विचार

आकार पटेल का लेख: समान नागरिक संहिता का गुब्बारा मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल, BJP ने मसौदा तक तैयार नहीं किया

हमेशा की तरह बीजेपी मीडिया का इस्तेमाल और उसे सांप्रदायिक हथियार बनाकर राजनीति और समाज का ध्रुवीकरण करेगी। ऐसे में देश को तय करना है कि क्या समान नागरिक संहिता जैसे बीजेपी के मुद्दों की तरह ही उसके असली मुद्दे हैं जिन पर सियासत और मतदान होना चाहिए?

समान नागरिक संहिता का गुब्बारा मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल
समान नागरिक संहिता का गुब्बारा मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल फोटोः सोशल मीडिया

पिछले आम चुनाव यानी 2019 के लोकसभा में अपनी शानदार जीत से उत्साहित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैचारिक सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की। इनमें अनुच्छेद 370 को खत्म करना, नागरिकता संशोधन विधेयक और मुलसमानों में तलाक का अपराधीकरण करना शामिल है। ये सबकुछ केंद्र ने किया तो बीजेपी शासित राज्य भी कहां पीछे रहते और उन्होंने उत्साहित होकर, अंतर-धार्मिक विवाह और गोमांस और हिजाब और ऐसी ही तमाम चीजों का अपराधीकरण करने वाले कानून तैयार कर दिए।

लगभग यही समय था जब अयोध्या का फैसला आया। दिसंबर 2019 इस दौर का एक संस्मरणीय महीना बन गया जब देशव्यापी एनआरसी और सीएए को लागू करने का कोई विरोध नहीं दिख रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री के लिए दुर्भाग्य से जीत के प्रवाह की उलटी गंगा जल्द ही बहने लगी। भारत भर में विरोध प्रदर्शनों के बाद एनआरसी-सीएए नीति पर विराम लगा दिया गया। हालांकि सीएए-एनआरसी बीजेपी के घोषणापत्र में था, लेकिन साढ़े तीन साल बाद भी इसे लागू नहीं किया जा सका। संभवतः इसी वजह से जनगणना का भी बलिदान दे दिया गया।

Published: undefined

लद्दाख में भी मजबूत नेता की छवि पर दाग लगने लगा क्योंकि यहां वीरता (जैसा कि नेहरू ने किया था) के स्थान पर विवेक को प्रमुखता दी गई। कश्मीर आज भी अव्यवस्थित है और कश्मीर ही अविभाजित भारत का एकमात्र हिस्सा है जो लोकतांत्रिक शासन के अधीन नहीं है। मणिपुर में जो कुछ हो रहा है उसने तो इस बात को खोलकर रख दिया है कि अच्छे शासन (अगर ऐसा है) का दावा कितना खोखला है।

कोविड ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, लेकिन कुछ ही देश थे जिन पर इसकी दूसरी लहर कहर बनकर टूटी और भारत के भरे हुए श्मशान एक वैश्विक खबर बन गए। महामारी के ही दौरान बिना बहस के अध्यादेश पारित कर कृषि कानून लागू कर दिए गए, लेकिन किसानों के विरोध ने सरकार को अपने कानूनों को उलटने और माफी मांगने को मजबूर कर दिया।

इस दौर के बाद कोई नया मास्टर स्ट्रोक अभी तक नहीं चला गया है। और इसका बहुत बड़ा कारण भी है, क्योंकि जब बिना सोचे-समझे किए गए फैसलों के नतीजे नाकामियों के रूप में सामने आएं और पूरी व्यवस्था में गतिरोध पैदा हो जाए तो थोड़ा रुककर सोचना जरूरी होता है कि आखिर कहां गलती हो गई।

Published: undefined

लेकिन, अब फिर से 2024 के चुनावों के मुख्य मुद्दों के तौर पर समान नागरिक संहिता के मुद्दे को उछाला जा रहा है। कश्मीर और एनआरसी की तरह ही समान नागरिक संहिता भी बीजेपी के घोषणापत्र में है, जिसमें कहा गया है कि "बीजेपी का मानना है कि लैंगिक समानता तब तक नहीं हो सकती जब तक भारत एक समान नागरिक संहिता नहीं अपनाता, जो सभी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, और बीजेपी इस कानून का मसौदा तैयार करने के अपने रुख को दोहराती है जो सर्वोत्तम परंपराओं पर आधारित होगा और आधुनिक समय के साथ उनका सामंजस्य होगा।“

इस सामंजस्य में एक जटिलता की आवश्यकता होती है और यही एक कारण है कि यह अब तक नहीं हो पाया है। बीजेपी ने हाल ही में कर्नाटक में अपने घोषणापत्र में यह वादा शामिल किया था, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। अगर समान नागरकि संहिता (यूनीफार्म सिविल कोड) लागू होता है तो केवल एक समुदाय ही नहीं बल्कि सभी समुदायों को विरासत, गोद लेने, विवाह और तलाक पर अपने निजी कानूनों में बदलाव देखने को मिलेगा।

Published: undefined

एनडीए के पास इस समय लोकसभा में 350 और राज्यसभा में 100 सीटें हैं। अगर इसने समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार कर लिया है तो इसे संसद में पेश करना चाहिए। सिर्फ कोरी बातें करना वक्त की बर्बादी भर है क्योंकि अगर कोई पहले से सत्ता में है तो इन बातों से कोई खास बदलाव नहीं आने वाला।

लेकिन, इससे भी बड़ा मुद्दा है। मोदी के दूसरे कार्यकाल में अब तक प्रति वर्ष औसत जीडीपी वृद्धि दर 4 प्रतिशत से कम रही है। इसके लिए केवल कोविड ही कुछ हद तक दोषी ठहराया जा सकता है। महामारी से पहले भी अर्थव्यवस्था उन्हीं कारणों से धीमी हो रही थी, जिन कारणों से अब इसकी रफ्तार में कमी आई है। इसके मुख्य कारणों में अपर्याप्त निजी निवेश, निजी खपत में बढ़ोत्तरी न होना और माल निर्यात स्थिर रहना शामिल हैं।

Published: undefined

पहली बात तो यह कि मध्यम अवधि के आर्थिक भविष्य के बारे में कॉर्पोरेट भारत में आत्मविश्वास की कमी है, दूसरी बात यह कि धीमी वृद्धि के कारण लोगों ने जो कमाया है और इसलिए उसे खर्च कर सकते हैं, लेकिन खर्च नहीं कर रहे हैं और अंतिम बात यह है कि हमारा निर्यात वैश्विक व्यापार के साथ बढ़ता और घटता है जो वर्तमान में गिरावट के दौर में है। बेरोजगारी दर 7 फीसदी से ऊपर है और श्रम बल की भागीदारी 40 फीसदी पर है जो उस स्तर से भी काफी नीचे है जो 30 साल पहले थी।

इन समस्याओं का हल समान नागरिक संहिता से नहीं निकल सकता। बिल्कुल उसी तरह जैसे कि इनका समाधान न तो मंदिर से, न किसी प्रतिमा से, न कश्मीर का दर्जा बदलने से या फिर अल्पसंख्यकों को कानून के द्वारा प्रताड़ित करने से निकलेगा। समस्याएं तो जस की तस बनी रहेंगी। साफ है कि समान नागरिक संहिता का गुब्बारा हवा में इसलिए छोड़ा गया है ताकि राजनीति और मीडिया का फोकस अर्थव्यवस्था, लद्दाख, मणिपुर और कश्मीर से भटका रहे। या फिर कम से कम कोशिश तो की ही जा रही है क्योंकि हमें पता है कि इस किस्म के प्रयास पूर्व में सफल हुए हैं।

Published: undefined

एक पीढ़ी यह सोचते हुए बड़ी हुई कि भारतीय लोकतंत्र का मुख्य मुद्दा आखिरकार एक शहर में संपत्ति का विवाद होना चाहिए। राष्ट्रीय बल और ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अयोध्या पर खर्च किया गया और अंतत: राष्ट्र इससे थककर उबरा। ये सब उसी दौरान हुआ जिसे उदारीकरण का दौर कहा जाता है। और, इसी अवधि में जातिगत आरक्षण का विस्तार भी देखा गया। लेकिन इन्हें सामान्य प्रक्रिया मानकर स्वीकार कर लिया गया। लेकिन सांप्रदायिकता की भट्टी जलती रही।

इस मुद्दे पर बीजेपी को राजनीतिक और नागरिक समाज की तरफ से जवाब देने के कई तरीके होंगे, क्योंकि बहुत से मामले अदालतों में लंबित हैं (जिन्हें अनदेखा करना मुश्किल होगा) और ये सभी वैध हैं। लेकिन दो ऐसे मामले भी हैं जिन पर विचार करना जरूरी है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके मन में समान नागरिक संहिता के बारे में कोई मजबूत भावना नहीं है।

Published: undefined

और उन्हें बीजेपी से कहना होगा- ठीक है जाओ, समान नागरिक संहिता लागू कर दो अगर तुम्हारे पास पर्याप्त वोट हैं। मसौदा दिखाओ और आगे बढ़ो। आगे क्या होगा संसद को तय करने दो। कुछ लोग यह भी कह सकतै हैं- ठीक है, यह तुम्हारे घोषणापत्र में है न, तो फिर आर्थिक विकास और नौकरियां भी हैं, लद्दाख की संप्रभुता भी है, मणिपुर की सुरक्षा भी है। तो फिर इसे लागू करने से तुम्हारी इन मोर्चों पर नाकामियां कैसे छिपेंगी?

संभावना तो यही है कि बीजेपी ऐसा कुछ नहीं करने वाली। यह सिर्फ बातें ही करेगी, मीडिया का इस्तेमाल और उसे सांप्रदायिक हथियार बनाकर राजनीति और समाज का ध्रुवीकरण करेगी, क्योंकि अतीत में भी तो वह ऐसा ही करती रही है। ऐसे में देश को तय करना है कि क्या समान नागरिक संहिता जैसे बीजेपी के मुद्दों की तरह ही उसके असली मुद्दे हैं जिन पर सियासत और मतदान होना चाहिए।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined

  • छत्तीसगढ़: मेहनत हमने की और पीठ ये थपथपा रहे हैं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल का सरकार पर निशाना

  • ,
  • महाकुम्भ में टेंट में हीटर, ब्लोवर और इमर्सन रॉड के उपयोग पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, सुरक्षित बनाने के लिए फैसला

  • ,
  • बड़ी खबर LIVE: राहुल गांधी ने मोदी-अडानी संबंध पर फिर हमला किया, कहा- यह भ्रष्टाचार का बेहद खतरनाक खेल

  • ,
  • विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में नियुक्त किए पर्यवेक्षक, किसको मिली जिम्मेदारी?

  • ,
  • दुनियाः लेबनान में इजरायली हवाई हमलों में 47 की मौत, 22 घायल और ट्रंप ने पाम बॉन्डी को अटॉर्नी जनरल नामित किया