दीपावली के अगले हफ्ते छठ मनाई जाती है। पहले तो बिहार-पूर्वी यूपी के लोग ही इसे मनाते थे। करीब दो दशकों से अन्य इलाकों के लोग भी इसे मनाने लगे हैं। दिल्ली में यमुना में प्रदूषण की वजह से इतनी बदबू और ऐसी झाग होती है कि लोग इधर की ओर झांकना भी पसंद नहीं करते। वे विभिन्न सोसाइटी के स्वीमिंग पूल में ही इसे मनाना बेहतर मानने लगे हैं। इस बार तो यमुना में ’कालिया नाग’ का प्रकोप कुछ ज्यादा ही है। बरसात के बादल अभी-अभी विदा हुए हैं, तब भी हथिनीकुंड बैराज पर 16 अक्तूबर 2024 को शाम पांच बजे मात्र 3,107 क्यूसेक पानी दर्ज किया गया।
यह हाल तब है जबकि फिलहाल यूपी की यमुना नहर को पानी नहीं भेजा नहीं जा रहा है। दिल्ली और आसपास यमुना के जल-ग्रहण क्षेत्र कहलाने वाले इलाकों में पर्याप्त पानी बरसा लेकिन अक्तूबर में यहां न नदी में पानी दिख रहा है और न ही पानी से जहर की मुक्ति हुई। इस बार भारी बरसात में जब नदी में पानी लबालब होना था, तब कोई पांच बार इसमें अमोनिया की मात्रा अधिक हो गई। अब भी नदी में जो झाग उठता दिख रहा, इसकी वजह यह है कि इस बार यमुना में एक बार भी बाढ़ आई ही नहीं। इस कारण कूड़ा-कचरा बहा नहीं, यथावत पड़ा रहा; न ही उसके रसायन तरल हुए और न ही पानी की तेज धारा बही।
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दिल्ली में यमुना को साफ करने और इसकी धारा अविरल बना देने की घोषणा अंतहीन बार की गई है। केजरीवाल सरकार ने इसके लिए 2025 की डेडलाइन रखी थी। अभी अक्तूबर के पहले हफ्ते में ही उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने कहा कि 2026 तक यह काम हो जाएगा। यमुना की सफाई के लिए केन्द्र सरकार दिल्ली सरकार को 8,500 करोड़ रुपये दे चुकी है। इस योजना पर इसके अलावा भी कई हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। इस क्रम में कई जगह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगा दिए गए। पर हाल वही ढाक के तीन पात है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई में यमुना में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य पाई गई जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
यमुना के पानी से दिल्ली की प्यास नहीं मिट सकती। इसलिए यहां गंगाजल और भूजल- दोनों का भी उपयोग होता है। तीनों मिलाकर दिल्ली में 1,900 क्यूसेक पानी प्रतिदिन प्रयोग में लाया जाता है। इसका 60 फीसद, यानी करीब 1,100 क्यूसेक सीवरेज का पानी जमा होता है। अगर यह पानी साफ कर यमुना में डाला जाए, तब यमुना निर्मल हो सकती है और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर होगी। लेकिन यह बात हर समय नजरंदाज की जाती है कि नदी में बाकी पानी आएगा कहां से?
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यमुनोत्री से निकलने वाली जल-धारा पहाड़ से उतरने के पहले ही गायब हो जाती है। दिल्ली तक जो भी पानी आता है, वह अधिकतर हरियाणा की छोटी नदियों और कारखानों के गंदे उत्सर्जन का हिस्सा होता है। अब ऐसे में, दिल्ली में यमुना से उम्मीद ही क्या कर सकते हैं? दिल्ली में यमुना में बाढ़ तब ही आती है जब हरियाणा में इस नदी में अतिरिक्त पानी आता है जिसे वह दिल्ली के लिए छोड़ता है। इस बार ऐसा नहीं हुआ। इसलिए दिल्ली में बाढ़ भी नहीं आई। नेताओं, अफसरों और 'बड़े' लोगों की कृपा से नदी किनारे अवैध तरीके से हुए निर्माण को यह बाढ़ त्रासदी लगती है। इसे लेकर हाय-तौबा मचती है लेकिन नदी की गुणवत्ता सुधारने का नैसर्गिक तरीका तो यही है।
बाढ़ के समय पहाड़ों से बहकर आया पानी अपने साथ कई उपयोगी सॉल्ट (लवण) लेकर आता है। पानी की तेज धारा से जल-मार्ग के कूड़े-मलवे साफ हो जाते हैं। इससे नदी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है जो मछलियों और अन्य जल जीवों की प्रजातियों को अनुकूल परिवेश प्रदान करती है।
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लेकिन इस बार आखिरकार दिल्ली में बाढ़ आई क्यों नहीं? यमुना की आत्मा सभी नदियों की तरह उसके फ्लड प्लेन, अर्थात कछार में है। जब नदी में पानी काफी हो, तो जमीन पर जहां तक उसका विस्तार होता है, वह उसका कछार या फ्लड प्लेन है। दिल्ली में तो नदी को फैलने की जगह नहीं ही छोड़ी गई है। हरियाणा और फिर उससे ऊपर पहाड़ तक भी अवैध बालू खनन के लिए कई-कई जगह नदी का रास्ता रोक दिया गया है या फिर गलत तरीके से धारा का मार्ग ही बदल दिया गया है। इन सबके लिए पहाड़ पर ही नदी को बांधने के सरकारी प्रयास कम नहीं हुए हैं।
देहरादून के कालसी विकास खंड में यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचे बांध की लखवार व्यासी परियोजना 1972 में शुरू हुई। बाद में, इस पर काम बंद हो गया। लेकिन सन 2013 में यहां काम फिर शुरू हुआ और अब यमुना पहाड़ से नीचे उतरने से पहले यहीं घेर ली जाती है। जाहिर है, जब पहाड़ से ही यमुना का बहाव नहीं है, तो हथिनी कुंड से वजीराबाद तक यह एक बरसाती नदी ही है। आखिर, लगभग 52 साल पहले जिस परियोजना की परिकल्पना की गई, वह आज हिमालय के भारी पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन के दौर में कैसे प्रासंगिक हो सकती है?
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पहाड़ पर बन रहे इतने बड़े बांध और कई सुरंगों के जरिये पानी के मार्ग को बदलने से महज जल-प्रवाह ही कम नहीं हो रहा है, इतने निर्माण का मलवा बहकर नीचे आ रहा है जो नदी को उथला बना रहा है। दिसंबर 2021 के आखिरी हफ्ते में जब व्यासी जलविद्युत परियोजना की एक टर्बाइन को प्रयोग के तौर पर खोला गया, तो यमुना की धारा लगभग लुप्त हो गई थी। इससे स्पष्ट हो गया था कि इस परियोजना के कारण दिल्ली तक यमुना का रास्ता अब बंद हो गया है। जब व्यापक निर्माण के कारण पहाड़ों पर जमकर जंगल काटे गए, तो इस तरह हुए पारिस्थितिकी हानि के कुप्रभाव से नदी भी नहीं बच सकती।
दिल्ली में नदी को निर्मल बनाने के नाम पर जो कुछ खर्च किया जाता है, उसका दरअसल पानी से कोई मतलब है ही नहीं। वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना पर कुल 22 पुल बन चुके हैं। चार निर्माणाधीन हैं। इन सब ने यमुना के नैसर्गिक प्रवाह, गहराई और चौड़ाई को नुकसान किया है। बची कसर अवैध आवासीय निर्माणों ने कर दी है। इस तरह यमुना के कछार में अतिक्रमण ने नदी के फैलाव को ही रोक दिया और इससे जल-ग्रहण क्षमता कम हो गई।
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सरकारी रिकॉर्डों से साफ है कि वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक के 22 किलोमीटर में 9,700 हेक्टेयर की कछार भूमि पर पक्के निर्माण हो चुके हैं। इसमें से 3,638 हेक्टेयर को दिल्ली विकास प्राधिकरण खुद नियमित, अर्थात वैध बना चुका है। यह पूरी तरह सरकारी अतिक्रमण है- जैसे, 100 हेक्टेयर में अक्षरधाम मंदिर, खेल गांव का 63.5 हेक्टेयर, यमुना बैंक मेट्रो डिपो का 40 हेक्टेयर और शास्त्री पार्क मेट्रो डिपो का 70 हेक्टेयर। आईटी पार्क, दिल्ली सचिवालय, मजनूं का टीला और अबु फजल एनक्लेव-जैसे बड़े वैध-अवैध अतिक्रमण हर साल बढ़ रहे हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शोध के मुताबिक, यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 600 से अधिक आर्द्रभूमि और जल निकाय थे लेकिन “उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक सूखे हैं। ये पहले बरसात के पानी को सारे साल सहेज कर रखते लेकिन अब इससे शहर में बाढ़ आने का खतरा है।” रिपोर्ट में कहा गया है कि “यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल-तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के कारण नदी से टूट गया।”
यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा जब तक हरियाणा की सीमा तक अविरल नहीं आती। जब तक दिल्ली में बरसात के तीन महीनों में कम-से-कम 25 दिन बाढ़ के हालात नहीं रहेंगे, तब तक कोई भी तकनीक दिल्ली में यमुना को जिला नहीं सकती। एसटीपी, रिवर फ्रंट आदि तब ही कारगर हैं जब यमुना में पानी रहे। बगैर रोके-टोके बहने दिया जाए, तब ही तो बचेगी यमुना।
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