इसे एक क्रूर विडंबना ही कहेंगे कि जो मानवीय सहायता कार्यकर्ता विभिन्न युद्ध और हिंसक टकराव के क्षेत्रों में फंसे लोगों को राहत पहुंचाने में लगे हैं, वे स्वयं बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं। इस तरह बेदर्दी से मारे जा रहे मानवीय सहायता कार्यकर्ताओं की सबसे अधिक संख्या गाजा में है।
ध्यान रहे कि युद्ध और हिंसक टकराव के कारण विश्व के अनेक क्षेत्रों में फंसे लोग प्रायः भूख, कुपोषण, पेयजल संकट, बेघर हो जाने की स्थिति से त्रस्त होते हैं। ऐसे लोगों के लिए भोजन, दवाएं, अस्थाई आवास सामग्री, ईंधन आदि पहुंचाने के कार्य में हजारों कार्यकर्ता लगे हैं जिन्हें औपचारिक तौर पर ‘ह्यूमेनीटेरियन एड वर्कर’ कहा जाता है।
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इन्हें प्रायः बहुत कठिन स्थितियों में कार्य करना पड़ता है और इस कारण इनमें से अनेक कार्यकर्ता प्रतिवर्ष मारे जाते हैं। वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार ऐसे 118 सहायता कार्यकर्ता अपने कार्य के दौरान मारे गए। वर्ष 2023 में इनकी संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई जो कि मुख्य रूप से वर्ष 2023 के अंतिम तीन महीनों में हुई और इसमें से अधिकतम वृद्धि गाजा में ऐसे कार्यकर्ताओं की अधिक मौतों के कारण हुई।
वर्ष 2023 में पिछले वर्ष की तुलना में ऐसे कार्यकर्ताओं की मृत्यु में 137 प्रतिशत की वृद्धि हुई और एक ही वर्ष में ऐसे 280 राहत पहुंचाने वाले कार्यकर्ता मारे गए। इस तरह की मौतों में इतनी तेज वृद्धि पहले कभी नहीं देखी गई थी।
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अब यदि इस वर्ष 2024 के आंकड़ों को देखें तो 7 अगस्त तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ऐसे 172 राहत कर्मियों की मौत हो चुकी है। दूसरे शब्दों में पिछले वर्ष में प्रति माह राहत कार्यों की मौतों का जो औसत था (एक महीने में 22 मौतें) वह इस वर्ष भी लगभग वर्ष 2023 जैसा ही बना हुआ है।
जब से गाजा से इजराइल की सैनिक कार्यवाही आरंभ हुई है, तब से लेकर अगस्त के आरंभिक दिनों तक के उपलब्ध आंकड़ों को देखें तो विश्व स्तर पर जितने भी राहत कार्यकर्ताओं की मृत्यु हुई उनमें से 75 प्रतिशत की मृत्यु गाजा और वेस्ट बैंक क्षेत्र में हुई है।
इससे पता चलता है कि किस हद तक राहत पहुंचाने वाले कार्यकर्ता गाजा में मारे जा रहे हैं। इनमें से जो संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़े हैं वे भी बड़ी संख्या में मारे गए हैं, जबकि अनेक अन्य राहत कार्य करने वाले ‘डाक्टर्स विदाऊट बार्डर्स’ जैसे विख्यात संस्थानों से जुड़े हैं।
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सबसे चिंता की बात यह है कि जिन कार्यकर्ताओं ने इजराइल सेना को अपने कार्य और यात्रा के बारे में पूर्व जानकारी दी हुई थी, जिन्होंने अपनी पहचान को स्पष्ट जाहिर किया हुआ था और जो इजराइल की संना द्वारा घोषित ‘सुरक्षित क्षेत्र’ में ही कार्यरत थे, ऐसे अनेक राहत कार्यकर्ताओं की भी मौतें हुई हैं।
स्टीफेन सेमलेर ने ‘रिसपान्सीबल स्टेटक्राफ्ट’ नामक विख्यात वेबसाइट में प्रकाशित अपने अध्ययन में ऐसी 14 दर्दनाक वारदातों का वर्णन किया है जिसमें सुरक्षित क्षेत्र में राहत कार्यकर्ता मारे गए जबकि वे अपनी पहचान करवा चुके थे और उपस्थिति का कारण समझा चुके थे।
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इस कारण यह संदेह उत्पन्न हुआ है कि ऐसे कुछ राहत कार्यकर्ताओं को इजराइल की सेना ने जान-बूझकर अपना निशाना बनाया हुआ है। यदि ऐसा हुआ है- और उपलब्ध तथ्य तो इस ओर ही इशारा कर रहे हैं- तो यह बहुत निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि राहत कार्यों और कार्यकर्ताओं को पहचान कर, जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है।
इस तरह की मौतों की प्रमाणिक जांच कर इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों व ताकतों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही होनी चाहिए और साथ में ऐसी दर्दनाक वारदातों को भविष्य में रोकने के लिए जरूरी निर्देश भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी होने चाहिए।
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