामलला जी अब कह रहे हैं कि हमारी जन्मभूमि में, हमारे जन्मदिन पर, हमारे मस्तक पर, असली सूरज चमकना-दमकना चाहिए। जिद और फिर रामलला की! और कोई होता तो प्रधानमंत्री उसे अच्छी तरह से देख लेते। जिद का जो भी अति उत्तम इलाज संभव-असंभव है, कानूनी-गैरकानूनी है, सब कर-करवा देते। बता देते कि बबुआ, हमारे आगे किसी की जिद नहीं चलती मगर रामलला के सामने तो वे भी लाचार हैं। ऐन वक्त पर आशीर्वाद देने की बजाय वे कुछ उल्टा- सीधा कर दें तो कौन ज़िम्मेदार होगा? आठ बरस की उनकी और 22 बरस की आडवाणी जी की तपस्या पानी में चली गई तो! राहुल गांधी अलग से पीछे पड़े हैं। काम बिगाड़ने पर तुले हैं। भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। साहेब का मन इससे बहुत उद्विग्न है। क्या पता ये 2024 का खेल बिगाड़ दे!
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ऐसी विकट स्थिति में साहेब ने तीन- तीन उच्च वैज्ञानिक संस्थानों से कहा है कि रामलला की यह जिद फौरन पूरी करो! इस वजह से मंदिर बनने में विलंब नहीं होना चाहिए। डेड लाइन से पहले सब हो जाना चाहिए वरना राम मंदिर के बनने से मुझे क्या फायदा!
अब कुछ वैज्ञानिक आपत्ति कर रहे हैं कि ये सब क्या हो रहा है! सरकारी साधनों का यह सीधा दुरूपयोग है। ये संस्थान वैज्ञानिक शोध के लिए बनाए गए हैं, करतबबाजी दिखाने के लिए नहीं। जो काम सूई से हो सकता है, उसकी जगह तलवार घुसेड़ी जा रही है। कुछ मंदिरों और बौद्ध मठों में हाथ से शीशे की दिशा बदल कर यह काम पहले से आसानी से किया जा रहा है। यही यहां भी हो सकता है! इसके लिए तमाम शीशे, लैंस और माइक्रो कंट्रोलर की जटिल पद्धति अपनाने की क्या जरूरत? पर साहेब का काम, साहेब का काम है! सीधा-सादा तो वह हो ही नहीं सकता। शोशेबाजी न हो तो साहेबी किस काम की?
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तो रामलला जी का काम इसी जटिल पद्धति से होगा। कल कृष्ण जन्मभूमि का सवाल भी जोरशोर से उठना है तो किसन जी भी कहेंगे कि मैं कुछ नहीं जानता, जन्माष्टमी पर मेरे मस्तक पर चंद्रमा चमकना चाहिए। राम लला की सुनोगे, मेरी नहीं? बंसी वाला हूं इसलिए? और फिर काशी के विश्वनाथ जी, बोल उठेंगे, मैं तो वैसे ही चंद्रमाधारी हूं। मेरे ऊपर भी पूरे साल, 365 दिन चंद्रमा चमकना चाहिए। चाहे अमावस्या हो या पूर्णिमा। मुझे चांद चाहिए वरना जानते हो, मैं क्रुद्ध होने पर तांडव कर सकता हूं। यू साहेबी-वाहेबी सब हवा हो जाएगी। इधर देखो,यूं। इस तरह।समझे?
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इसलिए समय आ गया है कि देश के सभी वैज्ञानिक शोध संस्थानों के वैज्ञानिक शोध- वोध करना छोड़ें। ये काम तो अमेरिका, चीन, जापान, यूरोप के देश हमसे बेहतर कर ही लेते हैं। हम क्यों अपनी एनर्जी खपाएं! बांग्लादेश भी आगे बढ़ना चाहे, हमसे तो बढ़ जाए। वांदा नहीं। तुम तो अब हिन्दू धर्म की सेवा में लगो। और हिंदू धर्म की भी क्या, हिंदुत्व की चाकरी में जुटो। जिन वैज्ञानिकों को शोध करने का ज्यादा ही शौक है, वे विदेश चले जाएं। नोबल पुरस्कार वगैरह जब ले लेंगे, तब हम भी तुम्हें बधाई दे देंगे। हमारा इंडिया-इंडिया कर लेंगे।
इति जयश्री राम।
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