विचार

भारत समेत दुनिया के कई देशों में पानी को लेकर हिंसा में इजाफा, आने वाले दिन गंभीर, शुरू हो सकती है मारकाट

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के अनुसार दुनिया में भारत समेत 17 देश ऐसे हैं, जहां पानी की भयंकर कमी है। सिर्फ प्रकाशित खबरों के अनुसार भारत में पिछले दशक के दौरान 31 लोग पानी से संबंधित हिंसा में मारे गए हैं, जबकि इसके पहले दशक में केवल 11 ऐसी मौतें हुई थीं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

लगभग दो दशक पहले से यह आशंका जताई जा रही है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के कारण होगा। विश्वयुद्ध तो अब तक नहीं हुआ पर एक नयी रिपोर्ट के अनुसार पानी के कारण हिंसा पिछले दशक (2010 से 2019) में इसके पीछे के दशक की तुलना में दोगुने से अधिक हो चुकी है। इस रिपोर्ट को अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित पैसिफिक इंस्टिट्यूट ने प्रकाशित किया है, जो दुनिया भर में पानी से संबंधित प्रकाशित विवादों का लेखा-जोखा रखता है। इस रिपोर्ट में भारत में साल दर साल बढ़ते पानी से संबंधित विवादों और हिंसा का विशेष तौर पर जिक्र है।

मीटे पानी की घटती उपलब्धता, बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या, जल संसाधनों का अवैज्ञानिक उपयोग और बदलते जलवायु और तापमान वृद्धि के कारण जल संसाधनों पर प्रभाव के कारण पानी पर असर पड़ रहा है। पैसिफिक इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष पीटर ग्लिक के अनुसार, पानी सबके लिए जरूरी है और धीरे-धीरे इसकी उपलब्धता कम होती जा रही है, इसलिए लोग अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

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पैसिफिक इंस्टिट्यूट 1980 के दशक से पानी से संबंधित हिंसा के प्रकाशित आंकड़ों को एकत्रित कर रहा है। इस दशक के आंकड़ों के बारे में यह भी कहा गया कि आज के दौर में सोशल मीडिया के प्रभाव से ऐसे मामले अधिक संख्या में प्रकाशित किये जा रहे हैं, इसलिए इस दशक में पानी से संबंधित हिंसा के आंकड़े अधिक हैं। इसके जवाब में पीटर ग्लिक कहते हैं कि साल 1990 से 1999 के दशक की तुलना में साल 2000 से 2009 के दशक में ऐसी हिंसा के मामले कम प्रकाशित किये गए और वह दौर सोशल मीडिया का नहीं था।

पीटर ग्लिक के अनुसार मध्य पूर्व देशों में जहां पानी की भयानक कमी है, और सीरिया, लीबिया, यमन और इराक जैसे देश गृह युद्ध की आग में लंबे समय से झुलस रहे हैं- इन देशों में पानी को हथियार जैसा इस्तेमाल किया जा रहा है। सीरिया में पानी की पाइपलाइन पर अनेक बार विस्फोट किये जा चुके हैं। उक्रेन में भी जून 2019 में होर्लिका नामक शहर में पानी की पाइपलाइन पर गोले दागे गए थे, जिससे लगभग 30 लाख लोग प्रभावित हुए थे।

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भारत में जून 2017 में पानी की कमी के लिए आन्दोलन करते 5 किसान पुलिस की गोली से मारे गए थे। इस साल भी गर्मियों में जब पूरा देश पानी की समस्या से जूझ रहा था, तब पानी के लिए आपसी मारपीट और हत्या की खबरें आई थीं। इस वर्ष कुछ राज्यों में पानी के टैंकर सुरक्षाकर्मियों के घेरे में भेजे गए थे, जिससे उन्हें कोई लूट ना ले। इंडोनेशिया के वेस्ट पापुआ नामक शहर में वाटर टैंकरों के दल पर स्वचालित हथियारों से आक्रमण किया गया था। सीरिया में जल संसाधनों में विष मिलाने की वारदातें होती रही हैं।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के अनुसार दुनिया में भारत समेत 17 देश ऐसे हैं, जहां पानी की भयानक कमी है। इनमें से 12 देश मध्य-पूर्व में स्थित हैं। भारत में पिछले दशक के दौरान प्रकाशित खबरों के अनुसार 31 लोग पानी से संबंधित हिंसा में मारे गए, जबकि इसके पहले के दशक में केवल 11 ऐसी मौतें हुई थीं।

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इन आंकड़ों के बीच भारत समेत विश्व के 92 देशों के 1100 से अधिक वैज्ञानिकों ने भू-जल की समस्याओं से दुनिया को आगाह किया है। काल ऑफ एक्शन के नाम से संयुक्त राष्ट्र में भेजे गए इस पत्र के अनुसार पूरी दुनिया में भूजल खतरे में है और इसका विवेकहीन इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे नई समस्याएं उठ खडी होंगी, क्योंकि दुनिया की लगभग दो अरब आबादी इस पर पूरी तरह से निर्भर है और दुनिया भर में कृषि में जितने पानी का उपयोग किया जाता है, उसमें से 70 प्रतिशत से अधिक का आधार भूजल ही है। अमेरिका में भूजल जितना नीचे पहुंच गया है, उतना नीचे कभी नहीं रहा। इस दल के एक सदस्य आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिक अभिजित बनर्जी के अनुसार भारत में भी यही हाल है।

वर्तमान में विश्व में उपलब्ध मृदु जल के भंडार में से 99 प्रतिशत भूजल के तौर पर उपलब्ध है। लगभग 15 प्रतिशत नदियां और झीलें पूरी तरह से भूजल पर आधारित हैं और अनुमान है कि साल 2050 तक अधिकतर नदियां भूजल पर आश्रित होंगी, क्योंकि दुनियाभर के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में यदि भूजल भी उपलब्ध नहीं होगा या फिर प्रदूषित होगा तब मानवता के सामने एक बड़ी समस्या होगी।

जाहिर है, पानी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है और इसके चलते हिंसा हो रही है। पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है, ऐसे में क्या पानी की इस चुनौती को दुनिया गंभीरता से लेगी या फिर जलवायु परिवर्तन की तरह इस पर केवल चर्चा ही होती रहेगी?

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