हर बार जब सूचना आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करेंगे, देशवासियों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। लेकिन बीते तीन महीने में अपने छठे राष्ट्र के नाम संबोधन का कार्यक्रम कोई खास लेकर नहीं आया। पीएम ने सिर्फ पहले से घोषित उन योजनाओं के ही विस्तार की बात कही जो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 45 दिन पहले देश के सामने रख चुकी थीं।
लेकिन इसके पीछे छिपे राजनीतिक निहितार्थ को अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि योजनाओं का विस्तान नवंबर तक किया गया है। यह वह महीना है जिसमें बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं।
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वैसे राजनीतिक उद्देश्य को अनदेखा भी कर दें, तो भी प्रधानमंत्री के ऐलान का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन देश को पीएम के संबोधन से कहीं ज्यादा उम्मीदें थीं। लेकिन यह भी हकीकत है कि देश इस समय जबरदस्त आर्थिक संकट से दो-चार है और ऐसे में सरकार के पास ज्यादा कुछ करने को है नहीं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अन्न योजना को देश के 80 करोड़ लोगों तक पहुंचाया जाएगा और इससे सरकार पर करीब 90,000 करोड़ का खर्च आएगा। यानी अगले पांच महीनों तक प्रति व्यक्ति 1,125 रुपए का खर्च आएगा और हर महीने प्रति व्यक्ति 225 रुपए का खर्च होगा।
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जाहिर है कि इसके पीछे आंकड़ों का कुछ खेल किया गया होगा क्योंकि यह 90,000 करोड़ रुपए तो पूरे साल के लिए तय 2.27 लाख करोड़ रुपए की खाद्य सब्सिडी का ही हिस्सा हैं। इनमें से 1.15,570 करोड़ रुपए सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के मद में हैं। अगर सरकार इस मद के पैसे को खर्च करेंगी तो 80 करोड़ लोगों को दी जाने वाली खाद्य मदद पर होने वाला खर्च उससे बहुत कम होगा जो प्रधानमंत्री ने बताया है।
इसी तरह वन नेशन, वन राशन कार्ड का मामला है। जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का प्रेस कांफ्रेंस का धारावाहिक चल रहा था तो उन्होंने इसका भी ऐलान किया था। उन्होंने बताया था कि मार्च 2021 तक देश में वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना लागू हो जाएगी। ऐसे में सवाल है कि आखिर 45 दिन पहले हो चुकी घोषणा को प्रधानमंत्री ने क्यों दोहराया?
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इसका जवाब दरअसल उन घटनाओं में छिपा है जो बीते कुछ दिनों से सुर्खियां बन रही हैं। चीन के मुद्दे पर सरकार जबरदस्त दबाव में है। आर्थिक मोर्चे पर चीन को धकियाने के लिए उसके खुद के पास आर्थिक साधन नहीं हैं। कोरोना के मोर्चे पर भी सरकार देश को उसके हाल पर छोड़कर जिम्मेदारी राज्यों पर डाल चुकी है।
तो फिर इस सबका एक ही मकसद है, और वह यह कि सरकार देश का ध्यान एक बार फिर असली मुद्दों से भटकाना चाहती है।
आखिर सिर्फ एक योजना को अगले पांच महीने तक जारी रखने की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री को देश को संबोधित क्यों करना पड़ा? अब उन्होंने ऐसा कर ही दिया है और इसे गरीबों की मदद से जोड़ा है तो यह मौका है कि सरकार ने आर्थिक पैकेज के नाम पर जो कुछ घोषित क्या था, उसका भी जरा जायजा ले लिया जाए। अपने पैकेज में सरकार ने इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम के तहत 3 लाख करोड़ के कर्ज देने का ऐलान किया था। लेकिन अभी तक बैंकों ने 7.1 लाख लोगों को सिर्फ 32,896 करोड़ ही दिए हैं। यानी योजना का करीब 9 फीसदी। पहले ही इस बात पर बहस जारी थी कि आखिर सरकार का आर्थिक पैकेज क्या देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला पाएगा, ऐसे में उन महीनों में जब आर्थिक गतिविधियों पर विराम लगा हुआ है, सिर्फ 9 फीसदी कर्ज बांटना गंभीर और चिंताजनक स्थिति दर्शाता है।
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अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने एक बात तो साफ कर दी कि देशवासी कोरोना संकट के समय बिगड़े आर्थिक हालात में सरकार से किसी नकद वित्तीय मदद की उम्मीद न करें। उन्होंने कहा, “बीते तीन महीनों में 31,000 करोड़ रुपए लोगों के खाते में सीधे भेजे गए हैं...” लेकिन प्रधानमंत्री ने इस बात का जिक्र नहीं किया कि ऐसा आगे भी होता रहेगा।
बीते लगभग तीन सप्ताह के दौरान जिस तरह पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं, और सरकार चुप है, इससे साफ है कि सरकार के पास राजनीतिक हमले झेलने के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि उसके खजाने खाली हैं। सरकार तब तक इस मोर्चे पर तब कुछ बोलती नजर नहीं आएगी जब तक कि राजनीतिक तौर पर वह भारी संकट में न घिर जाए।
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ध्यान रहे कि 15 मार्च 2020 को सरकार ने पेट्रोल- डीजल पर 3 रुपए प्रति लीटर की एक्साइड ड्यूटी बढ़ाई थी, जिससे मार्च महीने में उसे 2,300 करोड़ रुपए राजस्व मिला था। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमते नर्म ही रही हैं और 27 अप्रैल को तो कच्चा तेल 16.92 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। इससे सरकार को लगा कि कच्चे तेल में गिरावट का सारा लाभ तो तेल कंपनियां ले जा रही हैं और उन्हें 17 से 19 रुपए प्रति लीटर तक का फायदा हो रहा है। सरकार के पास पैसे की पहले ही कमी थी, तो उसने आनन फानन 6 मई को एक बार फिर एक्साइज ड्यूटी में इजाफा कर दिया। इसके चलते पेट्रोल पर एक्साइड 32.98 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.83 रुपए प्रति लीटर हो गई।
अगर यही स्थिति रही तो एक्साइज ड्यूटी से सरकार को साल भर में 1.60 लाख करोड़ की कमाई होगी और सरकार पर वित्तीय दबाव कुछ कम होगा। लेकिन कच्चे तेल की कीमतें फिर से बढ़ने लगी हैं और अब 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गई हैं। ऐसे में तेल कंपनियों के पास कीमतें बढ़ाने के अलावा विकल्प नहीं हैं। लेकिन इन बढ़ी कीमतों का खामियाजा सरकार को उठाना पड़ेगा।
यहां ध्यान रखना होगा कि तेल की बढ़ी कीमतों का असर दिखना शुरु हो जाएगा और माल ढुलाई का खर्च बढ़ने के साथ ही मंहगाई भी बढ़ने लगेगी।
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