दो सितंबर को शुरु हुआ भारतीय जनता पार्टी का सदस्यता अभियान अब आखिरी चरण में है। देश भर से दस करोड़ नए सदस्य बनाने का लक्ष्य है। अभियान की ‘सफलता’ पर रोज खबरें छप रही हैं। लेकिन यह चल कैसे रहा है, जानना दिलचस्प है।
इस चक्कर में कुछ कार्यकर्ता खुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। संदीप बताते हैं, “अपने सौ सदस्यों के अलावा मुझे पांच हजार सदस्य और बनाने हैं जो बड़े नेताओं ने मुझसे बनाने को कहा है।” बदले सियासी हालात में इसमें दिक्कतें भी हैं। संदीप कहते हैं, “लोग अब बीजेपी से जुड़ने में आनाकानी करते हैं। उनमें नाराजगी है। दस साल पहले वाला माहौल नहीं है जब सबकुछ मोदी जी के नाम पर हो जाता था।”
जिस दिन उत्तर प्रदेश में सदस्यता अभियान का औपचारिक उद्घाटन हुआ, दिल्ली से लखनऊ पहुंचे बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं के साथ राज्य के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य भी दिल्ली चले आए और कई दिन वहीं रहे। उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतने लंबे प्रवास पर गोरखपुर निकल लिए कि शिक्षक दिवस का जो समारोह परंपरागत रूप से राजधानी में होता था,गोरखपुर शिफ्ट करना पड़ा।
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दिल्ली से लखनऊ गए पार्टी के एक बड़े पदाधिकारी की मानें, तो सदस्यता अभियान के ऐन उद्घाटन अवसर पर ही केशव मौर्य और मुख्यमंत्री योगी के बीच कलह हो गई और इसका सीधा असर सदस्यता के आंकड़ों में देखा जा सकता है। अखबारी रिपोर्टों को सही मानें, तो योगी आदित्यनाथ ने जहां 53,000 सदस्य बनाए, वहीं केशव मौर्य केवल डेढ़ हजार सदस्य बना पाए। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह का आंकड़ा तो 200 के पार भी नहीं पहुंचा।
वैसे, सांसद, महापौर, जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायकों और एमएलसी से लेकर जिलाध्यक्ष तक- सबने सारा जिम्मा कार्यकर्ताओं के कंधे मढ़कर, बदले में अपनी अंटी थोड़ी सी ढीली छोड़ दी है। बड़े नेता अपने टारगेट के लिए सदस्य बनाने के बदले छोटे कार्यकर्ताओं को पैसे भी दे रहे हैं- एक सदस्य बनाने का पांच, दस, पंद्रह या बीस रुपया! लेकिन, कार्यकर्ता खुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। बीजेपी कार्यकर्ता सौरभ कहते हैं, “राजनीति करने वालों के पास ‘नहीं’ कहने का विकल्प नहीं होता। हम जैसे छोटे कार्यकर्ता सीनियर नेताओं को यह नहीं कह सकते कि लोग पार्टी से जुड़ना नहीं चाहते या कि माहौल खिलाफ है।”
वैसे, कार्यकर्ताओं के और भी तर्क हैं। एक पुराने कार्यकर्ता संतराम वर्तमान बीजेपी और उसकी नीतियों से नाराज हैं। कारण, कि उनके शहर की नगरपालिका में अध्यक्ष का चुनाव एक मुसलमान जीत गया, जबकि उन्हें लगता है कि मुसलमान समाज में आतंक फैलाते हैं। संतराम पूछते हैं, “बताइए, बीजेपी राज में एक मुसलमान अध्यक्ष का चुनाव जीत कैसे गया? क्या इसी दिन के लिए हमने बीजेपी की राजनीति की है?’’
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बीजेपी से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अगर दो मिनट के लिए किसी का मोबाइल नंबर पा जाए, तो तीसरे-चौथे मिनट में उस मोबाइल पर बीजेपी सदस्य बनने का मैसेज आ जाता है। एक कार्यकर्ता दीपक ने हमें समझाया, “हमे बस एक ओटीपी चाहिए होता है, बाकी काम हम खुद कर लेते हैं। डिटेल तो हम खुद से भर लेते हैं।” दीपक ईमानदारी से स्वीकारते हैं कि “ज्यादातर सदस्य फर्जी हैं। मैंने जिनको भी सदस्य बनाया, सबकी डिटेल गलत है। किसी का नाम गलत है, किसी की उम्र या पता। ऑनलाइन सदस्यता फॉर्म के लिए मोबाइल नंबर के अलावा केवल यही तीन चीजें ही चाहिए।”
दीपक पहले भी ऐसा कर चुके हैं। वह कहते हैं, “जब सदस्यता अभियान शुरू हुआ, लगा था सब कुछ आसानी से हो जाएगा। लेकिन जब सदस्य बनाने निकले तो माहौल बिल्कुल अलग था। लोग तैयार नहीं थे। लेकिन हमें तो करना था, चाहे जैसे करें। इसलिए यह सब फर्जीवाड़ा करना पड़ा। रोज मिलने-जुलने वाले नेताओं को नाराज करके तो आगे नहीं बढ़ सकते न!”
दिल्ली की सोशल टेक्निकल कंपनी ‘ग्रामवाणी’ में काम कर रहे सुल्तान अहमद बीजेपी के इस अभियान को पूरी तरह से लोगों का “निजी डेटा इकट्ठा” करने का अभियान कहते हैं। वह बताते हैं, “लोगों को लगता है कि वे केवल अपना मोबाइल नंबर साझा कर रहे हैं जबकि साझा तो उनकी पूरी जन्मकुंडली हो जा रही है। हर सरकारी दस्तावेज आपके फोन से जो जुड़ा हुआ है।”
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बीजेपी का सदस्यता अभियान पूरी तरह से डिजिटल मोड में चलाया जा रहा है। इसमें सदस्य बनने या बनाने वालों को तीन विकल्प दिए गए हैंः पहला, फोन से मिस्ड कॉल करके, दूसरा ऐप पर जाकर रेफरल कोड के जरिए। सदस्यता के लिए आमतौर से यही दो विकल्प प्रयोग में हैं इसलिए किसी को भी सदस्य बनाने के लिए सबसे जरूरी है उसके पास मोबाइल फोन होना।
हमीरपुर की राठ विधानसभा में बीजेपी के एक बूथ अध्यक्ष अरविंद तिवारी कहते हैं, “कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए जिले के पदाधिकारियों या फिर सांसदों-विधायकों ने सदस्य बनाने के ठेके दिए हैं। जो भी यह काम करेगा, उसे हर भर्ती पर 15-20 रुपये दिए जाएंगे। बूथ अध्यक्षों को भी ऐसा ही मिलता-जुलता वादा किया गया है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे राशन दुकानों, स्कूलों, कोचिंग सेंटरों में जाकर लोगों को सदस्य बना दे रहे हैं, जिसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को हो ही नहीं पा रही।” सपा के चंद्रशेखर चौधरी तो बताते हैं कि सदस्य बनाने के लिए लोगों को सरकारी योजनाओं का लोभ देकर धोखे से सदस्य बनाया जा रहा है।
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सीधी-सादी गृहिणी दीपा बताती हैं कि एक दिन उनके जानने वाले एक पारिवारिक सदस्य जो हमीरपुर जिले की बीजेपी राठ नगर इकाई में किसी पद पर हैं, उनके घर आए। उन्होंने दीपा से उनका मोबाइल फोन मांगा और पांच मिनट बाद वापस भी कर दिया। दीपा बताती हैं, “हमने सोचा कि शायद किसी को फोन करना होगा। उनसे कुछ पूछा भी नहीं। दो-तीन दिन बाद बेटी ने किसी काम से मेरा फोन लिया, तब पता चला कि मैं तो बीजेपी की सदस्य बन चुकी हूं।” सीमा, रीता, प्रदीप, रागिनी, सोनम, अखिल, निखिल जैसे लोगों को भी कई दिन बाद पता चला कि वे किसी पार्टी के सदस्य हो चुके हैं।
एक दिलचस्प मामला सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज के क्लर्क संदीप साहू (बदला हुआ नाम) का है। उन्हें सपा और बीजेपी- दोनों ने अपना सदस्य बनाया हुआ है। वह कहते हैं, “जिन लोगों ने मुझे इन पार्टियों से जोड़ा, वे मेरे दोस्त हैं और अलग-अलग पार्टियों से जुड़े हैं। नौकरी करते हुए किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने का मैंने नहीं सोचा था और दोनों को मना किया था। उन लोगों ने कहा कि तुम्हारा नाम-पता बदल देते हैं, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी।” वह बताते हैं, “एक दिन मेरे मोबाइल पर मैसेज आया जिसके अनुसार अब मैं बीजेपी का सदस्य हूं।” संदीप जैसे बहुत लोग हैं जिन्हें उनके दोस्तों, पारिवारिक सदस्यों ने बीजेपी का सदस्य बना दिया है।
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ऐसे मामले अकेले उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृहराज्य गुजरात के विसनगर में कुछ दिन पहले प्रकाशबेन दरबार अपने पति के साथ इंजेक्शन लगवाने सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र गई थीं। वहां एक स्टाफ ने उनसे उनका मोबाइल नंबर मांगा और ओटीपी पूछा। प्रकाशबेन ने ओटीपी क्या बताया, मोबाइल पर बीजेपी का सदस्य बनने का संदेश आ गया। गुजरात के सुरेंद्रनगर में स्कूली बच्चों और उनके माता-पिता तथा नर्मदा जिले में मनरेगा मजदूरों को भी ऐसे ही धोखे से सदस्य बनाने की खबरें हैं।
भावनगर में हजार सदस्य बनाने के बदले पांच सौ रुपये देने की बात सामने आई। सुरेंद्रनगर वाली घटना में कुमारी एमआर गार्डी विद्यालय के बच्चों को सदस्यता दिलाई गई है। मामला सामने आने पर जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल को कारण बताओ नोटिस दिया, तो स्कूल ने कहा कि बच्चों से राशन कार्ड को आधार से जोड़ने के लिए माता-पिता के मोबाइल लाने को कहा गया था, संभव है बच्चे खुद ही जुड़ गए हों!
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भोपाल में एक सरकारी राशन की दुकान पर बीजेपी सदस्य बनाने का वीडियो मध्य प्रदेश कांग्रेस ने हाल ही में जारी किया था। राशन दुकान में काउंटर लगाकर रजिस्टर में दर्ज कर लोगों को सदस्य बनाया जा रहा था। उज्जैन नगर निगम में आउटसोर्सिंग पर काम करने वाले कर्मचारियों को अभियान में तैनात करने की बात सामने आई।
ऐसी ही जालसाजी कर बीजेपी अपने अभियान में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को अव्वल गिनवा रही है। 2 से 25 सितंबर के बीच एक करोड़ सदस्यों का लक्ष्य केवल इन्हीं दो राज्यों में पूरा किया गया। बीजेपी के एक कार्यकर्ता इन सबके पीछे अपनी मजबूरी गिनवाते हैं, “मैं ऐसा न करता तो अभी मेरी जो संख्या साढ़े पांच सौ है, वह पचास भी न पहुंचती।”
(followupstories.com में छपी अमन गुप्ता की रिपोर्ट का संपादित रूप। रिपोर्ट में जिन बीजेपी कार्यकर्ताओं के बयान हैं, उनकी निजता का सम्मान करते हुए उनके नाम बदल दिए गए हैं)
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