हर बार जब 'पूर्वोत्तर भारत' के सात राज्यों में से कहीं आग भड़कती है और जान-माल को क्षति पहुंचती है, कथित मुख्यधारा मीडिया अपने कुछ संवाददाताओं को मुख्य भूभाग (मेनलैंड) के श्रोताओं/पाठकों के लिए घटनाएं ठीक तरीके से बताने के लिए भेज देता है। 1998 में माउइ द्वीप की अपनी यात्रा के दौरान पहली बार मुझे 'मेनलैंड' टर्म सुनने को मिला था। अमेरिका के प्रशांत महासागर के मध्य में स्थित हवाई प्रांत के द्वीपों में से एक- माउइ के लोग अमेरिका को 'मेनलैंड' कहते हैं। अब मुझे बताने दें कि इस महीने मणिपुर में क्या हुआ और 'मेनलैंड' के लोगों के लिए कि क्यों हुआ।
कई चीजें एकसाथ इकट्ठा हो जाने की वजह से आग भड़की। 2019 से यह बीजेपी-शासित प्रदेश सिर्फ दवाओं और औद्योगिक उद्देश्यों के उपयोग के लिए गांजा को वैधानिक बनाने के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। गांजा को अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में पहले ही कानूनी मान्यता मिली हुई है। मणिपुर में पहाड़ी इलाकों के बड़े हिस्सों में गांजे की खेती की जाती है। यहां कई जनजातियां रहती हैं। यह जानना रोचक है कि गांजा और भांग के पौधे एक ही होते हैं। फूल वाले नर पौधों से भांग निकलता है जबकि मादा पौधे में फूल नहीं निकलते, उसके बीज से गांजा निकलता है। इन्हीं पौधों से पोस्ते या खसखस निकलते हैं जिनका उपयोग घरों में चटनी बनाने से लेकर मिठाइयों तक में होता है।
Published: undefined
2000 के शुरू में मैं सैकुल गई थी और देखा था कि बड़े-बुजुर्ग किस तरह गांजे के पौधों को बांधकर रखते हैं और लोग इसे खरीद सकें, इसके लिए इन्हें तैयार कर रखते हैं। उस वक्त इंटरनेशल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) ग्रामीणों को गांजा उगाने से दूर होने और उसकी जगह खाने में खट्टा-मीठा, अत्यधिक सुगंधित और बीजयुक्त पैशन फ्रूट या कृष्णा फल, एलोवेरा आदि लगाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहा था। लेकिन यह बहुत सफल नहीं रहा क्योंकि गांजे की फसल की बहुत देखभाल की जरूरत नहीं होती जबकि दूसरी फसलों में ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है; और वैसे भी, गांजे के लिए तैयार बाजार मिलता है जबकि एलोवेरा और पैशन फ्रूट के लिए लोगों को प्रोसेसिंग यूनिट लगाने होंगे। आम सोच है कि उसी रस्ते जाओ जिधर से बराबर जाते रहे हो। इस मामले में भी यही हुआ। उन्हें लगा कि सामान्य जीवन जीते हुए तैयार बाजार ही बेहतर है।
इस बार, समस्या तब से सुलग रही थी जब से मणिपुर सरकार इस आधार पर पहाड़ियों के जंगलों का सर्वे कराने की कोशिश में थी कि उन्हें 'संरक्षित वन' श्रेणी में लाया जाए। भारत के पूर्वोत्तर के आदिवासी राज्यों, खास तौर से संविधान की छठी अनुसूची वाले इलाकों में, भूमि, जंगल और नदियां- संक्षेप में, सभी प्राकृतिक संसाधन लोगों के हैं, सरकार के नहीं। ये संसाधन जिला परिषदों के स्वामित्व में हैं जो संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत कानूनी तौर पर बनाई गई हैं।
Published: undefined
उदाहरण के तौर पर, मेघालय में सिर्फ चार फीसद जंगल सरकार के दायरे में आते हैं। शेष जिला परिषदों के तहत हैं और इनका प्रबंधन जातीय जत्थों और समुदायों की पारंपरिक संस्थाओं के पास है। इसी तरह, मणिपुर में 67.6 प्रतिशत वन भूमि आदिवासी क्षेत्रों में और शेष सिर्फ करीब 8 प्रतिशत संरक्षित वन हैं या सरकार के स्वामित्व में हैं।
अपने पारंपरिक जीवन-यापन के तौर पर विभिन्न जनजातियां वन भूमि में पोस्ते की खेती करती हैं। लेकिन इंफाल घाटी में नशीले पदार्थों के व्यापारी लाखों में कमाते हैं और अधिक हिस्सा ले जाते हैं। एक तरीके से, मेडिकल और औद्योगिक उपयोगों के लिए पोस्ते की खेती को कानूनी करने के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के प्रयासों को राज्य के लिए अच्छा कह सकते हैं क्योंकि इससे राज्य के राजस्व में बढ़ोतरी होगी। दूसरी तरफ, पोस्ते की उपज अवैध है और बीरेन सिंह सरकार व्यवस्थागत तरीके से पोस्ते की खेती का क्षेत्र घटा रही है- 2021 में यह 6,742 एकड़ में थी जबकि 2022 में यह सिर्फ 1,118 एकड़ रह गई। यह नशीले पदार्थों के व्यापारियों के लिए सबसे अधिक चुभने वाली बात रही होगी।
मणिपुर सरकार ने वन क्षेत्रों में रह रहे आदिवासी नागरिकों को हटाना भी शुरू किया और आग भड़कने की एक वजह यह भी रही। जनजातीय लोगों का कहना है कि वे इस स्थान के मूल निवासी हैं और सैकड़ों साल से यहां रह रहे हैं।
Published: undefined
एनजीओ लैंड कन्फ्लिक्ट वॉच के अनुसार, फरवरी, 2023 में मणिपुर के वन विभाग ने पुलिस बल के साथ मिलकर कुकी आदिवासी गांव के. सोंगजांग के निवासियों को खाली कराया। यह गांव छुरछंदपुर जिले में नोनी जिले की सीमा के पास है। 15 फरवरी को छुरछंदपुर के उपायुक्त ने दक्षिण मणिपुर के छुरछंदपुर और मुआलनुआम सबडिवीजनों के तहत विभिन्न गांवों में 'अवैध प्रवासियों' की पहचान के लिए अभियान चलाने का आदेश दिया। ये कथित प्रवासी अधिकतर म्यांमार से आए शरणार्थी हैं जो अपने देश में हिंसा के बाद लगातार आ रहे हैं। लेकिन, यह स्वाभाविक है कि अपनापन का रिश्ता राष्ट्रीयता पर भारी होता है। अन्य आदिवासियों की तरह कुकी मानते हैं कि सरकार द्वारा उनकी पैतृक भूमि को संरक्षित वन और वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर ले लेना अवैध है और यह भी उन्हें सूचित किए और उनसे सहमति लिए बिना ही करना कुछ ज्यादा ही है।
20 फरवरी को के. सांगजांग गांव को पूरा संरक्षित क्षेत्र होने के कारण छुरछंदपुर-खोपुम के पास होने की वजह से खाली करने के लिए अधिसूचित किया गया। सरकार ने घोषणा की कि 2021 के बाद बने घर अवैध हैं और उन्हें खाली करना होगा। खाली कराने का अभियान नोनी वन डिवीजन और राज्य पुलिस अधिकारियों ने 20 फरवरी को ही चलाया। उसी जिले में कुंगपिनाओसन गांव को भी कारण बताओ नोटिस दिया गया और गांव वालों को उसी वजह से जमीन खाली करने को कहा गया। इन बातों ने नाराजगी पैदा की क्योंकि लोगों और पारंपरिक संस्थाओं के साथ पहले कोई सहमति बनाने का प्रयास नहीं किया गया।
विभिन्न आदिवासी संगठनों के नए बने संघटन- इन्डीजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और कुकी स्टूडेन्ट्स यूनियन (केएसओ) ने खाली कराने के आदेशों के विरोध के लिए सभी पहाड़ी जिलों- छुरछंदपुर, उखरूल, कांगपोकपी, टेंगनूपाल और जिरिबाम में रैलियों का आयोजन किया। वैसे, विरोध प्रदर्शन दिल्ली में जंतर मंतर में भी हुआ। कांगपोकपी जिले में रैली तब हिंसक हो गई जब पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। बदले में प्रदर्शनकारी पत्थर बरसाने लगे जिसमें पांच लोग और पुलिस वाले भी घायल हो गए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के थॉन्गखोलाल हाओकिप-जैसे शिक्षाविदों का भी कहना है कि 'राज्य सरकार ने आदिवासी-स्वामित्व के बड़े हिस्से और बसे हुए पहाड़ी क्षेत्रों को अपनी भूमि घोषित कर दी है और वह भी जंगलों में रहने तथा जीवन-यापन करने वाले समुदायों से बातचीत किए बिना ही जिससे स्थिति बिगड़ी।'
Published: undefined
मणिपुर की राजनीति पहले से ही पेचीदा है। यहां की विधानसभा 60 सदस्यीय है। राज्य में मैतेईयों की आबादी सबसे अधिक है इसलिए लगभग 40 विधायक इसके ही होते हैं। शेष कुकी और नगा हैं। संक्षेप में, आदिवासियों ने निर्णय लेने की प्रक्रिया से खुद को अलग-थलग महसूस किया जबकि ये फैसले उनके जीवन और जीवन-यापन को प्रभावित करने वाले हैं। कुकी और नगा आरोप लगाते हैं कि वे जबरिया हटाए जाने, अपने प्राकृतिक संसाधनों, खास तौर से जंगलों से वंचित किए जाने और बहुमत समुदाय द्वारा जमीन पर कब्जे किए जाने के शिकार हैं जिस वजह से उन्हें अपनी सांस्कृतिक पहचान खोने का खतरा है।
हाल में, मणिपुर वन विभाग ने एक स्पष्टीकरण जारी किया कि के. सोंगजांग गांव नई आवासीय जगह है, यह 2021 में बसा है जो 1966 में संरक्षित वनों की अधिसूचना के काफी बाद है और इसीलिए यह राज्य के वन संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है।
इसके बाद एक शिकायत 5 मार्च, 2023 को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) में की गई जिसमें इलाके को वन भूमि घोषित करने की अधिसूचना को रद्द करने और पुलिस बल के गलत उपयोग को रोकने की मांग की गई। इस पर आयोग ने 14 मार्च, 2023 तक इस मुद्दे से संबंधित सभी तथ्य और की गई कार्रवाई से संबंधित रिपोर्ट 15 दिनों के अंदर पेश करने को कहा। मणिपुर इस मसले पर गर्म हो रहा था। वन भूमि पर राज्य के दखल के बीच ही मणिपुर उच्च न्यायालय की एक सदस्यीय बेंच ने आदेश दिया कि राज्य सरकार को कदम उठाने चाहिए और मैतेईयों को अनुसूचित जनजातियों का स्तर देने की काफी समय से लंबित प्रक्रिया पर कदम उठाने चाहिए। उच्च न्यायालय का आदेश 27 मार्च को आया और उसने आग में घी डालने का काम किया।
Published: undefined
आपको बता दें, मैतेई वैष्णव हिन्दू हैं जो 1724 में अपने राजा की वजह से धर्मांतरित हुए हैं। पूरे देश में हिन्दू इस तरह 'आदिवासी' नहीं माने जाते और मणिपुर की जनजातियां महसूस करती हैं कि यह आरक्षण के उनके हिस्से को छीनने की अधिक प्रगतिशील तथा वैसे भी बेहतर स्थिति वाले मैतेईयों का प्रयास है। जब 3 मई को ऑल ट्राइबल्स स्टूडेन्ट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटसम) ने समन्वय मार्च निकाला, तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े जबकि आदिवासियों के घरों और चर्चों की पहचान स्पष्ट थी और उन्हें जला दिया गया था। इससे समस्या बढ़ गई।
उचित बात तो यह होती कि मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश को ऊपर की बेंच या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती। इस मुद्दे को ऐसे संघर्ष में बदलने देने से तो यह बेहतर होता जिसमें इम्फाल में आदिवासियों के घर जलाए जा रहे थे और उनके घरों में तोड़फोड़ की जा रही थी। और इन सबमें दुखद यह है कि दूसरी जनजातियों के बड़े-बूढ़े लोगों की आवाजें गायब थीं। ऐसा लगता है कि बड़ों के दिशानिर्देश के बिना ही सभी फैसले अब स्टूडेन्ट्स यूनियन ले रही है। हिंसा इस कारण भी भड़की।
पूर्वोत्तर के साथ अंतर्निहित समस्या यह है कि इसके लोगों और उनकी जन्मभूमि के बीच की सीमाएं हेनरी मैकमोहन और सिरिल रेडक्लिफ-जैसे उपनिवेशवादियों ने खींची हैं जो सीमा के दोनों तरफ लोगों के आपसी संबंधों के प्रति बिल्कुल अनजान और असंवेदनशील थे। मैकमोहन ने भारत और और इसकी पूर्वी और उत्तरी सीमाओं- पश्चिम में 160 मील (260 किलोमीटर) से ब्रह्मपुत्र घाटी में पूरब तक- चीन, बर्मा और भूटान की सीमाओं के हिस्से में- 550 मील (890 किलोमीटर) तक सीमा खींची और कभी भी यह नहीं समझ पाए कि वह समान जातीय और संस्कृतियों के लोगों का बंटवारा कर रहे हैं।
Published: undefined
जो जातीय समूह के कुकी म्यांमार और भारत में भी रह रहे हैं और वे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को लेकर अडिग हैं। वे ऐसे परिवार हैं जो इतिहास की तरंग में अलग कर दिए गए हैं। ऐसा ही आज के मिजोरम के मिजो लोगों के साथ है। म्यांमार में हिंसा ने मिजोरम मूल के काफी सारे हताश परिवारों को एकसाथ ला दिया है। सिर्फ नगालैंड ही नहीं, म्यांमार और मणिपुर- दोनों में विभिन्न आदिवासी जातियों के नगा हैं। इस तरह इन औपनिवेशिक सत्ताओं द्वारा खींची गई सीमाएं समस्यात्मक हैं आर जब-तब ये कांटेदार मुद्दे उग आते हैं।
फिर भी, यह जरूर कहा जाना चाहिए कि देशों के बाद जातीय संबंध भावनात्मक किस्म के हैं जबकि हर देश द्वारा अपने लोगों को आवंटित संसाधनों का प्रवासियों द्वारा संभवतः उपयोग संभव नहीं है। यह कठोर सच्चाई है और यही वह सच्चाई है जिसका संतुलन करने का प्रयास मणिपुर सरकार कर रही है। मणिपुर के सीमावर्ती गांव कुछ उस किस्म के हो गए हैं जो जर्मनी में 1890 से 1940 के दशक में विस्तारवादी नीति के तौर पर लेबेन्सरम प्रोजेक्ट के तौर पर जाना जाता है और इनमें सबसे ऊपर है गांजा-भांग-अफीम की खेती जो जीवन नष्ट करती है। (इस बात का आकलन इस वक्त मुश्किल है कि युवा आबादी के बीच मादक पदार्थों के बढ़ते प्रचलन को लेकर मणिपुर सरकार सचमुच चिंतित है या उसका इरादा गांजा-भांग-अफीम की उपज के इलाके में वृद्धि करना है।)
एक तरफ मैतेईयों को और दूसरी तरफ कुकी और नगाओं को मिल-जुलकर रहना निश्चित तौर पर सीखना होगा और अपनी मतभिन्नता परस्पर सम्मति से सुलझानी होगी। इस बीच, मणिपुर सरकार को जिला परिषदों को अनुसूची छह स्तर देकर मजबूत करने की जरूरत है। जनजातीय लोगों को अपने लोगों पर खुद शासन करने देना चाहिए और उन्हें अभी की इस भावना से अलग-थलग नहीं होने देना चाहिए कि सभी फैसले मैतेई ले रहे हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined