विचार

उदयपुर 'नवसंकल्प चिंतन शिविर' से होगा नई ऊर्जा और संकल्प का उदय: मल्लिकार्जुन खड़गे

उदयपुर में विस्तार से मंथन करके प्रतिनिधि जो सलाह देंगे, उसका जो नतीजा निकलेगा वह जनता के सामने रखा जाएगा। हमें भरोसा है कि उदयपुर में होने वाले चिंतन शिविर से संगठन को मजबूती मिलेगी और राजनीतिक, सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के लिए नयी राह निकलेगी।

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उदयपुर में 13 से 15 मई 2022 के दौरान होने वाले कांग्रेस के ‘ नव संकल्प चिंतन शिविर’ को लेकर देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में एक नया उत्साह देखने को मिल रहा है। चुनौती भरे माहौल में ऐसे चिंतन- मनन से हालात की समीक्षा कर नयी राह निकालने में हमें मदद मिलती है। अपने मूल विचारों पर कायम रहते हुए अपनी ताकत और कमजोरी का निष्पक्ष आकलन करके हम भविष्य की रणनीति बनाते हैं। और जहां कमी रह गयी हो, उसे दूर करते हैं। पचमढी और शिमला में हुए ऐसे ही मंथन भविष्य में यूपीए सरकार के बनने में मददगार रहे थे। उस दौरान जो फैसले हुए उसे उत्साह के साथ गांव देहात तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जमीन पर उतारने का काम किया था।

कांग्रेस में चिंतन-मनन कर फैसले लेने की पुरानी परंपरा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति समय समय पर तमाम सवालों पर चर्चा करती है। कांग्रेस महासमिति या महाधिवेशन में संगठन के मुद्दों पर गंभीर चर्चा होती है। हमारे संसदीय फोरम पर भी अलग रणनीतियां बनती हैं। जिलों से लेकर प्रांत और केंद्रीय स्तर पर एक ढांचा लगातार स्थानीय हालात के हिसाब से काम करता है। लेकिन चिंतन शिविर एक खास मौके पर आयोजित होता है। आजादी के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश में नरोरा गांव में 16-17 जून 1956 में चुनिंदा कांग्रेस नेताओं की चिंतन बैठक यूएन ढेबर की अध्यक्षता में हुई थी, जिसमें दोनों दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू मौजूद रहे थे और तमाम ज्वलंत सवालों पर खुल कर चर्चा की गयी थी। तमाम भ्रम और संशय दूर हुए। इसी तरह सोनियाजी के नेतृत्व में पचमढ़ी, शिमला और जयपुर की चिंतन बैठकों में काफी गंभीरता के साथ चुनौतियों पर चर्चा कर भविष्य के लिए राह निकालने का प्रयास हुआ।

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हाल में मार्च महीने में हुए पांच विधान सभा के चुनावों में हमें उम्मीद के हिसाब से कामयाबी नहीं मिली। हालांकि हमने चार राज्यो में भाजपा सरकारों के कुशासन और कमियों पर जनता को समझाने का प्रयास किया। पंजाब में सरकार बनने की संभावनाओं पर चंद लोगों की आपसी अनबन और समन्वय की कमी भारी पड़ी। इसी कारण चुनाव के तत्काल बाद कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने अमरिदर सिंह वारिंग जैसे जमीनी नौजवान नेता को पंजाब का नेतृत्व सौंपा है। इन बातों को ध्यान में रख मौजूदा हालात और 2022 से 2024 के विधान सभा और 2014 के लोक सभा चुनावों के लिए चिंतन कर भावी रणनीति बनाने का फैसला किया।

कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने उदयपुर चिंतन शिविर के लिए छह कोआर्डिनेशन पैनल बनाए हैं। इसमें राजनीतिक मुद्दों पर मेरे नेतृत्व में 9 महत्वपूर्ण नेता शामिल हैं। दूसरी समिति श्री सलमान खुर्शीद के नेतृत्व में सामाजिक न्याय और अधिकारिता से संबंधित है, जबकि आर्थिक समिति का नेतृत्व पूर्व वित्त मंत्री श्री पी चिदंबरमजी कर रहे है। संगठन से संबधित समिति का नेतृत्व श्री मुकुल वासनिकजी, किसान और खेती बाड़ी से संबंधित समिति का नेतृत्व हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भूपिंदर सिंह हुड्डा कर रहे हैं। युवा और अधिकारिता से संबंधित समिति का नेतृत्व अमरिदर सिंह वारिंग कर रहे हैं। सभी समितियों में अनुभवी और ऊर्जावान नेता शामिल हैं। इन्होंने आपस में चर्चा करके कुछ प्रमुख बिंदुओं पर फोकस किया है। इसका निचोड़ कांग्रेस कार्समिति में रखा गया है। उदयपुर में इस पर विस्तार से मंथन करके प्रतिनिधि जो सलाह देंगे, उसका जो नतीजा निकलेगा वह जनता के सामने रखा जाएगा। हमें भरोसा है कि उदयपुर में होनेवाले चिंतन शिविर से संगठन को मजबूती मिलेगी और राजनीतिक, सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के लिए नयी राह निकलेगी।

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केंद्र में मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का तीसरा साल पूरा करने वाली है। कोरोना संकट से लेकर आर्थिक मोरचों पर इसकी विफलताओं और बदइंतजामी को देश दुनिया ने देख लिया है। बीजेपी सरकार ने कोविड से मौत के जो आंकड़े दिए उससे 10 गुना अधिक का आकलन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया है। राहुलजी और मैने सदन में 50 लाख मौतों की बात कही थी। लेकिन सरकार आंकड़े छिपाती रही।

बीजेपी और संघ परिवार सांप्रदायिक उन्माद के एजेंडे पर चलते हुए ध्रुवीकरण के लिए नफरत की राजनीति कर समाज में तनाव पैदा कर रही है। सरकारी संरक्षण में कर्नाटक से हरिद्वार तक हेट स्पीच का सिलसिला चल रहा है। RSS प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदीजी इसकी निंदा करने की जगह हवा दे रहे है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में बुलडोजर के नाम पर गरीबों को परेशान किया जा रहा है। बीजेपी संगठन इसकी निंदा कहीं नहीं कर रहा है।

पचमढ़ी, शिमला और जयपुर के बाद देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक वातावरण में काफी बदलाव आया है। सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस के खिलाफ रोज दुर्भावनापूर्ण और झूठा प्रचार हो रहा है, जिसका कारगर जवाब देना जरूरी है।

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कांग्रेस देश का सबसे पुराना दल है। राष्ट्र के सारे प्रमुख नायक इससे जुड़े रहे हैं। स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्र निर्माण में इसकी भूमिका को सभी जानते हैं। आजादी के बाद लंबे समय कांग्रेस को जनादेश मिलता रहा है। 1977 में जब लगा कि कांग्रेस सबसे गंभीर राजनीतिक संकट में फंसी है तो भी दक्षिण भारत उसका मजबूत किला बना रहा था। इंदिराजी हाथी पर सवार होकर बेलछी कांड के पीड़ितों से मिली। जगह जगह कांग्रेस कार्यकताओं ने उनके नेतृत्व में फिर से माहौल बनाया और 1980 में 367 जीत कर फिर से कांग्रेस की वापसी हुई और 1984 में दो तिहाई से ज्यादा सीटें जीत कर कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में इतिहास रचा।

कांग्रेस की सरकारो में देश में जो बड़े काम हुए उसे छिपाने के लिए रंग रोगन कर अपने कामों को ऐतिहासिक बताने का प्रयास चल रहा है। लेकिन रियासतों के एकीकरण से लेकर जमींदारी उन्मूलन और किसानों को जमीन का अधिकार देना, बैंकों का राष्ट्रीय करण, पंचवर्षीय योजनाओं के तहत सार्वजनिक उपक्रमों का निर्माण, राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और मनरेगा से लेकर सूचना अधिकार कानून तक लंबी फेहरिश्त इतिहास में दर्ज है, जिसे नकारना किसी के बूते की बात नहीं है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दूरदर्शिता के साथ देश में नियोजित विकास से लेकर वैज्ञानिक प्रगति की जो आधारशिला रखी थी उसी की देन थी कि जहां सुई और नट बोल्ट तक नहीं बनती थी वहां जहाज बनने लगा।

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कांग्रेस के समक्ष जब भी चुनौती आयी यह नयी ताकत के साथ उठ खड़ी हुई। सब जानते हैं कि 1996 के बाद कांग्रेस काफी राजनीतिक संकट से गुजर रही थी। कार्यकर्ता भविष्य के प्रति चिंतित थे। लेकिन श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा 1998 में पार्टी की बागडोर थामने के बाद तस्वीर बदली। 1998 से 2004 के बीच लगातार सेवा और संघर्ष का कार्यक्रम चला, जिससे कार्यकर्ताओं का भरोसा जगा और 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में लगातार कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी और कई चुनौती भरे प्रांतों में कांग्रेस को विजयश्री मिली।

सोनियाजी ने कांग्रेस का नेतृत्व संभालने के बाद जमीनी आधार वापस लाने के लिए दिन-रात काम किया। NDA के मुकाबले UPA का मजबूत गंठजोड़ बनाया। सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत खाका तैयार किया। गांव देहात हो या दलित आदिवासी और गरीब लोग इनके लिए कांग्रेस ने लड़ाई लड़ी। प्रशासन के भगवाकरण, सांप्रदायिकता, किसानों की समस्या और कई ज्वलंत मुद्दों पर कांग्रेस ने संसद से सड़क तक जो माहौल बनाया वही NDA के पतन का आधार बना था। UPA गठबंधन सरकार बनने के बाद जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना उस पर सख्ती से अमल हुआ और तमाम लोककल्याणकारी कानून बने। यही नहीं सोनियाजी ने 2004 में UPA संसदीय दल का नेता चुने जाने के बावजूद प्रधानमंत्री का पद स्वयं संभालने के बजाय आर्थिक मामलों की वैश्विक हस्ती डॉ. मनमोहन सिंह को सौंपा। इतने बड़े पद को त्यागने की घटना भारतीय राजनीति में पहले कभी नहीं हुई थी और इसकी दुनिया में चर्चा हुई। सोनियाजी ने UPA गठबंधन का नेतृत्व किया और कांग्रेस के आधार को बरकरार रखने लिए लगातार प्रयास जारी रखा। एक दौर था जब कुछ लोग एकला चलो का नारा दे रहे थे। लेकिन बंगलूर कांग्रेस महाधिवेशन में चर्चा के बाद पचमढ़ी और शिमला में एक राय बना कर NDA के विकल्प के रूप में UPA गठबंधन बना और कांग्रेस भाजपा विरोधी मुहिम का केंद्र बना।

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आज समाज में फिर से नफरत फैलाने और सांप्रदायिक राजनीति कर राजनीतिक लाभ लेने का एक नया दौर चल पड़ा है। समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए सत्तारूढ़ दल के लोग जानबूझकर व्यापार, भोजन, पोशाक, आस्था, त्यौहार और भाषा से संबंधित मुद्दों का दुरुपयोग कर रहे हैं। वैमनस्य फैलाने वाली भड़काऊ भाषा का प्रयोग हो रहा है। ऐसा करने वालों को सत्ता का संरक्षण मिला है। कई राज्यों में हाल में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं और धार्मिक जुलूस निकालने से पहले भड़काऊ भाषण दिए गए। चंद अवसरवादी नेताओं को इस काम के लिए सत्ता दल ढाल बना रहा है। और प्रधानमंत्रीजी इन बातों पर लगातार मौन हैं जिससे कट्टरता फैलानेवालों को हौंसला मिलता है।

आज पूरा देश महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर चिंतित है। बीते छह सालों में भारत की लेबर फोर्स में एक करोड़ से अधिक की गिरावट आयी है। महिला श्रम की भागीदारी 206-17 में 15% से घट कर 2021-22 में 9.2% रह गयी। कोरोना के बाद दयनीय दशा है और गरीबों की जीना मुश्किल है। पेट्रोल, डीजल से लेकर सारे जरूरी वस्तुओं के दामों में बेतहाशा बढोत्तरी हुई है।

संसद या संसद के बाहर इस पर हम चर्चा करते हैं तो सरकार भावनात्मक मुद्दों को लाकर उसकी काट करती है। तमाम ऐसे कानून बन रहे हैं, जिस पर चर्चा भी नहीं होती है। सरकार जल्दबाजी में कई विधेयकों को पास करा चुकी है। विपक्ष ने लगातार इन विधेयकों को संसदीय समितियों को भेजने की मांग की लेकिन सरकार नहीं मानी। हम कृषि कानूनों की वापसी पर चर्चा चाहते थे लेकिन वह विधेयक लोक सभा में तीन मिनट और राज्य सभा में चार मिनट में पारित हो गया। सरकार अध्यादेश राज चलाना चाहती है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से सात सालों के दौरान औसतन 11 यानि 80 अध्यादेश ला चुकी है। यूपीए-2 में 71 फीसदी विधेयक संसदीय समितियों को भेजे गए थे लेकिन इस सरकार में यह 10 फीसदी से भी कम है।

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मोदी सरकार तमाम संसदीय परंपराओं को तोड़ रही है। संसद का कामकाज भी आज सीमित होता जा रहा है। 2020 में संसद के दोनों सदनों की महज 33 बैठकें हुईं जबकि 2021 में राज्य सभा में 58 और लोकसभा में 59 बैठक हुई। 1956 में संसद की अधिकतम 151 बैठकें हुई थीं। लेकिन पिछले आठ सालों का औसत 63 बैठकों का है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत में हमेशा से एक केंद्रीय राजनीतिक शक्ति रही है। इसके लंबे इतिहास में तमाम उतार चढाव भी आये लेकिन करोड़ो कार्यकताओं ने श्रम के साथ इसे फिर से पुनर्स्थापित किया। अगर एकता, अनुशासन, अतीत के हमारे काम और भावी योजनाओं को लेकर हम जनता के बीच जाएंगे तो हमें सफलता हर हाल में मिलेगी। क्योंकि कांग्रेस ही एकमात्र अखिल भारतीय शक्ति है जिसकी देश के हर इलाके में मौजूदगी है, धर्मनिरपेक्षता के प्रति जिसकी प्रतिबद्धता है, समाज के हर तबके के साथ जिसका जुड़ाव है और नौजवानों के बीच यह आज भी एक अलग स्थान रखती है। इस नाते मुझे भरोसा है कि उदयपुर से श्रीमती सोनिया गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस एक नयी ऊर्जा के साथ गांव गिरांव, खेत खलिहाल, गरीब और कमजोर तबकों के बीच फिर से एक नयी राह बनाएगी और सांप्रदायिक शक्तियों को मात देगी।

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